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अपंजीकृत दानपत्र विधि की दृष्टि में शून्य और अकृत है।

ऊसरसमस्या-

संजय कुमार यादव ने उन्नाव उत्तर प्रदेश से पूछा है-

मेरे पिता जी के पास 4 बीघा जमीन थी। मेरे पिता जी दो भाई हैं। दूसरे भाई की नौकरी पुलिस विभाग मे लग गई है। मेरे चाचा जी के पास कोई जमीन नहीं थी। उन्हों ने पिता जी से किसी तरह से 1 बीघा जमीन दान द्वारा प्राप्त कर ली थी। दान-पत्र पर कुछ गांव के ही लागों ने गवाही के तौर पर नाम भी लिखा है। जिसको रजिस्टर्ड नहीं कराया गया है। कुछ दिनों से चाचाजी पिता जी को परेशान कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि पूरी जमीन उनको दे दें। परन्तु पिता जी अब उन्हें कुछ नहीं देना चाहते और वो यह चाहते हैं कि जो 1 बीघा जमीन उन्हों ने चाचाजी को दी थी वह भी वापस ले लें। क्योंकि चाचा जी गांव में रहते नहीं हैं और वो जमीन को बेचना चाहते हैं। क्या कोई तरीका है जिससे हम अपनी जमीन वापस पा सकें?

 

समाधान-

किसी भी स्थाई संपत्ति का दान पत्र यदि संपत्ति का मूल्य 100 रुपए से अधिक का हो तो उसे पंजीकृत होना चाहिए। आप के पिताजी द्वारा लिखा गया दानपत्र इस जरूरी शर्त को पूरा नहीं करता इस कारण वह दानपत्र कानून की निगाह में व्यर्थ है। इस दान पत्र के आधार पर तो राजस्व विभाग के रिकार्ड में नामान्तरण नहीं कराया जा सकता। इस स्थिति के अनुसार उक्त जमीन आज भी आप के पिताजी की ही है। जिसे आप दान समझ रहे हैं वह शून्य और अकृत है।

प के पिता जी को उक्त जमीन के मामले में कुछ भी करने की जरूरत नहीं है। बस वेउस 4 बीघा जमीन पर अपना कब्जा बनाए रखें।

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