DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

पिता के जीवित रहने पर संपत्ति में पुत्र का कोई अधिकार नहीं

समस्या-

वैधान सिंगरौली मध्यप्रदेश से बालमुकुन्द शाह ने पूछा है-

पुत्र ने पिता व भाई के पर स्थाई निषेधाज्ञा हेतु दीवानी वाद प्रस्तुत किया गया है जिसमें भूमि को पुश्तैनी बताया गया है। जिला सिंगरौली मध्य प्रदेश का मामला है शासकीय रिकार्ड में भूमि पिता के नाम है परन्तु दूसरे भाई से मिल जुल कर पिता द्वारा भूमियों की बिक्री की जा रही है। अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन वादपत्र के साथ दिया था लेकन आवेदन यह मानकर खारीज कर दिया गया कि पिता के जीवन काल में पुत्र को कोई भी हिस्सा लेने का अधिकार नहीं है।  जिसकी अपील भी की गयी है।  कृपया सलाह दीजिए कि अब क्या करना चाहिये कि पुत्र को हिस्सा मिल जाय व जमीन की बिक्री पर रोक लग जाए। कोई निर्देश प्रकरण भी बताइएगा जिसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सके।

समाधान-

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियमप के प्रकरण में सारा झगड़ा इस बात का है कि क्या भूमि पुश्तैनी या सहदायिक (Coparcenery) है अथवा नहीं।  मैं अनेक बार यहाँ स्पष्ट कर चुका हूँ कि पुश्तैनी या सहदायिक संपत्ति की विधि परम्परागत हिन्दू विधि का हिस्सा थी जिसे 17 जून 1956 से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम लागू कर के बदला गया है। यदि कोई संपत्ति उक्त तिथि 17 जून 1956 के पहले सहदायिक थी तो वह सहदायिक बनी रहेगी। लेकिन यदि उस के बाद किसी बँटवारे में कुछ संपत्ति पुत्रियों के हिस्से में आई तो उस बँटवारे के उपरान्त वह संपत्ति भी सहदायिक संपत्ति नहीं रहेगी। इस के लिए आप ने जिस भूमि के लिए स्थाई निषेधाज्ञा का वाद प्रस्तुत किया है उस भूमि की स्थिति जाँचना होगा कि वह अभी तक सहदायिक संपत्ति है अथवा नहीं। आप को उस भूमि के स्वामित्व के संबंध में 1956 के पहले से आज तक के सभी दस्तावेज जिन से उस का स्वामित्व समय समय पर बदला है देखना होगा। यदि फिर भी भूमि पुश्तैनी या सहदायिक पायी जाती है तो ही आप को लाभ मिल सकता है अन्यथा नहीं।

स मामले को आप इस तरह समझ सकते हैं कि यदि 17 जून 1956 से पहले उक्त भूमि जिस व्यक्ति के नाम थी उसे वह भूमि उस के पिता या पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी तो वह पुश्तैनी भूमि थी उस भूमि में उस व्यक्ति के पुत्र, पौत्र और प्रपोत्र का भी हिस्सा था। 17 जून 1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होने के बाद जन्म लेने वालों का हिस्सा नहीं रहा। लेकिन भूमि सहदायिक बनी रही। इस सहदायिक भूमि में यदि किसी का हित है तो उस की मृत्यु के उपरान्त उस के हित का उत्तराधिकार उत्तरजीविता के आधार पर होगा लेकिन यदि उस के उत्तराधिकारियों में कोई स्त्री हुई तो उस का उत्तराधिकार उत्तरजीविता के आधार पर न हो कर वसीयत के आधार पर तथा वसीयत न होने पर हि्न्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 के अनुसार होगा।  इस के लिए आप 29 सितंबर 2006 का सुप्रीम कोर्ट का Sheela Devi And Ors vs Lal Chand And Anr  on 29 September, 2006 के मामले में दिया गया निर्णय देखें।

स निर्णय के अनुसार यदि पुत्र का जन्म 17 जून 1956 के बाद हुआ है तो उसे अपने पिता की संपत्ति में पिता के जीवित रहते कोई अधिकार नहीं है, चाहे वह संपत्ति पिता को पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है। इस स्थिति के अनुसार पुत्र को अस्थाई निषेधाज्ञा का लाभ प्रदान न करना उचित ही है। लेकिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में समय समय पर संशोधन हुए हैं। जिन के कारण उन की व्याख्या में बहुत विसंगतियाँ हैं। इन के आधार पर पुत्र अपने मुकदमे को चलाए रख सकता है। यदि कभी उच्चतम न्यायालय ने अपनी व्याख्या को संशोधित किया तो पुत्र को लाभ मिल सकता है।

Print Friendly, PDF & Email
3 Comments