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किसी भी प्रकार का भय दिखा कर रुपया वसूल करना उद्दापन, फिरौती (Extortion) का अपराध है

 दीपक जी ने पूछा है –
शासन द्वारा लागू किये गये सूचना के अधिकार अधिनियम के अन्‍तर्गत कुछ छोटे मोटे साप्‍ताहिक पत्रकारों द्वारा कर्मचारियों से संबंधित जानकारी चाही जाती है, जैसे उसकी नियुक्ति कैसे की गई? वेतन कितना है? समाचार पत्र में विज्ञप्ति प्रकाशित हुई कि नहीं?  इस प्रकार की जानकारी चाह कर कर्मचारियों को परेशान किया जाता है, साथ ही उनसे दूरभाष अथवा किसी अन्‍य व्‍यक्ति के जरिये इस प्रकार का आवेदन कार्यालय से वापस लेने निरस्‍त करने हेतु रूपये 10000 तक मांगे जाते हैं। मेरे साथ भी कुछ इसी प्रकार की घटना हुई। चूंकि आज से 15 से 20 वर्ष पहले कलेक्‍टर दैनिक वेतन पर या निश्चित वेतन पर कर्मचारी को रखकर उसे नियमित कर दिया जाता था। जिसके संबंध में कोई विज्ञप्ति आदि प्रकाशित भी नहीं की जाती है। जैसा की वर्तमान में किया जाता है ये पत्रकार ऐसे कर्मचारियों को ब्‍लेकमेल कर रूपया वसूल करते हैं।  हाल ही में मेरी नियुक्ति के बारे में  जानकारी एक पत्रकार द्वारा चाही गई।  साथ ही उसे वि‍भिन्‍न पत्रों में मेरे नाम के साथ प्रकाशित भी करा दिया गया। मैं जानना चाहता हूँ कि ऐसे पत्रकारों पर क्‍या कार्यवाही और कैसे की जा सकती है क्‍योंकि जिस समाचार पत्र में मेरे संबंध में खबर छपी, उसने मेरी जानकारी कभी मांगी ही नहीं। मेरे द्वारा तंग आकर एक दो पत्रकारों का स्टिंग आपरेशन भी किया तथा आडियो एवं वीडियो क्लिप भी उपलब्‍ध है। जिसमें सूचना के अधिकार के अन्‍तर्गत अपील न करने के संबंध में रूपये 10000 की मांग की जा रही है। चूँकि मै पत्रकार का स्टिंग करना चाहता था अंत मैं ने अपने सेलेरी खाता से रूपये 5000 निकाल कर दे भी दिये। उक्‍त प्रकरण में मैं किस प्रकार की कार्यवाही कर सकता हूँ जिससे संबंधित को सजा हो सके। मैं और अन्‍य पाठक आपकी इस सलाह के लिए आपके आभारी रहेंगे।
 उत्तर –
दीपक जी,
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 383 में उद्दापन अर्थात् फिरौती को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

धारा 383. उद्दापन, फिरौती (Extortion)

जो कोई किसी व्यक्ति को स्वयं उस व्यक्ति को या किसी अन्य व्यक्ति को कोई क्षति करने के भय में साशय डालता है, और तद्वारा इस प्रकार भय में डाले गए व्यक्ति को कोई सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति या हस्ताक्षरित या मुद्रांकित कोई चीज जिसे मूल्यवान प्रतिभूति में परिवर्तित किया जा सके, किसी व्यक्ति को परिदत्त करने के लिए बेईमानी से उत्प्रेरित करता है, वह ‘उद्दापन’ करता है।  

  • धारा 384 के अंतर्गत उद्दापन का यह अपराध तीन वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास व जुर्माने से दंडनीय है। 
  • धारा 385 के अंतर्गत उद्दापन करने के उद्देश्य से कोई व्यक्ति किसी को भय में डालेगा या डालने का प्रयास करेगा तो उस का अपराध दो वर्ष के सश्रम या साधारण कारावास  या जुर्माने से दंडनीय है। 
  • धारा 386 के अंतर्गत मृत्यु या घोर उपहति के भय में डाल कर उद्दापन करने वाले का अपराध दस वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास से दंडनीय है।
  • धारा 387 के अंतर्गत उद्दापन के उद्देश्य से मृत्यु या घोर उपहति के भय में डालने का अपराध सात वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास से दंडनीय है।
  • धारा 388 के अंतर्गत मृत्यु या आजीवन कारावास या दस वर्ष तक दंड से दंडनीय अपराध के अभियोजन की धमकी देकर उद्दापन करने का अपराध दस वर्ष तक के सश्रम या साधारण कारावास से दंडनीय है। यदि जिस अपराध के अभियोजन का भय दिखाया गया है वह धारा 377 के अधीन दंडनीय है तो वह आजीवन कारावास से दंडनीय होगा।  
  • धारा 389 के अंतर्गत धारा 388 के अंतर्गत वर्णित अपराध करने के लिए भय दिखलाने का प्रयत्न करने पर भी दंड धारा 388 के अनुरूप ही होगा। 

क्त अपराधों में से धारा 386 व 387 के अंतर्गत वर्णित अपराध अजमानतीय हैं। अर्थात उन में पुलिस किसी अभियुक्त को जमानत पर नहीं छोड़ सकती, केवल न्यायालय ही अभियुक्त को जमानत पर छोड़े जाने के लिए विचार कर सकता है। लेकिन अन्य अपराधों के मामले में पुलिस को अभियुक्त द्वारा जमानत प्रस्तुत करने पर उसे रिहा करना होगा क्यों कि अन्य सभी अपराध जमानतीय हैं।

परोक्त विवरण से स्पष्ट हो गया होगा कि आप को धमकी दे कर और आप का उद्दापन कर के कथित पत्रकारों ने  क्या अपराध किया है। ये सभी अपराध संज्ञेय अपराध हैं, जिस के कारण पुलिस को सूचना देने पर पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर के अन्वेषण कर सकती है और अपराध होना पाया जाने पर अभियुक्त के विरुद्ध आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत कर सकती है। यदि पुलिस आप की सूचना पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करती है तो आप ये सूचना रजिस्टर्ड ए.डी. डाक के माध्यम से संबंधित पुलिस अधीक्षक को प्रेषित कर सकते हैं। उस पर भी कार्यवाही न होने पर आप सीधे न्यायालय को परिवाद प्रस्तुत कर सकते हैं।

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