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उत्तरप्रदेश में कृषि भूमि पर उत्तराधिकार की विधि

तीसरा खंबा को अक्सर यह प्रश्न मिलता रहा है कि माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार में पुत्री की स्थिति क्या है। उत्तराधिकार का प्रश्न सदैव व्यक्ति की व्यक्तिगत विधि से शासित होता है। जो हिन्दू हैं उन का उत्तराधिकार हिन्दू विधि से तथा अन्य धर्मावलंबियों का उत्तराधिकार उन की व्यक्तिगत विधि से शासित होता है। परंपरागत हिन्दू विधि में विवाहित पुत्री माता-पिता की उत्तराधिकारी नहीं माना गया था। लेकिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में पुत्री के इस अधिकार को स्वीकार किया गया। वर्तमान स्थिति यह है कि एक हिन्दू माता-पिता की पुत्री को अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकार के लिए पुत्रों के समान ही अधिकार प्राप्त हैं। कृषि भूमि के संबन्ध में सभी राज्यों में वैसी स्थिति नहीं है। कृषि भूमि राज्यों का विषय है और समस्त कृषि भूमि को राज्य की संपत्ति माना गया है। कृषक को कृषि भूमि पर कृषि करने मात्र का अधिकार होता है जिसे सांपत्तिक अधिकार न मान कर ऐसा अधिकार माना गया है जैसा कि किसी अन्य स्थावर संपत्ति के मामले में किराएदार को होता है। इस कारण से कृषि भूमि पर कृषक के अधिकार का उत्तराधिकार राज्य में कृषि भूमि से संबन्धित कानून से शासित होता है। 
कानूनी सलाह के लिए अधिकांश प्रश्न उत्तर प्रदेश राज्य से प्राप्त हुए हैं। उत्तर प्रदेश राज्य में कृषि भूमि का उत्तराधिकार उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 सेशासित होता है। इस अधिनियम के प्रावधानों का आधार उत्तराधिकार की परंपरागत हिन्दू विधि जिस में स्त्रियों को अत्यन्त सीमित अधिकार प्राप्त थे तथा 1937 में पारित हिन्दू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम है।  यह विधि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 द्वारा संहिताबद्ध विधि से पिछड़ी हुई विधि है। हालाँकि कृषि भूमि के उत्तराधिकार के संबंध में उत्तर प्रदेश में प्रचलित इस विधि मेंलगातार संशोधन होते रहे हैं। इस विधि में पहले प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में अविवाहित पुत्री सम्मिलित नहीं थी। लेकिन अब 2008 में किए गए संशोधन से उसेप्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में सम्मिलित कर लिया गया है जो 1 सितंबर 2008 से प्रभावी हुआ है।
स अधिनियम के अनुसार किसी पुरुष भूमिधर जिस ने अपनेजीवनकाल में अपनी भूमि के सम्बन्ध में कोई वसीयत नहीं की है उस की भूमि काउत्तराधिकार उत्तरप्रदेश जमींदारी उन्मूलन एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 की धारा 171 से शासितहोता है। इस धारा की उपधारा (2) में कई खंडों की एक सूची दी हुई है। सब से पहले इससूची के (क) खंड में सम्मिलित किए गए नातेदारों को मृतक भूमिधर की भूमि समान भागोंउत्तराधिकार में प्राप्त होती है। यदि (क) खंड में सम्मिलित कोई भी नातेदार जीवितनहीं है तो संपत्ति (ख) खंड में सम्मिलित किए गए नातेदारों को समान रूप से प्राप्तहोती है। यदि (ख) खंड में सम्मिलित कोई भी नातेदार जीवित नहीं है तो संपत्ति (ग) खंड में सम्मिलित किए गए नातेदारों को समान रूप से प्राप्त होती है। इसी तरह की उत्तरवर्ती व्यवस्था आगे के खंडों के लिए की गई है

हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 में एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह संभव नहीं रह गया है लेकिन उस के पहले विवाहित व्यक्ति की एक से अधिक पत्नियाँ होना संभव है। उन के लिए इस धारा में यह व्यवस्था की गई है कि उन सभी विधवाओं को मिल कर एक अंश प्राप्त होगा तथा वे उस एक वंश में से समान भाग उत्तराधिकार में प्राप्त करेंगी। विधवा या विधवा माता या अन्य कोई विधवा जो इस सूची के अनुसार उत्तराधिकारी पायी जाती है तो भी उस का अधिकार तभी तक रहेगा जब तक कि वह पुनर्विवाह नहीं कर लेती है।

क्त उपबंधों के अधीन धारा 171 की उपधारा (2) में दी गई अनुसूची निम्न प्रकार है –

 

(क)      विधवा, अविवाहिता पुत्री, तथा पुंजातीय वंशज प्रतिशाखा के अनुसार :- परन्तु यह कि पूर्व मृत पुत्र की विधवा और पुत्र को, चाहे वह जितनी भी नीचे की पीढ़ी में हो प्रतिशाखा के अनुसार वह अंश उत्तराधिकार में मिलेगा जो पूर्व मृत पुत्र को, यदि वह जीवित होता, मिलता;

{खंड (क) में अविवाहिता पुत्री को 2008 में हुए संशोधन से सम्मिलित किया गया है जो दिनांक 1 सितम्बर 2008 से प्रभावी हुआ है।}

 (ख)     माता और पिता;

(ग)      (//////////); (यह भाग इस स्थान से विलुप्त कर दिया गया है)

(घ)      विवाहिता पुत्री;

(ङ)      भाई और अविवाहिता बहिन जो क्रमशः एक ही मृत पिता के पुत्र और पुत्री हों; और पूर्व मृत भाई का पुत्र, जब पूर्व मृत भाई एक ही मृत पिता का पुत्र हो;

(च)      पुत्र की पुत्री;

(छ)      पितामही और पितामह;

(ज)      पुत्री का पुत्र;

(झ)      विवाहिता बहिन;

(ञ)     सौतेली बहिन, जो एक ही मृत पिता की पुत्री हो;

(ट)      बहिन का पुत्र;

(ठ)      सौतेली बहिन का पुत्र, जब सौतेली बहिन एक ही मृत पिता की पुत्री हो;

(ड)      भाई के पुत्र का पुत्र;

(ढ)      नानी का पुत्र;

(ण)      पितामह का पौत्र 

 किसी भी पुरुष भूमिधर की मृत्यु के उपरांत मृतक की विधवा, अविवाहिता पुत्री तथा उस के पुत्र एक समान अंश के अधिकारी होंगे। यदि किसी पुत्र का पूर्व में ही देहान्त हो चुका है तो उस की विधवा और पुत्र को समान उस का अंश प्राप्त होगा। यदि इन में से कोई भी जीवित नहीं हो तो ही खंड (ख) में सम्मिलित किए गए उत्तराधिकारियों को समान अंश प्राप्त होंगे। इस तरह हम देखते हैं कि कृषिभूमि पर अविवाहिता पुत्री को पुत्र के समान ही उत्तराधिकार का अधिकार 2008 के संशोधन से प्राप्त हो गया है। लेकिन यह संशोधन दिनांक 1 सितम्बर 2008 से प्रभावी होने के कारण जिस पुत्री के पिता का देहान्त उक्त तिथि के पूर्व हो चुका हो उसे यह अधिकार प्राप्त होगा या नहीं इस संबंध में उसे किसी स्थानीय अधिवक्ता से सलाह करनी चाहिए।

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