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जानबूझ कर छुपाए तथ्य संशोधन के माध्यम से अभिवचनों में नहीं जोड़े जा सकते।

justiceसमस्या-

झाँसी, उत्तर प्रदेश से शिशिर सिंह ने पूछा है-

निचली अदालत में मुकदमे के दौरान अगर कोई तथ्य/सबूत छुपाया गया है, जिससे फैसले पर असर पड़ सकता हो तो क्या उसे बाद में उच्च अदालत में पेश किया जा सकता है? निचली अदालत में तथ्य छुपाकर जानबूझकर मुकदमा हारना और फिर उच्च अदालत में अपील करके मुकदमें की उचित पैरवी करना।  इस तरह की प्रैक्टिस क्या उचित मानी जाएगी?

समाधान-

प का सोचना बिलकुल सही है। किसी भी पक्ष को यह अनुमति नहीं है कि वह जानबूझ कर कोई तथ्य छुपाए और मुकदमे के परिणाम को प्रभावित करे। बाद में अपील न्यायालय में उस छिपाए गए तथ्य को सामने ला कर निचली अदालत के निर्णय को बदलने का प्रयत्न करे।

थ्य हमेशा अभिवचनों अर्थात वादपत्र, लिखित कथन और प्रार्थना पत्रों व उन के उत्तरों के माध्यम से न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए जाते हैं। अभिवचन का सामान्य नियम यह है कि सभी प्रासंगिक तथ्य अभिवचनों में सम्मिलित किए जाने चाहिए। लेकिन यदि किसी तथ्य की पक्षकार को जानकारी न हो और वह जानकारी बाद में हो तो उस तथ्य को वह बाद में संशोधन के माध्यम से अभिवचनों में सम्मिलित कर सकता है। लेकिन यदि यह साबित कर दिया जाए कि पहले उस तथ्य का ज्ञान अभिवचन करने वाले को था और उस ने जानबूझ कर छिपाया था तो ऐसा संशोधन कभी भी स्वीकार नहीं हो सकता।

दि किसी व्यक्ति ने अपील के स्तर पर अभिवचन में संशोधन का आवेदन किया है तो विपक्षी पक्षकार को न्यायालय के समक्ष यह जवाब देना चाहिए कि उस तथ्य का संशोधन चाहने वाले व्यक्ति को पहले ज्ञान था और उस ने उस तथ्य को जानबूझ कर छुपाया गया था। संशोधन के आवेदन का प्रतिरोध करते हुए अपने इस जवाब को साबित भी करना चाहिए। यदि ऐसा किया गया तो संशोधन निश्चित रूप से स्वीकार नहीं किया जाएगा। लेकिन केवल मात्र जवाब देने से काम न चलेगा। तथ्य को छुपाने के तथ्य को साबित करना होगा।

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