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पिता से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति में पुत्र पुत्रियों का हिस्सा नहीं।

lawसमस्या-

किरन ने रीवा, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-


म दो भाई बहन हैं। मेरे माता-पिता ने दादा की संपत्ति (सारी चल-अचल संपत्ति) की रजिस्ट्री मेरे छोटे भाई के नाम कर दी है। दादा जी जीवित नहीं हैं दादा जी का देहान्त 2001 में हुआ है। दादा जी से पिता को उक्त संपत्ति उत्तराधिकार के माध्यम से प्राप्त हुई है। दादा जी की संपत्ति स्वयं की है। कृपया मुझे बतायें कि यदि एक भाई को दे रहे हैं तो क्या कानूनन मुझे वंचित रखा जा सकता है? क्या दादा की प्रोपर्टी पर दावा किया जा सकता है? इस के लिए मुझे क्या करना होगा?


समाधान-

मिताक्षर हिन्दू विधि के अनुसार यदि किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो उस संपत्ति में उस के पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र का अधिकार जन्म से ही निहित हो जाता है। इस तरह हिन्दू पुरुष को अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति एक पुश्तैनी/ सहदायिक संपत्ति हो जाती है जिस में उस के पुत्र, पौत्र और प्रपौत्रों के हिस्से भी होते हैं।  1956 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम आने के पहले यही स्थिति थी। बाद में भी वर्षों तक ऐसा ही समझा जाता रहा। लेकिन बाद में जब हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम को सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्यायित करना आरंभ किया तो स्थिति परिवर्तित हो गई।

हिन्दूु उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 4 कहती है कि हिन्दू विधि पर इस अधिनियम के उपबंध प्रभावी होंगे। दूसरी ओर धारा  8 में हिन्दू पुरुष की संपत्ति का दाय कैसे होगा इस के लिए उपबंध किए गए हैं। इस के लिए अनुसूची दी गई है। इस अनुसूची में पुत्र पुत्रियाँ दोनों सम्मिलित हैं साथ ही मृत पुत्र व पुत्रियों की संताने सम्मिलित हैं लेकिन जीवित पुत्र की संतानों के सम्मिलित नहीं किया गया है। इस का सीधा अर्थ यह है कि जो संपत्ति पुरुष को अपने पिता से प्राप्त होगी उस में उस के पुत्र,पौत्र व प्रपौत्र का कोई अधिकार नहीं होगा। इस की व्याख्या करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हि्न्दू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रभावी होने के उपरान्त हुए उत्तराधिकार के मामलों में जो संपत्ति पुरुष को अपने पिता से प्राप्त होगी वह अब पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति नहीं होगी।

हालाँकि इस अधिनियम की धारा 6 में यह प्रावधान किया गया था कि यदि किसी पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति में मृतक पुरुष का कोई हिस्सा हुआ तो उस पुरुष के हिस्से उस का दाय उत्तराधिकार के नियम से न हो कर उत्तरजीविता के आधार पर होगा। लेकिन यह नियम पहले से स्थित पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति के संबंध में ही प्रभावी होगा। 2005 में धारा 6 में संशोधन कर के पुत्रियों को भी जन्म से पुश्तेैनी/सहदायिक संपत्ति में हिस्से का अधिकार प्रदान किया गया है। लेकिन वह भी पहले से संपत्ति के पुश्तैनी/ सहदायिक होने पर ही है।

मारी राय में इस तरह किसी भी पुरुष की मृत्यु पर उस की स्वअर्जित संपत्ति जो हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अस्तित्व में आने के पहले उस के पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र को प्राप्त होती थी वह प्राप्त होने वाले पुरुष की पुरुष संतान होने पर पुश्तैनी/सहदायिक संपत्ति में परिवर्तित हो जाती थी इस अधिनियम के प्रभाव में आने से अब नहीं होती। इस तरह इस अधिनियम के अस्तित्व में आने से अब नई पैतृक संपत्ति का सृजन रुक गया है। अब तक की सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई व्याख्याओं से यही अभिमत सामने आया है। हमारे इस अभिमत पर विरोधी विचार भी व्यक्त किए जा सकते हैं तथा सुप्रीम कोर्ट की कोई नई व्याख्या इस अभिमत को बदल सकती है। इस कारण हमारी इस राय को अन्तिम नहीं माना जाए।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई इन व्याख्याओं के अनुसार आप के पिता को आप के दादा की स्वअर्जित संपत्ति से जो संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त हुई उस में आप का और आप के भाइयों का कोई अधिकार नहीं है। उसे किसी को भी हस्तान्तरित करने का अधिकार आप के पिता को है। यदि उन्हों ने यह संपत्ति आप के छोटे भाई के नाम कर दी है तो आप को उस पर आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। हमारी राय में आप का इस सम्बन्ध में किया गया दावा सफल नहीं होगा।

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