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कसाब को पैरवी का अधिकार क्यों दें?

भारत में किसी भी व्यक्ति को जिस पर किसी अपराध का अभियोग हो कानून के जानकार से अपनी पैरवी कराने का अधिकार है। उसे यह अधिकार भारतीय कानून ने दिया है। यदि हम न्याय प्रिय हैं तो हमें अपने ही कानून को बेइज्जत करने का कोई अधिकार नहीं है। जब एक अपराधी को रंगे हाथों पकड़ा गया है। उस के विरुद्ध हमारे पास ढेर सारे सबूत हैं, तो फिर हम उसे यह अधिकार क्यों नहीं देना चाहते हैं? जी हाँ मैं अजमल आमिर कसाब की ही बात कर रहा हूँ। किसी भी व्यक्ति को पैरवी का अधिकार देना सभ्यता के प्रथम चरण की निशानी है। किसी की पैरवी करने का अर्थ उस की तरफदारी करना बिलकुल भी नहीं है। केवल न्याय की प्रक्रिया में हाथ बंटाना मात्र है। क्या इस अधिकार से किसी भी व्यक्ति को वंचित करना स्वयं अपने ही द्वारा स्थापित न्याय के मूल्यों को हत्या कर देना नहीं है?

विधिक सहायता पैनल के दिनेश मोटा ने कसाब की पैरवी करने से इन्कार कर दिया, यह कहते हुए कि  उस ने अपनी बंदूक की नली भारतीयों की ओर खोल दी थी, सैंकड़ों लोग उस की और उस के साथियों की गोलियों का निशाना बने और मौत की नींद सो गए। वे सभी मेरे परिवार के ही लोग थे। मैं कैसे उस की पैरवी कर सकता हूँ? यही बात मुम्बई के वकीलों की संस्था कह रही है। कोई भी उस की पैरवी के लिए सामने नहीं आ रहा है। आज शिवसेना ने वकील अशोक सरोगी के घर पर प्रदर्शन किया और वास्तव में उन के साथ हाथापाई की गई। उन्हों ने भी कसाब की पैरवी करने से इन्कार कर दिया। इस तरह से देश में उठे भावनात्मक ज्वार ने अपने ही कानून के पालन को अपनी ही मर्यादा को चौराहे पर ला खड़ा किया है।

भावना एक अलग चीज है। लेकिन अपनी मर्यादा का भी एक महत्व है। क्या हमारे इतिहास पुरुषों ने अपनी मर्यादा की रक्षा में कोई कमी रखी? क्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने कभी निहत्थे पर हाथ उठाया? क्या उन्हों ने किसी को भी उस का पक्ष रखे बिना दंड दिया। फिर क्यों हम एक भावनात्मक ज्वार में बहे जा रहे हैं?

अब यह तर्क आया है कि कसाब भारत का नागरिक नहीं और भारत की भूमि पर उस ने वैध रूप से प्रवेश नहीं किया। जिस के कारण वह प्रतिरक्षा का अधिकार नहीं रखता है।  लेकिन क्या यह तर्क भी गढ़ा गया तर्क,  बल्कि किसी भी व्यक्ति को हमारे अपने कानून के द्वारा दिए गए अधिकार को देने से इन्कार करने का एक कुतर्क नहीं है?

चलिए हम उसे मृत्यु दंड दे ही दें, यदि इस से आतंकवाद या उस के विरुद्ध लड़ाई का अंत हो जाए। आज कसाब भारत का अपराधी तो है ही। लेकिन उस से अधिक और भी बहुत कुछ है। वह इस बात का सबूत भी है कि आतंकवाद किस तरह पाकिस्तान की धरती, पाकिस्तान के साधनों और पाकिस्तान के लोगों का उपयोग कर रहा है। वह आतंकवाद की जड़ों तक पहुँचने का रास्ता भी है। वह आतंकवाद के विरुद्ध हमारे संघर्ष में एक मार्गप्रदर्शक भी है। वह हमारा हथियार बन चुका है। ऐसी अवस्था में हमारे इस सबूत, रास्ते, मार्गप्रदर्शक और हथियार को सहेज रखने की जिम्मेदारी भी हमारी है।

आज वक्त है कि हम भावना से ऊपर उठ कर विचार करें। हमारी अपनी जरूरतों और प्राथमिकताओं को समझें। हम हमारी अपनी लड़ाई को समझें। हम कल की उस बात को देखें जब एक बहादुर सिपाही ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना कसाब को जिंदा पकड़ने की खातिर अपने पेट में अनगिनत गोलियाँ खाई थीं। हम आने वाले कल की ओर भी देखें जब हम आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में आगे बढ़ेंगे। यह लड़ाई आज केवल हमारी अपनी नहीं है। यह दुनिया भर के शांतिप्रिय नागरिकों की लड़ाई है मुट्ठी भर आतंकवादियों के विरुद्ध। क्या हम अपनी भावनाओं के ज्वार में बह कर ऐसी गलती कर बैठेंगे जिस से दुनिया भर को यह कहने को मिले कि भारत एक अकेले व्यक्ति को पैरवी का अधिकार भी नहीं दे सका, दुनिया यह भी कहे कि जिस व्यक्ति को दोषी पाया गया उस के खिलाफ

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