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पंजीकृत दत्तक ग्रहण और वसीयत में से क्या मान्य होगा?

 रजनीश ने पूछा है –

1972 में मेरे भाई का पंजीकृत गोदनामा हुआ था, लेकिन वह हमेशा अपने प्राकृतिक पिता के साथ ह रहा। उस के सारे दस्तावेजों (शिक्षा, मतदाता पहचान पत्र आदि) में उस के प्राकृतिक पिता का ही नाम पिता के रूप में दर्ज है न कि दत्तक ग्रहण करने वाले पिता का। 2001 में दत्तक पिता ने मेरे चाचा के पुत्रों के नाम पंजीकृत वसीयत कर दी, जिस में दत्तक का उल्लेख नहीं है। दत्तक ग्रहण करने वाले पिता के देहान्त के उपरांत उस का दाह संस्कार भी चाचा के पुत्रों ने ही किया, दत्तक पुत्र ने नहीं। अब नामांतरण का वाद चल रहा है। दत्तक ग्रहण में माता की स्वीकृति नहीं है। यह बताने का कष्ट करें कि दत्तक पुत्र या वसीयती में किस का दावा मजबूत है? 
 उत्तर –

रजनीश जी,
दि दत्तकग्रहण करने का दस्तावेज पंजीकृत है तो उस से बड़ा सबूत कोई अन्य नहीं हो सकता। एक बार किसी बालक को दत्तक ग्रहण करने के उपरान्त दत्तक ग्रहण को समाप्त नहीं किया जा सकता है। यह सही है कि दत्तक ग्रहण करने के उपरान्त बालक को दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता के साथ रहना चाहिए और सभी दस्तावेजों में पिता का नाम भी बदल देना चाहिए। लेकिन इन के न होने से पंजीकृत दत्तक ग्रहण निरस्त नहीं होता। ये सब तथ्य तब काम  के हैं जब कि दत्तक ग्रहण का पंजीकृत दस्तावेज नहीं हो। इस कारण यह दत्तक ग्रहण वास्तविक है और इसे बदला नहीं जा सकता। आपने एक तथ्य यह प्रकट किया है कि दत्तक ग्रहण में माता की अनुमति नहीं थी। यह नहीं हो सकता। यदि दत्तक ग्रहण के पंजीकृत दस्तावेज में माता के हस्ताक्षर न हों तो उसे पंजीकृत नहीं किया जा सकता। लगता है आप तथ्य बताने में कहीं चूक कर रहे हैं। 
त्तक ग्रहण किए जाने पर किसी भी दत्तक संतान को वही सब अधिकार प्राप्त होते हैं जो कि एक वास्तविक संतान को प्राप्त होते हैं। लेकिन फिर भी दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता अपनी स्वअर्जित संपत्ति की वसीयत करने का अधिकार खो नहीं देते हैं। वे अपनी स्वअर्जित संपत्ति की वसीयत कर सकते हैं। इस तरह दत्तक पुत्र के होते हुए भी की गई वसीयत काम की है। प्रश्न केवल यह है कि जिस संपत्ति की वसीयत की गई है या फिर वह वसीयतकर्ता की स्वयं अपनी संपत्ति है अथवा पैतृक या संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति है? यदि वह संपत्ति पैतृक संपत्ति है तो उस में दत्तक पुत्र का अधिकार बालक को दत्तक ग्रहण करने के साथ ही उत्पन्न हो चुका है। दत्तक पुत्र को उस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। चाहे दत्तक पुत्र दत्तक ग्रहण करने के उपरान्त दत्तक ग्रहण करने वाले माता-पिता के पास रहा हो अथवा नहीं, या उस के दस्तावेजों में दत्तकग्रहण करने वाले माता-पिता का नाम अंकित हो अथवा नहीं। 
स तरह इस मामले में दत्तक पुत्र को पैतृक संपत्ति में अधिकार है। जब कि वसीयती को स्वअर्जित सम्पत्ति में अधिकार है। लेकिन इस मामले में जहाँ दत्तक पुत्र को यह साबित करना पड़ेगा कि दत्तक ग्रहण दस्तावेज कानून के अनुसार
पंजीकृत है, वहीं वसीयती को यह साबित करना पड़ेगा कि वसीयत भी एक प्रभावी वसीयत है। किसी भी पक्षकार के अधिकारों पर इस बात से भी प्रभाव पड़ सकता है कि वे अपने-अपने दस्तावेजों के माध्यम से स्वयं के अधिकार को साबित कर पाते हैं अथवा नहीं। यहाँ संपत्ति का बंटवारा इस प्रकार होगा जैसे वास्तविक पुत्र होते हुए भी पिता ने किसी अन्य व्यक्ति के नाम वसीयत कर दी हो।
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