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क्या वे अपनी लिव-इन-रिलेशनशिप को विवाह में बदल सकते थे?

वह अस्पताल में नर्स है और मैं मेल नर्स। उस का भी कोई नहीं और मेरा भी कोई नहीं।

मैं ने पूछा -कोई नहीं?

-होने को सब कोई हैं, माता-पिता थे, उन का देहान्त हो गया। भाई हैं, बहने हैं। पर उन में कोई मेरा नहीं।

-कैसे?

-यह अलग कहानी है। बाद में बताऊंगा। पहले हम एक तरफ तसल्ली से बैठेंगे, खड़े-खड़े बात नहीं हो सकेगी।

यह मेरे एक सहायक के विवाह की दावत थी। दूल्हा-दुल्हिन मंच पर बैठे थे। डीजे की रोशनियों और शोर में कुछ बच्चे उछल-कूद कर रहे थे कुछ तल्लीनता से नाच रहे थे। मुझे दावत छोड़ने में अभी समय था। अपने सहायक की दावत में पूरे समय न रहना उचित नहीं होता। हम इन सब से दूर एक कोने में आ कर कुर्सियों पर बैठ गए।

वह एक पचास पार का अधेड़ था। उस ने कहना शुरु किया।

-नर्स बीमार हो गई। उस को संभालने वाला कोई नहीं। मैं ने ही उसे संभाला। वह मेरा अहसान मानने लगी। मेरे नजदीक आ गई। उसे पता था मैं अकेला रहता हूँ। वह मेरे यहाँ आने लगी। एक दिन मैं बीमार था, ड्यूटी नहीं जा सका। कोई खबर भी अस्पताल को नहीं दे सका। वह मेरे घर आ गई। मुझे तेज बुखार में देखा। डाक्टर को बुला कर मुझे दिखाया। वह मियादी बुखार निकला। वह रात भर मेरे यहाँ रही मुझे संभाला। दूसरे दिन उस ने भी छुट्टी कर ली। तीसरे दिन मेरी हालत स्थिर हुई तो मैं ने जबरन उसे ड्यटी भेजा। मेरा अपना कोई मुझे संभालने नहीं आया। वह कोई पन्द्रह दिन मेरे यहाँ ही रही। बाद में स्थिति यह हुई कि हम साथ ही रहने लगे। उस का स्थानांतरण दूसरे अस्पताल में हो गया। हमें साथ रहते कोई पाँच बरस हो गए हैं। हम दोनों का एक दूसरे के अलावा कोई नहीं है।

मैं समझ गया कि यह एक सहावासी रिश्ता (लिव-इन रिलेशन) है।

मैं यह चाहता हूँ कि मेरे मरने के बाद मेरी सारी जायदाद उसे ही मिले। मैं यह भी चाहता हूँ कि मेरी नौकरी के लाभ मेरी पेंशन आदि भी उसे ही मिलें।

मैं ने कहा- सब कुछ उस के नाम वसीयत कर दो। वसीयत की रजिस्ट्री करा दो। पर नौकरी के सारे लाभ तो तभी मिलेंगे जब वह तुमसे शादी कर ले और तुम्हारी पत्नी हो जाए। तुम दोनों शादी क्यों नहीं कर लेते?

उस में दो अड़चनें हैं। मैं शादी नहीं कर सकता।

मैं ने पूछा -क्या अड़चन?

मैं जब पैदा हुआ तभी मेरे माँ-बाप जान गए थे कि मैं कभी शादी नहीं कर सकूंगा। मैं उस के काबिल नहीं था। उन्हों ने मुझे नौ-दस की उम्र में हिजड़ों के साथ कर दिया। पर मुझे स्कूल अच्छा लगता था। मुझे हिजड़ों ने ही पढ़ाया। मैं उन का लिखने पढ़ने का काम करता। उन्हें नर्सों की हमेशा जरूरत होती थी। उन्हों ने मुझे नर्सिंग का कोर्स करवा दिया। मैं ने प्रार्थना पत्र दिया तो सरकारी अस्पताल में नर्स हो गया।

ऐसी क्या कमी थी तुम में?

मेरे यौन अंग ही नहीं है। कैसे शादी करूं उस से?

सब दस्तावेजों में क्या लिखा है? पुरुष?

हाँ वहाँ तो पुरुष ही लिखा है। लेकिन सब को पता है मैं क्या हूँ।

-तो तुम पुरुष लिख कर उस से शादी क्यों नहीं कर लेते?

-वह तो बहुत कहती है। पर मैं उस की आजादी नहीं छीनना चाहता। अभी वह स्वतंत्र है। वह चाहे जिस से शादी कर सकती है। मैं यह चाहता भी हूँ कि वह किसी से शादी कर ले। लेकिन वह ही किसी और से शादी नहीं करना चाहती।

-तुम उस से शादी कर लो। बाकायदा जिला कलेक्टर जो विवाह रजिस्ट्रार भी है के यहाँ नोटिस दे कर शादी कर लो। वहाँ रजिस्टर भी हो जाएगी। प्रमाण पत्र अपने विभाग में पेश कर दो। उसे सब लाभ मिल जाएँगे।

-संकट यह है कि मेरे विभाग में मेरी असलियत सभी जानते है। वहाँ तो कोई कुछ नहीं कहेगा। लेकिन मेरे लाभों के लिए मेरे भाई वगैरह मेरे मरने के बाद जरूर दरख्वास्त देंगे। पेंशन किसी को नहीं मिलेगी। लेकिन दूसरे लाभों के लिए वे यह सब करेंगे।

मैं सोच में पड़ गया कि उसे क्या जवाब दूँ? हो सकता है कि कानून इसे शादी माने ही नहीं। फिर भी मैं ने दृढ़ता पूर्वक कहा कि -तुम शादी कर लो।

वह गुम सुम हो गया। फिर कहने लगा  -उस की शादी करने की आजादी छिन जाएगी।

उस की उम्र क्या है? मैं ने पूछा।

-पैंतालीस से ऊपर होगी।

अब वह इस आजादी का उपभोग नहीं करेगी। तुम शादी कर लो। तुम्हारे बाद कोई कुछ साबित नहीं कर सकता।

इतने में कोई मुझे बुलाने आ गया। हम उस एकांत से उठ लिए। कोई दो बरस हो गए हैं, इस बात को। वह मुझे नहीं मिला, और न ही उस की कोई खबर। मैं नहीं जानता उन्हों ने क्या किया। पर मेरे जेहन में यह प्रश्न आज भी है कि क्या वे शादी कर सकते थे?  और क्या उन की शादी को शून्य माना जा सकता था?

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