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आर्य समाज में विवाह के उपरांत पत्नी और उस के परिजन विवाह से इंन्कार कर रहे हैं, क्या किया जाए?

पी. साहू ने पूछा है ….

मेरे दोस्त की शादी हए दो वर्ष हो चुके हैं, आर्य समाज में लव मैरिज हुई थी। लेकिन वे दोनों साथ-साथ नहीं रहते हैं। अभी लड़की शादी से इन्कार कर रही है और उस के घर वाले भी उस शादी को फर्जी बताते हुए उस को नहीं मान रहे हैं। लड़की भी अपने परिवार की भाषा बोल रही है। शादी के समय लड़की और लड़का दोनों वयस्क थे। ऐसी स्थिति में उन्हें क्या करना चाहिए? और लड़का उस लड़की को कदापि नहीं छोड़ना चाहता है। कृपया सलाह दें।  
उत्तर –

साहू जी!

आर्य समाज में जो विवाह होते हैं वे सभी हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत होते हैं।  आर्य समाज वाले आम तौर पर विवाहों की पंजिका रखते हैं और प्रमाणपत्र जारी करते हैं। विवाह के पूर्व यह भी जानकारी कर लेते हैं कि दोनों पक्ष विवाह के योग्य हैं या नहीं और विवाह दोनों की पूर्ण सहमति से हो रहा है अथवा नहीं। इस कारण से आर्यसमाज में संपन्न विवाह पूरी तरह से वैध है। यदि पत्नी विवाह के उपरांत विवाह से इन्कार करती है और पति के साथ रहने से इन्कार करती है तो पति के पास उस का उपाय यही है कि वह परिवार न्यायालय अथवा जिला न्यायालय जिसे भी क्षेत्राधिकार प्राप्त हो उस के समक्ष हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन के लिए आवेदन प्रस्तुत करे। वहाँ यह बात तय हो जाएगी कि उन का विवाह वैध है अथवा नहीं। यह बात तय हो जाने पर दाम्पत्य अधिकारों के प्रत्यास्थापन की डिक्री पारित हो जाएगी। 
यदि यह डिक्री पारित हो जाने के उपरांत भी पत्नी अपने पति के साथ नहीं रहना चाहती है तो फिर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना ही एक मात्र साधन शेष रह जाएगा। क्यों कि किसी भी पत्नी या व्यक्ति को अपने साथ रखने के लिए जबरन तो बाध्य नहीं किया जा सकता है। दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना की डिक्री पारित होने के उपरांत विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करना आसान होगा। और यदि आप को लगता है कि पत्नी उस के माता-पिता और अन्य परिजनों के दबाव में मना कर रही है तो यह भी परिवार न्यायालय में समझौते की कार्यवाही के दौरान पता लग जाएगा।
यदि आप समझते हैं कि पत्नी पर से दबाव हटते ही वह पत्नी के साथ रहने को तैयार हो जाएगी तो फिर आप उच्चन्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर के पत्नी को वहाँ पेश करने का आदेश प्राप्त कर सकते हैं अथवा जिला मजिस्ट्रेट, उपखंड मजिस्ट्रेट या प्रथम खंड मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 98 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत आवेदन कर के भी विधिविरुद्ध रोकी गई पत्नी को वापस करने के लिए वारंट जारी करवा कर उसे वहाँ बुलवा सकते हैं। लेकिन दोनों ही स्थानों पर पत्नी के बयान होंगे और पत्नी को उस की इच्छानुसार रहने को स्वतंत्र कर दिया जाएगा। उस के उपरांत यदि वह आप के मित्र के साथ रहना चाहती है तो उस के साथ रह लेगी और यदि वह अपने माता-पिता के साथ ही रहना चाहती है या अन्यत्र रहना चाहती है तो वहाँ जाने के लिए स्वतंत्र होगी।
यदि यह स्त्री चाहती है कि वह दूसरा विवाह कर ले या उस के माता-पिता उस का दू

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