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नियमित कर्मचारी और दैनिक वेतन भोगी का वेतन समान नहीं हो सकता

धर्मेन्द्र कुमार प्रजापति पूछते हैं–
क्या यह उचित है कि किसी विश्वविद्यालय में संविदा-कर्मी और एजेंसी-कर्मी के मानदेय (वेतन) में अंतर हो सकता है। या यदि ऐजेंसी का मालिक कम भुगतान देता हो तो उस के लिए हम क्या करें? दोनो प्रश्नों के लिए उचित सलाह देने का कष्ट करें। 
उत्तर–
धर्मेंन्द्र भाई!
चित तो यह है कि विश्वविद्यालय अथवा किसी भी संस्थान में समान काम के लिए समान ही वेतन मिलना चाहिए। हाँ यदि सेवा की अवधि में या शिक्षा के स्तर में या कुशलता में किसी तरह का अंतर हो तो वेतन उस के अनुसार कुछ कम या अधिक हो सकता है। लेकिन कानूनी स्थिति इस के विपरीत है। 
रियाणा राज्य बनाम चरणजीत सिंह एवं अन्य के प्रकरण में  न्यायमूर्ति एस.एन. वरियावा, डॉ. ए.आर. लक्षमणन और एस.एच कापड़िया की सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ ने दिनांक  05.10.2005 को यह निर्णय  (2006 ए.आई.आर. सुप्रीम कोर्ट 106) दिया है कि नियमित रूप से चयन प्रक्रिया द्वारा चुने गए कर्मचारी और एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी जो कि ठेकेदार के माध्यम से नियोजित किया जाता है का वेतन समान नहीं हो सकता है। क्यों कि शिक्षा, अनुभव और कुशलता आदि अनेक कारक ऐसे हैं जिस के कारण उन के वेतनों में अंतर हो सकता है।
र्मचारियों की ओर से सुप्रीमकोर्ट के समक्ष यह तर्क दिया गया था कि ठेकेदार के माध्यम से कर्मचारी इसीलिए नियोजित किए जाते हैं कि उन्हें कम वेतन दिया जा सके और वे स्थायीकरण के अधिकारी न हो जाएँ. अन्यथा उन का चयन भी मुख्य नियोजक उसी तरह करता है जैसे चयन समिति करती है। इस पर सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि यह बात आप की याचिका में नहीं है। याचिका को अच्छी तरह लिखी हुई न मानते हुए सु्प्रीम कोर्ट ने मामले को वापस उच्चन्यायालय को प्रेषित कर दिया कि वह याचिका कर्ता कर्मचारियों को अपनी याचिका को संशोधित करने का अवसर दे और मेरिट पर निर्णय दे। 
स तरह यदि समान वेतन के लिए उक्त तीनों कारकों पर कर्मचारी एक जैसे हों तो समान वेतन के लिए उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की जा सकती है। 
प के लिए मेरी राय यह है कि आप अपने तथ्यों को ले कर आप के उच्चन्यायालय के किसी ऐसे वकील से परामर्श करें जिस का सेवा संबंधी मामले करने का अनुभव रहा हो। उस के परामर्श के उपरांत यदि वह आप को राय दे कि आप को याचिका प्रस्तुत करनी चाहिए तो आप पहले अपने नियोजक और विश्वविद्यालय को नोटिस दें और अवधि समाप्त होने के उपरांत रिट याचिका दाखिल करें।
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