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दत्तक पुत्र, दत्तक ग्रहण की तिथि के पूर्व उसे प्राप्त संपत्ति का स्वामी बना रहता है।

Adoptionसमस्या-

सीकर, राजस्थान से कुशल शर्मा ने पूछा है –

मैं एक मंदिर के महंत के गोद गया हुआ हूँ जिसका गोदनामा रजिस्टर्ड है। मगर मेरे गोद लिए पिता की अपनी कोई सम्पति नहीं है सारी सम्पति मूर्ति मंदिर के नाम से है मंदिर की आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं है हालांकि मंदिर के नाम से करीब 60 बीघा कृषि भूमि अभी भी है मगर उसे बेचने का अधिकार मेरे पास नहीं है। उधर मेरे जन्मदाता पिता के पास बहुत सम्पति है जिसका मूल्य करोड़ों में है तथा उनका अभी कुछ दिन पहले स्वर्गवास हो गया है वे काफी चल एवं अचल सम्पति छोड़कर गये हैं।  मैं यहाँ यह भी उल्लेख कर देना चाहता हूँ क़ि मेरे शैक्षणिक  प्रमाण पत्रों में मेरे पिता के नाम की जगह गोद लेने वाले पिता का नाम ही है मगर मैं हमेशा से ही अन्य भाई बहिनों के साथ मेरे वास्तविक पिता (जन्मदाता) के साथ ही रहता आया हूँ मेरे राशन कार्ड एवं कुछ बैंक खातों में मेरे जन्मदाता पिता का नाम है तथा कुछ खातों में मेरे दत्तक पिता का नाम है।  मेरे जन्मदाता पिता के पास स्वयं की सम्पति होने के कारण मेरे दूसरे भाइयों का रहन सहन काफी ऊँचा है। जब कि मेरे गोद चले जाने के कारण मेरी आर्थिक स्थिति एकदम ख़राब है मंदिर की तो कोई आमदनी नहीं है। ऊपर से उस में हर महीने 500-700 रुपये का खर्चा आ जाता है।  चूँकि मंदिर की पूजा दोनों समय करनी पड़ती है अतः मैं कहीं बाहर जाकर कमा भी नहीं सकता हूँ।  क्या अब मैं मेरे जन्म देने वाले पिता की सम्पति में कोई हिस्सा प्राप्त कर सकता हूँ?

मैं यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैंने अपने सभी कर्तव्यों का निर्वहन गोद पिता तथा जन्मदाता पिता दोनों के लिए किया है।  मुझे गोद लेनेवाले पिता जब मैं १० साल का था तभी चल बसे थे तथा मैं सदा ही अपने जन्मदाता पिता, माता तथा मेरे सगे भाई बहिनों के साथ ही रहा हूँ मेरी शिक्षा दीक्षा भी मेरे सगे पिता ने ही करवाई है।  गोद पिता का तो मुझे चेहरा भी याद नहीं है। 4 साल पहले मेरी सगी माता का देहांत हो गया।  अब मेरे सगे पिता का भी देहांत हो गया है उनके अंतिम क्रियाकर्म मेरे द्वारा ही किया गया है तथा उनकी पगड़ी भी मेरे ही बंधी है तथा मेरे जन्मदाता माता-पिता ने कभी भी मुझे दत्तक पुत्र नहीं समझा है मगर अब मेरे भाई लोग जिनकी जीवन में मैंने बहुत सहायता की है वे ही मुझे सम्पति में हकदार नहीं मानते हैं और मुझे इस सम्पति में कुछ भी नहीं देना चाहते हैं।  आप बताएँ कि क्या मैं अपने जन्मदाता पिता की सम्पति में हक प्राप्त कर सकता हूँ।  यहाँ यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूँ की मेरे गोद पिता की मूर्ति मंदिर की सम्पति में कुछ लोगों ने मिलकर झूठे दस्तावेज तैयार करवा कर हडपने की कोशिश की थी जिसके कारण से मुझे उन लोगों के खिलाफ न्यायालय में वाद दायर करना पड़ा जिस के कारण वो लोग मुझसे नाराज हो गये तथा वे काफी प्रभावशाली लोग हैं। जिन में एक पूर्व MLA , पूर्व प्रधान तथा  पूर्व सरपंच हैं, प्रशासन भी इन्हीं लोगों का साथ दे रहा है।  वे लोग मुझे गाँव से निकालना चाहते हैं तथा मेरे गोदनामा होते हुए भी मुझसे मूर्ति मंदिर की जमीन जायदाद हडपना चाहते हैं।  इस प्रकार देखा जाये तो मैं तो किधर का भी नहीं रहा।  मेरे जन्मदाता पिता की सम्पति में मुझे मेरे भाई लोग कोई हिस्सा नहीं देना चाहते तथा दत्तक पिता की सम्पति में गांववाले नहीं देना चाहते हैं। इन प्रभावशाली लोगों के डर से मेरे लिए कोई भी गवाही देने के लिए भी तैयार नहीं है।  जब कि आमने सामने बात करते है तो सब मुझे अपने साथ बताते हैं। मगर गवाही के लिए कोई तैयार नहीं है। अब आप ही मुझे सलाह दीजिये की मैं क्या करूँ?

