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अनेक हितबद्ध व्यक्तियों की और से एक व्यक्ति न्यायालय की अनुमति से वाद प्रस्तुत कर सकता है

पिछले सप्ताह हमने जाना था कि किस प्रकार दीवानी  दावों में अनेक वादियों और प्रतिवादियों का संयोजन हो सकता है। अब प्रश्न यह सामने आता है कि जब एक से अधिक वादी और प्रतिवादी हों तो न्यायालय क्या अनेक प्रतिवादियों या वादियों के विरुद्ध या पक्ष में अलग अलग निर्णय दे सकता है? दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 4 में यह व्यवस्था दी गई है कि यदि वादियों में से एक या अधिक जिस अनुतोष के अधिकारी माने जाएँ उस के पक्ष में न्यायालय वही अनुतोष प्रदान कर सकता है। इसी तरह प्रतिवादियों में से एक या अधिक जिस अनुतोष के दायी पाए जाएँ उन से वह अनुतोष उन के दायित्वों के अनुसार दिलाया जा सकता है। किसी वाद में किसी व्यक्ति को प्रतिवादी के रूप में संयोजित करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक प्रतिवादी किसी दावे में दावाकृत संपूर्ण अनुतोष के बारे में हितबद्ध हो (आ.1नि.5)

ब किसी संविदा के आधार पर दावा किया जाए तो उस संविदा के आधार पर संयुक्ततः और पृथकतः दायी सभी या किन्ही व्यक्तियों को एक ही वाद के पक्षकारों के रूप मे संयोजित किया जा सकता है जिस में विनिमय पत्रों, हुण्डियों और वचनपत्रों के पक्षकार भी हो सकते हैं। (आ.1नि.6) यदि किसी वाद में वादी को संदेह हो कि वह व्यक्ति कौन हो सकता है जिस से उसे राहत प्राप्त हो सकती है तो वह दो या अधिक प्रतिवादियों का संयोजन कर सकता है जिस से प्रतिवादियों के मध्य यह निर्धारित किया जा सके कि उन में से किस पर किस सीमा तक राहत प्रदान करने का दायित्व है।(आ.1नि.7)

हाँ किसी वाद में एक जैसा हित रखने वाले अनेक व्यक्ति हों वहाँ इस प्रकार हितबद्ध व्यक्तियों की ओर से उन के लाभ के लिए ऐसे व्यक्तियों में से एक व्यक्ति या अनेक व्यक्तियों द्वारा दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 8 के अन्तर्गत ऐसा वाद लाया जा सकता है, या उन के विरुद्ध वाद लाया जा सकता है या वै ऐसे वाद में प्रतिरक्षा कर सकते हैं। लेकिन इस के लिए न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा आवश्यक होगी। न्यायालय स्वयं भी अपनी ओर से इस तरह वाद लाने, प्रतिरक्षा करने या उनके विरुद्ध वाद लाने का निर्देश दे सकता है। लेकिन ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय ऐसे तमाम व्यक्तियों को व्यक्तिगत रूप से तामील करा कर या जहाँ ऐसे व्यक्तियों की संख्या अत्यधिक हो तो और व्यक्तिगत रूप से तामील कराया जाना युक्तियु्क्त रूप से साध्य न हो तो लोक विज्ञापन द्वारा वाद के संस्थित हो जाने की सूचना वादी के खर्चे पर देगा। ऐसी स्थिति में जब कोई वाद किन्हीं व्यक्तियों की और से उन के फायदे के लिए लाया गया हो, ऐसे वाद में प्रतिरक्षा की जाती है तो उन में से कोई भी या सभी  उस मामले में पक्षकार बनाये जाने का न्यायालय को आवेदन कर सकते हैं। लेकिन ऐसे वाद में दावे के किसी भाग को या संपूर्ण वापस नहीं लिया जा सकेगा। ऐसे वाद में कोई अनुबंध, समझौता, या तुष्टि नहीं की जा सकती जब तक कि वादी के खर्चे पर ऐसे सब लोगों को न्यायालय द्वारा सूचित नहीं कर दिया गया हो। जहाँ ऐसे वाद में वाद लाने वाला व्यक्ति या प्रतिरक्षा करने वाला व्यक्ति तत्परता के साथ कार्यवाही नहीं करता है वहाँ न्यायालय उस वाद में वैसा ही हित रखने वाले किसी अन्य व्यक्ति को उस के स्थान पर रख सकता है। इस नियम के तहत प्रस्तुत वाद में पारित डिक्री उन सभी व्यक्तियों के प्रति आबद्धकारी होगी जिन हित के लिए वाद लाया गया है अथवा जिन की ओर से प्रतिरक्षा की गई है।

दीवानी प्रकिया संहिता का यह नियम अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस के अंतर्गत सार्वजनिक महत्व के वाद लाए जा सकते हैं। मसलन पूरे मोहल्ले के व्यक्ति किसी न्यूसेंस से व्यथित हों तो मुहल्ले का कोई एक व्यक्ति उन सभी व्यथित व्यक्तियों की ओर से न्यूसेंस उत्पन्न करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध न्यायालय की अनुमति से ऐसा वाद प्रस्तुत कर सकता है।

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