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जमानत के लिए कितनी बार आवेदन किया जा सकता है ?

रमेश जैन ने पूछा है …
धारा 498ए व 406 में किन-किन न्यायालयों में कितनी-कितनी बार जमानत के लिए आवेदन किया जा सकता है? क्या इसके लिए भी कोई सीमा तय होती है।
 क्या किसी भी अपराध के तहत लगाई जमानत याचिका ख़ारिज होने पर भी कोर्ट से कोई दस्तावेज मिलता है? अगर हाँ तो कब? इसकी सूचना किस-किस को भेजी जाती है?
 
उत्तर- – –
रमेश जी,
धारा  498ए व 406 भा.दं.संहिता ही नहीं, किसी भी मामले में जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है तो उस के लिए सब से पहले जमानत का आवेदन उस मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा जहाँ उसे गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने प्रस्त्तुत किया है। यदि वह न्यायालय जमानत का आवेदन निरस्त कर देता है तो जमानत का आवेदन उस न्यायालय पर क्षेत्राधिकार रखने वाले सत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जा सकता है। यदि आवेदन सत्र न्यायालय द्वारा भी अस्वीकार कर दिया जाए तो फिर उच्च न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है। एक बार किसी न्यायालय द्वारा जमानत आवेदन निरस्त कर दिए जाने के उपरांत जब तक परिस्थितियों में कोई वस्तुगत परिवर्तन नहीं होता है उस न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए, अन्यथा उसे प्रथम दृष्टया ही निरस्त कर दिया जाएगा। जमानत के आवेदन में यह अंकित किया जाना चाहिए कि पहले कितनी बार और कहाँ कहाँ जमानत का आवेदन किया जा चुका है और पूर्व का जमानत आवेदन निरस्त हो जाने के बाद मामले में क्या वस्तुगत परिवर्तन हुए हैं। कानून में एक से अधिक जमानत आवेदन प्रस्तुत करने में कोई बाधा नहीं है। इस कारण से किसी भी न्यायालय में जमानत आवेदन कितनी भी बार प्रस्तुत किया जा सकता है। 
तो जमानत का आवेदन स्वीकार होने पर और न ही  अस्वीकार होने पर न्यायालय से कोई दस्तावेज नहीं मिलता है। हाँ, जमानत आवेदन पर हुए आदेश की प्रतिलिपि उस के लिए प्रतिलिपि प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत कर के प्राप्त की जा सकती है। इस के लिए आवश्यक शुल्क निर्धारित है। लेकिन यदि अभियुक्त जिस की ओर से प्रतिलिपि के लिए आवेदन किया गया है न्यायिक या पुलिस अभिरक्षा में है तो प्रतिलिपि निशुल्क दी जाएगी। यदि किसी अभियुक्त की जमानत का आवेदन स्वीकार कर लिया जाता है तो सत्र न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय मजिस्ट्रेट के न्यायालय को अपने आदेश की प्रति प्रेषित करता है। यदि आदेशानुसार मजिस्ट्रेट के न्यायालय में जमानत प्रस्तुत कर दी जाती है और उसे मजिस्ट्रेट स्वीकार कर लेता है तो अभियुक्त को अभिरक्षा से छोड़े जाने का आदेश जेल को मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा स्वयं प्रेषित किया जाता है जिसे प्राप्त होने पर जेल अधिकारी संबंधित अभियुक्त को अपनी अभिरक्षा अपनी अभिरक्षा से मुक्त कर देता है।
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