समाधान-

ब आप को गोद दिया गया उस के पहले की स्थिति यह थी कि मंदिर की भूमि को भी पुजारी की भूमि ही समझा जाता था। आखिर वही तो उस का लाभ लेता था। आप के गोद पिता भी आप के ही परिवार के रहे होंगे। तब आप के पिता का सोचना यह था कि उन के सन्तान न होने से वह भूमि किसी और की हो जाएगी। यदि आप को गोद दिया तो उस भूमि का लाभ भी आप का परिवार ले सकेगा। आप को गोद दे दिया गया। लेकिन मंदिर की भूमि तो मंदिर की मूर्ति के नाम रहती है। पहले भूमि से आय बहुत कम थी भूमि की कीमत भी लेकिन पिछले तीस-चालीस बरसों में दोनों में ही वृद्धि हुई है। अब पूरे देश में हर मंदिर का ट्रस्ट बनता जा रहा है। गाँव वाले भी उस मंदिर का ट्रस्ट बनाना चाहते होंगे, और क्यों न चाहें? उन की इस इच्छा में कुछ भी गलत नहीं कि मन्दिर की भूमि की आय मन्दिर और गाँव के काम आए। पुजारी तो बहुत कम मेहनताने में रखा जा सकता है।

धर आप के भाई लोगों का कहना भी गलत नहीं है। आप गोद चले गए तो मूल पिता के परिवार में आप के अधिकार समाप्त हो गए और आप अपने पिता की सम्पत्ति में हिस्सा प्राप्त नहीं कर सकते। कुल मिला कर आप की मुसीबत आप के गोद जाने के कारण है।

प के पास उपाय यही है कि मन्दिर के एक मात्र ट्रस्टी बने रहें और मन्दिर की जमीन का लाभ उठाएँ। बेशक आप उसे बेच नहीं सकते लेकिन 60 बीघा भूमि की आय से मजे में एक परिवार का निर्वाह हो सकता है और कुछ बचाया भी जा सकता है जिस से भविष्य में सम्पन्नता हासिल की जा सकती है।

क और बात आप के लाभ की हो सकती है। दत्तक पुत्र, दत्तक ग्रहण की तिथि के पूर्व उसे प्राप्त संपत्ति का स्वामी बना रहता है अर्थात् जिस दिन व्यक्ति गोद जाता है उसे अपने पूर्व पिता का उत्तराधिकार प्राप्त नहीं होता लेकिन उस दिन के पहले यदि उस के नाम कोई सम्पत्ति हो तो वह उसी की रहती है। यदि आप के पिता के पास जो सम्पत्ति है वह पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति थी अर्थात वह आप के दादा जी से आप के पिता को प्राप्त हुई थी तो उस सम्पत्ति में उस दिन भी आप का हिस्सा हो सकता है जिस दिन आप को गोद दिया गया था। उस हिस्से के आज भी आप स्वामी हो सकते हैं। उसे आप प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यह तय करना आसान नहीं है कि आप के पिता की संपत्ति में आप को गोद दिए जाने के पहले ही आप का हिस्सा था या नहीं। इस के लिए आप को उक्त संपत्ति की 1956 से पहले के स्वामित्व की स्थिति और उस के बाद आज तक उस के स्वामित्व की स्थिति का पूरा विवरण ज्ञात करना होगा उस के दस्तावेजी सबूत इकट्ठे करने होंगे। फिर आप को इस तरह के मामलों के जानकार किसी अच्छे वकील से सलाह करनी होगी।

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