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दीवानी वाद में केवल चैक के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि वे किसी दायित्व के चुकारे के लिए दिए गए थे

 फैजाबाद, उत्तरप्रदेश से गगन जायसवाल ने पूछा है –

क व्यक्ति से मेरा व्यापारिक लेनदेन चलता था। बाद में उसने मेरा 880000 रुपया नहीं दिया तो मैंने उसके ऊपर धारा 138 परक्राम्य विलेख अधिनियम का मुकदमा किया है। कई बार नोटिस गया, लेकिन वह लेता  ही नहीं है। अब उस के विरुद्ध वारंट निकलने वाला है तो उसने मेरे ऊपर 2133485/- रुपया का दीवानी वाद का नोटिस दिया है। ये नोटिस उसने मेरे द्वारा दिए गए चार चैकों के आधार पर दिया है, ये चैक उसने मुझसे यह कहकर लिया था कि मै इस चैक की क्लियरिंग  के आधार पर अपने बैंक से “ओवरड्राफ्ट” करवा लूँगा। अब जब उस का वारंट निकलने वाला है तो वह मुझ पर उल्टा मुकदमा करने जा रहा है। श्रीमान जी आप कृपया यह बताएँ कि मेरे द्वारा दिए गए चैक को बाउंस हुए 3 साल से ज्यादा हो गया है तो क्या वह मुकदमा कर सकता है? इस स्थिति में मुकदमा करने की अधिकतम मियाद कितनी होती है? और यदि वह मुकदमा कर देता है तो क्या जिला जज/ हाई कोर्ट/ सुप्रीमकोर्ट में रिवीजन किया जा सकता है ?
  उत्तर – 
गगन जी,

प ने उस व्यक्ति को कुछ चैक दिए हुए थे, उस ने वे चैक तीन वर्ष पूर्व अपने बैंक में प्रस्तुत किए और उस के बैंक ने समाशोधन के लिए आप के बैंक को भेजे। चैकों को अनादरित हुए भी तीन वर्ष से अधिक समय हो चुका है। ऐसी अवस्था में वह व्यक्ति आप के विरुद्ध धारा 138 परक्राम्य अधिनियम के अंतर्गत मुकदमा नहीं कर सकता। चैक की अवधि छह माह से अधिक की नहीं होती, इस कारण से चैक अवधि पार हो चुके हैं। मात्र किसी चैक के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि वे किसी दायित्व के चुकारे के लिए दिए गए होंगे। जब तक किसी दायित्व का कोई लिखित दस्तावेज न हो, यह नहीं माना जा सकता है कि वह किसी दायित्व के चुकारे के लिए दिया गया था। केवल धारा 138 के मामले में अनादरित चैक के लिए प्रथम दृष्टया यह माना जाता है कि वह किसी दायित्व के लिए दिया गया होगा, क्यों कि उस कानून में ऐसा प्रावधान है। लेकिन धारा 138 के मुकदमे में भी यदि चैक देने वाला यह कहता है कि उस ने चैक किसी दायित्व के चुकारे के लिए नहीं दिया था, और इस तथ्य को वह न्यायालय के समक्ष साबित कर दे तो धारा 138 का मुकदमा भी खारिज हो जाता है। 


दि उस व्यक्ति ने केवल चैकों के आधार पर आप को राशि की वसूली के लिए नोटिस दिया है जिस के लिए वह यह कहता है कि वे किसी दायित्व को चुकाने के लिए दिए गए थे, तो केवल चैकों के आधार पर यह नहीं माना जाएगा कि वे किसी दायित्व के अधीन  थे। चैक तीन वर्ष से पहले ही अनादरित हो चुके हैं। ऐसी अवस्था में यदि यह मान भी लिया जाए कि वे किसी दायित्व के चुकारे के लिए दिए गए थे, तब भी उन चैकों के आधार पर वसूली का कोई दीवानी वाद आप के विरुद्ध नहीं चलाया जा सकता। क्यों कि ऐसे मामले में दीवानी वाद प्रस्तुत करने की मियाद दायित्व पैदा होने से या दायित्व उत्पन्न होने के तीन वर्ष की अवधि में दायित्व को पुनः स्वीकार कर लेने की तिथि से तीन वर्ष की है। तीन वर्ष से अधिक हो जाने से यह वाद न्यायालय के समक्ष पोषणीय नहीं होगा। उस व्यक्ति ने यह नोटिस केवल आप को भयभीत करने और धारा 138 के मुकदमें में अपने लिए बचाव तलाशने की दृष्ट
ि से किया है। लेकिन उस की यह चालाकी कानून के सामने नहीं टिकेगी। वह व्यक्ति उन चैकों के आधार पर रुपया वसूली का दीवानी वाद न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सकता।
दि किसी तरह वह वाद प्रस्तुत कर भी दे तो उसे लगभग 22 लाख रुपए का दावा प्रस्तुत करने के लिए कम से कम सवा लाख रुपया कोर्ट फीस वाद पेश करने के साथ ही अदा करनी होगी। जो एक फर्जी दावे के लिए कोई भी प्रस्तुत करेगा, ऐसा नहीं लगता। यदि वह दावा प्रस्तुत कर देता है तो ऐसा दावा मियाद के बाहर होने के कारण प्रारंभिक स्तर पर बिना दर्ज हुए खारिज हो जाएगा। यदि किसी तरह उस का दावा दर्ज हो कर समन जारी हो जाता है तो आप पहली ही पेशी पर आवेदन प्रस्तुत कर न्यायालय से निवेदन कर सकते हैं कि यह दावा मियाद बाहर है,  इस पर न्यायालय को क्षेत्राधिकार नहीं है, इस कारण इसे प्रारंभिक स्तर पर खारिज किया जाए। यदि न्यायालय आप के इस आवेदन को निरस्त भी कर दे तो आप उच्च न्यायालय के समक्ष न्यायालय के आदेश के विरुद्ध निगरानी प्रस्तुत कर सकते हैं।

मेरी राय में आप के विरुद्ध कभी ऐसा दावा पेश नहीं होगा। जब तक कथित दावे का समन आप को न मिल जाए आप को कभी भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। हाँ आप यह कर सकते हैं कि आप स्वयं अथवा किसी वकील के माध्यम से उक्त नोटिस का उत्तर नोटिसदाता को प्रेषित करवा दें कि आप ने वे चैक किसी दायित्व के चुकारे के लिए नहीं दिए थे।

क सलाह और कि कभी भी किसी भी व्यक्ति की सुविधा के लिए इस तरह चैक न दें। आप ने जिस व्यक्ति को यह चैक दिए उस ने चैकों के माध्यम से बैंक सुविधाओं का दुरुपयोग किया। आप ने उस का सहयोग किया। यह अपराध न होते हुए भी एक अनुचित और अवैधानिक कृत्य है। इस तरह चैकों का आदान प्रदान कभी भी संकट का कारण बन सकता है।



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