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दीवानी प्रकृति के मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त कराने के लिए धारा-482 दं.प्र.सं. में रिवीजन याचिका का अवलंब

समस्या-

भूरी, गोण्डा, उत्तर प्रदेश ने पूछा है-

मेरे पिता व मेरे व एक अन्य सोनार के विरूद्ध विरोधियों (मेरे सगे चाचा जिनसे हमारा संपत्ति विवाद है) के साजिशन एक महिला होमगार्ड द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट 323, 504, 406, 420 धाराओं में लिखवायी गयी थी, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि आज से 12 वर्ष पूर्व मेरे पिता को उसने कुछ जेवरात रखने को दिए थे लेकिन मेरे पिता ने जेवरात  उसके मांगने पर वापस नहीं किये (जबकि मेरे पिता तथा उस महिला की कोई जानपहचान तक नहीं थी)।   अपितु जब वह मांगने आयी तो हमने उसके साथ मारपीट की।  रिपोर्ट दर्ज होने के बाद विवेचना में पूर्ण सहयोग करते हुए अपनी बेगुनाही के पूरे सुबूत विवेचनाधिकारी को दिये, किन्तु उन्होने विवेचना में हमारे खिलाफ कोई सुबूत न होते हए भी महज दो फर्जी गवाहों को आधार बनाते हुए मेरे पिता व सोनार के विरूद्ध आरोपपत्र धारा 406, 420 में  दाखिल कर दिया है तथा मेरे दिए गये किसी भी सुबूत या गवाह का जिक्र तक केसडायरी में नही किया है।  कृपया ऐसा कोई उपाय बताने का कष्ट करें जिससे मेरे पिता को अदालत में पेश होने पर उसी दिन जमानत मिल सके।  जिनकी वर्तमान आयु 65 वर्ष है तथा दो बार उन्हें दो बार हृदयघात भी हो चुका है,  यदि उन्हें जेल जाना पड़ा तो शायद उन की सेहत को ज्यादा नुकसान हो सकता है।

समाधान-

त्तर प्रदेश में अग्रिम जमानत का प्रावधान न होने के कारण धारा 482 में इस तरह की याचिका पर राहत प्रदान करना आम है उस के साथ ही जमानत के मामले में भी न्यायालय उदारता बरतते हैं।  आप के मामले में आरोप पत्र प्रस्तुत कर दिया गया है।  ऐसी अवस्था में आप के पिता के दो बार हृदयाघात से संबंधित दस्तावेज न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने पर उसी दिन उन की जमानत न्यायालय से हो जानी चाहिेए।  लेकिन इस मामले में आप को स्थानीय वकील से सलाह ले लेनी चाहिए कि वहाँ क्या प्रवृत्ति (Trend) है।  यदि वहाँ यह प्रवृत्ति चल रही हो कि इस तरह के मामले में मजिस्ट्रेट जमानत लेने से कतराते न हों।

दि आप को लगता है कि उन की जमानत नहीं हो सकेगी तो आप को प्रथम सूचना रिपोर्ट सहित आरोप पत्र को निरस्त करवाने के लिए धारा 482 में उच्च न्यायालय के समक्ष रिवीजन याचिका प्रस्तुत कर मामले को खारिज कराने का प्रयत्न करना चाहिए। इस मामले में सबूत बहुत कमजोर हैं।  विशेष रूप से वस्तुओं को अमानत रखने का कोई दस्तावेजी साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। दूसरा तथ्य यह भी है कि इतने वर्ष तक अमानत क्यों नहीं वापस मांगी गई।  इन तथ्यों से यह मामला दीवानी प्रकृति का रह जाता है।  इस तरह के मामलों में रिविजन याचिका में राहत प्राप्त होना आम बात है। इस कारण से आप की रिवीजन याचिका मंजूर हो सकती है और पूरा मुकदमा ही समाप्त हो सकता है।

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