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न्यायालय द्वारा दोषमुक्त घोषित होने तक अभियुक्त कदापि यह न सोचे कि वह दोषमुक्त हो जाएगा

तीसरा खंबा के पाठकों और मित्रों¡

मैं ने कभी सोचा भी न था कि मुझे कानूनी सलाह के लिए ऐसा भी पत्र मिलेगा।  लेकिन मुझे मिला।  हर किसी को, संगीन से संगीन अपराध के अभियुक्त को भी जनतंत्र में बचाव का हक है।  इस के लिए उसे कानूनी सलाह और सहायता प्राप्त करने का अधिकार भी।  एक विधिज्ञ को भी ऐसी सहायता के लिए कभी इन्कार नहीं करना चाहिए।  मैं भी नहीं कर रहा हूँ।  तो पत्र और पत्र लेखक को दी गई सलाह यहाँ प्रस्तुत है-

समस्या-

मेरा नाम आशीष राज है! दिनांक: 15.02.2012 को समस्तीपुर नगर थाना में मेरे विरुद्ध केस दर्ज हुआ था!  इस मामले में प्राथमिकी इस प्रकार है …

मैं नेहा कुमारी पुत्री रमेश कुमार बेर्गिनिया सीतामढ़ी की रहने वाली हूँ।  मैं एक एनजीओ में काम करती हूँ।  उसी एनजीओ में विनय कुमार शर्मा भी काम करते थे।  हम दोनों ने अंतरजातीय विवाह किया था।  जो कि समस्तीपुर के थानेश्वर मंदिर में संपन्न हुआ था।  शादी के २ महीने बाद मैं अपने माँ बाप के साथ अपने मायके आगयी।  जहाँ 18.08.2010 को आशीष राज का फ़ोन आया कि तुम्हारे पति की मृत्यु हो गयी है जल्द से जल्द समस्तीपुर आ जाओ।  सूचना मिलते ही मैं अपने भाई गौरव के साथ समस्तीपुर आ गई।  जहाँ आशीष मेरा इंतजार करते हुए समस्तीपुर स्टेशन पर पहले से मौजूद थे।  उन्हों ने मुझे एकान्त मैं ले जा कर कहा कि तुम ससुराल मत जाओ।  तुमने अंतरजातीय विवाह किया है वे लोग तुम्हारे पति के मौत का कारण तुमको मानते हैं।  अगर तुम गयी तो तुम्हें मार देंगे।  आशीष मुझे अपने घर ले गया और मेरे भाई को वापस भेज दिया।   आशीष ने मुझे अपने घर पर रखा व् रा धमका कर और मुझ से शादी का प्रलोभन देकर मेरे साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर लिया और मुझे अपने माँ बाप के पास छोड़ आये।  मेरे द्वारा शादी करने की कहे जाने पर कहते कि अपनी बहिन की शादी के बाद शादी करूँगा।  इसी बीच मेरे गर्भ में उनका बच्चा ठहर गया।  29 जनवरी को उनकी बहन की शादी भी हो गयी।  जिसमे उन्होंने दो भर सोने का चैन, एक भर की दो सोने की अंगूठी, एक भर की कान की बाली। तीनों की कीमत लगभग 1,50,000/- रुपए तथा 20,000/- रुपए नकद यह कह कर लिए की अभी शादी में तंगी है बाद में हम सब कुछ तुम्हें दे देंगे।  अपनी बहन की शादी के बाद भी उन्होंने मेरा सामान बापस नहीं किया और मुझ से शादी भी नहीं की। मुझ पर अपना गर्भ गिराने के लिए दबाब बनाते रहे।  मेरे इनकार करने पर उन्हों ने मुझे 05.02.2012 को विटामिन का दवा कह कर 2 टेबलेट खिलाकर मुजफ्फरपुर पहुँचा दिया।  वहाँ पर मेरी तबियत धीरे धीरे खराब होने लगी।  दिनांक 14.02.2012 को जब मेरी तबियत काफी खराब हो गई तो मैं समस्तीपुर आकर उनसे मिली तो। उन्हों ने मुझे पहचाने से इंकार करते हुये मुझे अपने डेरा से भगा दिया।  मैं डॉ. आर. के. मिश्रा काशीपुर के यहाँ भरती हुई।  जहाँ मेरा इलाज चला।  इसी दौरान मैं ने अपनी माँ को फ़ोन कर के अपने पास बुलाया।  मेरी माँ मेरे पास आई तो मुझे पता चला कि मेरे दो महीने के बच्चे का गर्भपात इलाज के दौरान हो चुका है। अपनी हालत में सुधार होने के बाद आज दिनांक 16.05.2012 को उक्त घटना की जानकारी महिला थाना को देने गयी मगर उन्हों ने मेरी बात को अनसुनी कर दिया।  तब मैं उपरोक्त घटना की सूचना श्रीमान को अपने माँ के साथ दे रही हूँ!”

