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अदालतों में सन्नाटा व्याप्त है, सकून है ,शांति है।

कल सोमवार था और वकीलों के न्यायिक कामकाज के बहिष्कार का समाचार अखबार में छप चुका था। इस लिए जब अदालत में रोज ही आने वाले लोगों की संख्या 20 प्रतिशत से भी कम नजर आयी तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ। केवल वकील, मुंशी, टाइपिस्ट, दुकानदार, पुलिस वाले और अदालती स्टाफ के अलावा वहाँ इक्का-दुक्का व्यक्ति ही नजर आ रहे थे। हालत ऐसी थी जैसे ईद के अवकाश के दिन ईद न होने के कारण काम का दिन निकल आया हो।

लेकिन आज उस से भी बदतर स्थिति थी। कल जितने लोग अपने कामों के लिए नजर आ रहे थे उन से भी कम लोग अदालत में थे और दोपहर के समय जब आधे घंटे का अवकाश होता है तो चाय-पान के क्षेत्र में तलाशने पर ही मुवक्किल लगने जैसा कोई व्यक्ति दिखाई पड़ रहा था। यह एक आश्चर्यजनक बात थी। वकीलों के बीच चर्चा भी हुई। मैं ने जानबूझ कर इस चर्चा को अनेक लोगों तक चलाया। एक मत से जो कारण निकल कर आया वह आप सब से बांटना मैं ने जरूरी समझा।

मेरे एक साथी वकील फौजदारी के मशहूर वकील हैं और आज कल सब से अधिक फौजदारी मुकदमें उन्हीं की डायरी में दर्ज हैं। मैं ने उन से बात की तो सीधे सीधे शब्दों में उन्हों ने बताया कि दीवानी और दीगर मामलों में तो केवल गवाही आदि के लिए ही लोग आते हैं। बाकी पेशियों पर तो वकील ही सब काम संभाल लेता है। एक फौजदारी मामले ऐसे हैं जिन में अभियु्क्तों का आना जरूरी होता है। नहीं आने पर अदालत को वाजिब और विश्वसनीय कारण बताते हुए हाजरी मुआफ करने के लिए अदालत को दरख्वास्त देनी पड़ती है। वे सब लोग जो अपराधिक मामलों में अदालतों में आते हैं इन दिनों चुनाव में इस या उस प्रत्याशी के लिए प्रचार में व्यस्त हैं। आज ही लगभग सभी फौजदारी मुकदमों में उन्हें हाजरी मुआफी की दरख्वास्तें पेश करनी पड़ी हैं। फिर नज़दीक आ कर फुसफुसाया कि “सारे गुंडे मवाली चुनावों में व्यस्त हैं”

कुछ अन्य लोगों से बात करने पर एक तथ्य और सामने आया कि बहुत से लोग जेल से पेशी पर आए लोगों से मिलने और अभियुक्तों को देखने के लिए अदालत आते हैं। क्यों कि उन्हें अदालत परिसर में स्थित हवालात से अदालत तक लाने ले जाने के वक्त उन से बात करने का अवसर मिल जाता है। कभी कभी भारी अपराधी व्यक्ति फंस जाता है तो उस के तमाम समर्थक वहाँ उस का हौसला या ठसका बढ़ाने के लिए भी अदालत आते हैं। वे सब भी आज कल चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं।

मुझे यदि अदालत पहुँचने में 11 बजे से ऊपर का समय हो जाता है तो अक्सर मुझे अपनी कार खड़ी करने के लिए स्थान तलाशना पड़ता है। लेकिन दो दिनों से उस के लिए स्थान खाली मिल रहा है। इस से यह भी लगने लगा है कि वे रसूख वाले लोग जो अदालत में कारें ले कर आते हैं वे भी आज कल इसी लिए अदालत का रुख नहीं कर रहे हैं क्यों कि वे भी चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं।

अदालतें जैसी ही हालत इन दिनों कलेक्ट्री और उस के साथ अनिवार्य रूप से जुड़े दफ्तरों की है। वहाँ भी अदालतों जैसा ही माहौल है।  कुल मिला कर अदालतों में सन्नाटा व्याप्त है, सकून है, शांति है। अदालतें चल रही हैं, काम बिना किसी रुकावट के चल रहा है और तेजी से भी चल रहा है। और दिनों की अपेक्षा अधिक काम हो रहा है।

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