DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

ओवरटाइम मांगने पर धमकी, क्या करें?

trade unionसमस्या-
सौरभ कुमार ने भागलपुर, मायागंज, बिहार से समस्या भेजी है कि
मैं भागलपुर डेयरी, भागलपुर  में जूनियर टेक्नीशियन के पद पर काम करता हुँ ! मुझे १ साल से अतिकाय भुगतान नहीं मिला है। आवेदन कई बार दे चुका हूँ कोई सुनवाई नहीं होती है। शाखा प्रभारी को कहने पर नौकरी से निकालने, प्रमोशन रोकने जैसी धंमकी मिलती है। बताएँ मैे क्या कर सकता हूँ?

समाधान-

वरटाइम काम करने पर दुगनी दर से मजदूरी प्राप्त करना कामगार का कानूनी अधिकार है। जो सीधे सीधे एक दिन में 8 घंटे से अधिक काम न लिए जाने के अधिकार के साथ जुड़ा है। कानून बन जाने के बाद भी कोई भी नियोजक चाहे वह बड़ा पूंजीपति हो या छोटा, कोई सहकारी संस्था हो या फिर सरकारी, अर्धसरकारी संस्था, इस अधिकार को नहीं देना चाहती। वह ओवरटाइम काम कराती है, जब कामगार उस की मजदूरी मांगता है तो उसे इस तरह की धमकियाँ देती है।

नौकरी से गैर कानूनी तरीके से नहीं निकाला जा सकता। लेकिन यदि निकाल दिया जाए तो कामगार क्या करे? वह केवल मुकदमा कर सकता है। मुकदमा भी केवल श्रम न्यायालय के माध्यम से कर सकता है। श्रम न्यायालय जरूरत से इतने कम हैं कि कई मुकदमे 30 सालों से भी अधिक समय से वहाँ लंबित हैं। पूरा जीवन मुकदमा लड़ने में गुजर जाता है और अदालत फैसला नहीं देती।  दे भी दे तो आगे उच्च न्यायालय है, उच्चतम न्यायालय है। नियोजक कुछ भी कर लेंगे लेकिन कामगार को उस का कानूनी अधिकार न देंगे। यही इस युग का सच है। यह पूंजी का युग है, उस की तूती बोलती है, इस पूंजी का निर्माण श्रम से होता है, लेकिन श्रम करने वाला पूंजी पर कब्जा जमाए पूंजीपतियों के सामने लाचार, बेबस है।

15-20 वर्ष पूर्व तक अदालतें गैर कानूनी तरीके से नौकरी से निकाले कामगार को उस के पिछले पूरे वेतन समेत नौकरी पर लेने का फैसला देती थी। धीरे धीरे यह पूरा वेतन 3/4, 1/2, 1/4 तक हो गया और अब 1/5 तक पहुँच चुका है। मुकदमे के निर्णय में देरी अदालत के पास काम की अधिकता के कारण होती है लेकिन अब अदालत मानती है कि देरी हो जाने से कामगार का फिर से नौकरी पर जाने का अधिकार खत्म हो गया है। उसे मुआवजा दिलाया जा सकता है। यह मुआवजा 10-20-40-50 ह्जार तक हो सकता है। किसी किसी मामले में लाख तक हो जाता है। न्याय इतना मंहगा हो गया है कि इतना पैसा मुकदमा लड़ने, वकील को देने और आने जाने में खर्च हो जाता है।

कुल मिला कर हालात ऐसे बना दिेए गए हैं कि कामगार सिर्फ और सिर्फ नियोजक की शर्तों पर काम करे, खटता रहे। वर्ना नौकरी करने की बात न सोचे। इन हालात के लिए किसे जिम्मेदार कहा जाए? वास्तव  में इस के लिये खुद श्रमजीवी वर्ग जिम्मेदार है। उस के पास सिर्फ एक ताकत होती है, वह होती है एकता और उस के बल पर संघर्ष। उस ने इस ताकत को खो दिया है। इसी कारण पूंजी ने सारी सत्ता हथिया ली है श्रमजीवी और कामगार उन के सामने मजबूर हैं।

मित्र, मैं ने वास्तविक हालत यहाँ बताए हैं। लेकिन इस का अर्थ ये तो नहीं कि आप न्याय के लिए लड़ना छोड़ दें। आप नहीं लड़ेंगे तो हालात और बदतर होते जाएंगे। अब श्रमजीवी वर्ग के लिए कानूनी और व्यक्तिगत लड़ाई का वक्त नहीं रहा है। अब श्रमजीवी वर्ग  के पास संगठित होने और अपनी खुद की राजनीति को मजबूत कर राज्य पर अपना वर्गीय आधिपत्य स्थापित करने के  सिवा कोई मार्ग इस देश में शेष नहीं बचा है। आप इसे अभी समझना चाहें तो अभी समझ लें। न समझना चाहें तो न समझें। देर सबेर आप को परिस्थितियाँ यह सब समझा देंगी।

आप को अपने अधिकारों के लिए लड़ना तो होगा। नौकरी से निकाले जाने और प्रमोशन न होने के खतरों को दर किनार कर के लड़ना होगा। आप के आस पास मजदूरों की जो भी मजबूत यूनियन हो उस से संपर्क करें। उन की मदद से श्रम विभाग को शिकायत करें कि आप को ओवरटाइम मजदूरी नहीं दी जा रही है और नौकरी से निकालने, प्रमोशन रोकने की धमकी दी जा रही है। ओवर टाइम मजदूरी जो नहीं दी जा रही है उस के लिए वेतन भुगतान अधिनियम में आवेदन प्रस्तुत करें। यदि आप इन परिणामों से डरते हैं तो कुछ न करें। एक मध्यकालीन गुलाम की तरह जीने के लिए तैयार रहें।

Print Friendly, PDF & Email