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दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना की डिक्री की एक वर्ष तक पालना न होने पर विवाह विच्छेद के लिए आवेदन करें

सीतापुर उत्तर प्रदेश से आकाशराय ने पूछा है –

त्नी के मायके चले जाने और लाने पर भी न आने पर मैं ने अदालत में दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम का मुकदमा किया। उस में मुझे डिक्री प्राप्त हो गई और पत्नी को मेरे साथ आ कर रहने का आदेश दिया गया। पत्नी ने आदेश के पालन में भी नहीं आ रही है। अब मेरे आवेदन पर न्यायालय ने आदेश 21 नियम 32 दीवानी प्रक्रिया संहिता में नोटिस जारी करने का आदेश हुआ है। इस में क्या होता है?  मैं धारा-9 की डिक्री को विवाह विच्छेद में कैसे परिवर्तित करवा सकता हूँ?

उत्तर-

आकाश जी,

प दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत डिक्री प्राप्त कर चुके हैं। आम तौर पर इस डिक्री की पालना करवाया जाना संभव नहीं हो सकता। क्यों कि पति या पत्नी का दायित्व होते हुए भी उस की इच्छा न होने पर उसे उस के जीवनसाथी के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। लेकिन दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 32 में यह प्रावधान है कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए डिक्री पारित की गई है उसे उस की पालना करने के लिए बाध्य करने के लिए उस की चल-अचल संपत्ति कुर्क की जा सकती है। लेकिन यह तभी संभव है जब कि जिस के विरुद्ध डिक्री पारित की गई है उस के पास कुर्क किए जाने योग्य संपत्ति हो। आम तौर पर पति के पास तो ऐसी संपत्ति होती है और वह संपत्ति को खोने के भय से डिक्री की पालना करने को बाध्य हो सकता है लेकिन स्त्रियों के पास ऐसी संपत्ति का अभाव होता है और यह युक्ति कारगर सिद्ध नहीं होती।

संपत्ति कुर्क कर लिए जाने के उपरान्त वह छह माह तक कुर्क रहती है। यदि छह माह की अवधि में डिक्री की पालना करदी जाती है और डिक्री की पालना में आया खर्च अदा कर दिया जाता है तो कुर्की समाप्त कर दी जाती है। लेकिन यदि डिक्री की पालना नहीं की जाती है और डिक्रीधारी न्यायालय को कुर्क संपत्ति के विक्रय के लिए आवेदन करता है तो न्यायालय कुर्क संपत्ति को विक्रय कर उस से प्राप्त हुई राशि में से कुछ राशि डिक्री धारी को क्षतिपूर्ति के रूप में दिला सकता है तथा शेष राशि संपत्ति के स्वामी को दिला सकता है।

दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत डिक्री पारित होने से एक वर्ष की अवधि में उस की पालना न किए जाने पर डिक्रीधारी धारा-13 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह विच्छेद के लिए इसी आधार पर अर्जी प्रस्तुत कर सकता है कि डिक्री की पालना नहीं की गई है। इस एकल आधार पर न्यायालय विवाह विच्छेद की डिक्री पारित कर सकता है। लेकिन ध्यान रहे कि डिक्री पारित होने के उपरान्त यदि एक दिन केलिए भी पत्नी पति के घर आ कर रह ले तो यह माना जा सकता है कि डिक्री की पालना हो गई है और आप को धारा-13 के अंतर्गत केवल इस आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने में बाधा हो सकती है।

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