आपने ऊपर लिखी सारी बातों को पढ़ा इस मामले में मैंने 19.04.2012 को कोर्ट में समर्पण किया।  13.07.2012 को हाईकोर्ट द्वारा जमानत पर रिहा हुआ।  इस केस की डायरी जमा हो चुकी है और धारा 176, 313 आईपीसी का केस भी खुल चुका है।  साथ में अल्ट्रासाउंड डाक्टर का पुर्जा व स्टेट बैंक में जमा किए गये पैसे की रसीद संलग्न है।  जिस में अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट की तारीख 14.05.2012 है जब कि डाक्टर के यहाँ 15.02.2012 भर्ती हुई है।  पुलिस द्वारा मोबाइल की कॉल रेकॉर्ड्स निकलवाया जिस से पता चला कि 29 जनवरी से लगातार 18 अप्रेल तक बातचीत हुई है।  सर कृपा कर यह बताएँ कि क्या इस मामले में मुझे सजा हो सकती है?  इस से पूर्व उस ने जिस से शादी की थी।  उस पर भी रेप केस कर के शादी की थी।  इस लड़की का चाल चलन ठीक नहीं है।  मेरे जेल जाने के बाद 20.04.2012 को मुझ से मिलने जेल आई थी।  उस के बाद भी कई दिन आई।  मुझ पर बार बार शादी करने का दवाब बना रही है।  घटना 18.08.2010 की है केस 16.02.2012 को हो रहा है।  क्या रेप केस 2 साल बाद भी हो सकता है।  विटामिन की दवा 05.02.2012 को खिलाई गई जब कि प्राथमिकी में लिखा है की इलाज के दौरान गर्भपात हो गया है।  इस मुसीबत से कैसे निकला जाए?  बताने की कृपा करें!

-आशीष राज, समस्तीपुर, बिहार

समाधान-

प ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने वाली महिला के बारे में दो बातें कही हैं।  एक तो यह कि उस का चाल चलन ठीक नहीं है।  दूसरा यह कि उस ने अपने पति पर बलात्कार का आरोप लगा कर उस से शादी की थी।  हो सकता है कि आप की दोनों बातें सही हों।  हो सकता है उस के पति ने भी उस के साथ विवाह पूर्व संबंध विवाह का विश्वास दिला कर यौन संबंध कायम किया हो बाद में मना कर देने पर उस को बलात्कार का आरोप लगाना पड़ा हो।  ऐसी स्थिति में तो उस के चाल-चलन के खराब होने का आरोप उस पर नहीं लगाया जा सकता।

प ने जो कुछ प्राथमिकी में लिखा है उस के बारे में एक भी शब्द नहीं कहा है।  आप का मौन यह बताता है कि प्राथमिकी का एक एक शब्द सही है। यदि ऐसा है तो फिर आप ने निश्चय ही वे दोनों अपराध किए हैं जिन का आरोप आप पर लगाए गए हैं।  आज केवल यह कह देने से कि लड़की का चाल-चलन अच्छा नहीं है और उस ने पहले पति से भी बलात्कार का आरोप लगा कर विवाह किया था आप का अपराध क्षमा नहीं किया जा सकता।  फिर किसी लड़की के चाल चलन को खराब कब कहा जाएगा यह निश्चित नहीं है। हो सकता है कि उस लड़की ने जब वह अविवाहित थी तो उस ने विनय के साथ यौन संबंध रखे हों। पर यह अपराध कहाँ है।  विनय के साथ विवाह करने के बाद तो उस ने किसी के साथ यौन संबंध नहीं रखे।  उस की मृत्यु के उपरान्त आप ने उस के साथ विवाह का विश्वास पैदा कर यौन संबंध बनाया तो यह भी अपराध नहीं है।  यदि उस ने विनय के साथ और आप के साथ विवाह पूर्व यौन संबंध बनाए भी हैं तो भी यह गैरकानूनी तो नहीं था।  फिर विनय और आपने भी तो बिना विवाह किए उस के साथ यौन संबंध बनाए।  तो इस तरह आप दोनों का भी चाल-चलन खराब हुआ।  इस तरह आप उस के चाल-चलन को खराब बता कर अपराध के परिणाम से नहीं बच सकते।

प का बचाव यही हो सकता है कि जिन अपराधों का आरोप आप के विरुद्ध लगाए गए हैं वे न्यायालय में साबित नहीं हो सकें।  वैसे तो बलात्संग और किसी महिला का गर्भपात उस की सहमति के बिना करा देना ऐसे अपराध हैं जिन में कोई समझौता भी न्यायालय द्वारा मान्य नहीं हो सकता।  अपराध साबित हो जाने पर दंड मिलना स्वाभाविक है।  यह भारत की दांडिक न्याय प्रणाली है जो पीड़ित महिला से अपराधी द्वारा विवाह कर लिए जाने पर महिला के अच्छे जीवन की आशा में उस के निवेदन पर ऐसे अपराधों में क्षमा कर देती है और मामूली दंड पर छोड़ देती हैं।  यदि यही अपराध किसी पश्चिमी देश में हुआ होता तो आप को दंड होना पूरी तरह निश्चित हो गया होता।

प इस मामले में मुगालते में न रहें कि आप इस मुसीबत से आसानी से बच जाएंगे अपितु यह मान कर चलें कि सजा से आप को कोई नहीं बचा सकता, केवल सजा कम हो सकती है।  यदि कोई वकील आप को यह कहे कि आप को इस मामले में दंड नहीं मिलेगा तो वह मिथ्या भाषण करेगा। इस मुकदमे में सब कुछ न्यायालय के समक्ष आई साक्ष्य पर निर्भर करेगा कि आप पर लगाए गए आरोप साबित होते हैं या नहीं।  इस कारण से आप ऐसे सक्षम वकील की सहायता प्राप्त करें जो ईमानदारी से आप की मदद करे,  न कि ऐसा वकील करें जो यह कहे कि मैं तुम्हें बरी करवा दूंगा या कि तुम्हें इस मामले में सजा नहीं हो सकती।

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