DwonloadDownload Point responsive WP Theme for FREE!

पुत्रवधु के पुत्र के प्रति पजेसिव होने का कारण तलाशिए।

widow daughterसमस्या-
भोपाल, मध्य प्रदेश से बाबूलाल ने पूछा है –

मेरे पुत्र का देहांत 3 वर्ष पूर्व बीमारी के कारण हो चुका है। जिस का एक पुत्र भी है। पुत्रवधु की नौकरी अनुकंपा में लग चुकी है। वह अपने पिता के पास परंतु अलग मकान लेकर रह रही है। मेरे पौत्र की उम्र लगभग 6 वर्ष की है। इसका पालन पोषण वह अच्‍छी तरह से कर रही है अपना गुजारा भी कर रही है। परंतु वह हमें पौत्र से मिलने नहीं देती।  मैं या मेरी पत्‍नी जाती है दरवाजा नहीं खेालती है। कभी अचानक हम चले गये तो वह अपने पुत्र के साथ बाहर जाने का कहकर उसे लेकर निकल जाती है। वह उसे बहुत चाहती है परंतु इस के दादा दादी से मिलने नहीं देती। वो भी हमसे मिलने के लिये काफी तरसता है व कभी कभी उसके नानाजी से बोलकर मोबाइल पर मेरी बात हो जाती है। मैं दोनों माता व इसके पुत्र को अलग करना नहीं चाहता हूँ। परतु हम दादा दादी होने के कारण मिलना चाहते हैं।  हमारी आर्थिक स्थिति बहु से कही अधिक अच्‍छी है। वह कभी भी हमसे मदद नहीं लेती। यहाँ तक कि हम देते हैं तो भी वो मना कर देती है। मेरी बहु की उम्र 30 वर्ष करीब है। वह दुबारा विवाह भी नहीं करना चाहती है। परंतु हमें हमारे पोते से मिलने नहीं देती है। कई बार जब विवाद हुआ तो वो यही कहती है कि कोई हम माँ बेटे को अलग नहीं कर सकता है।  क्‍या हम कानूनी या न्‍यायालय की शरण ले सकते हैं?

समाधान-

प ने अपनी पुत्रवधु के इस व्यवहार का कोई कारण तलाशने का प्रयत्न किया? मेरे विचार में नहीं किया। यदि किया होता तो आप उस का उल्लेख यहाँ करते। जिस व्यक्ति से आप अपनी समस्या के लिए उपाय चाहते हैं या जिस व्यक्ति से अपनी बीमारी की चिकित्सा कराना चाहते हैं उस से कुछ भी छुपाना ठीक नहीं है। मेरे विचार में कोई न कोई कारण अवश्य है जिस से आप की पुत्रवधु अपने पुत्र के प्रति पजेसिव हो चुकी है। हो सकता है पति की बीमारी के दौरान कोई गंभीर घटना घटी हो जिस ने आप की पुत्रवधु के मानस को प्रभावित किया हो। हो सकता है ऐसी घटना का आप को अहसास ही न रहा हो। हो सकता है कि उस के देहान्त के बाद वह सोचती रही हो कि आप ने अधिक गंभीर चिकित्सकीय प्रयत्न किए होते तो उस के पति का जीवन बच जाता। पति के देहान्त के बाद उसे आप के परिवार में आप से न सही आप के रिश्तेदारों से अनेक प्रकार की प्रश्न सुनने को मिले हों। कुछ ने कहा हो कि अब बहू का क्या होगा? वह मायके में रहेगी या ससुराल में? विवाह करेगी या नहीं? विवाह कर लेगी तो बच्चे का क्या होगा? तब फिर बच्चा कहाँ रहेगा? बच्चे को दादा दादी के पास ही रखना उत्तम रहेगा? आदि आदि।

ति के देहान्त के उपरान्त पत्नी बहुत संवेदनशील हो जाती है। उस के कान में पहुँचे ये सब प्रश्न और उन पर हुए विचार विमर्श की फुसफुसाहट भी उस के मस्तिष्क में घण्टों की चोट की तरह लगती हैं। उसे यह भय हो गया है कि कहीं उस के पुत्र को उस से अलग न कर दिया जाए या कहीं ऐसा न हो कि केवल अपनी पैतृक संपत्ति के लिए पुत्र उस से अलग न हो जाए। इन आशंकाओं का कोई उत्तर नहीं है।

प अपने पौत्र से स्नेह रखते हैं, अपनी संपन्नता का कोई हिस्सा उसे देना चाहते हैं। आप को सुझाव दे रहा हूँ कि आप की पुत्रवधु और पौत्र किराए के मकान में रहते हैं। यदि आप समर्थ हैं तो पुत्रवधु के पिता के घर के नजदीक अपने पौत्र के नाम एक इतना सा घर जो उन के आवास के लिए पर्याप्त हो अपने पौत्र के नाम से खरीद कर अपनी बहू के आधिपत्य में दे दीजिए। जिस से आप की पुत्रवधु को विश्वास हो कि उस की आशंकाएँ गलत हैं।

कानून में दादा-दादी को यह अधिकार नहीं है कि वे अपने पौत्र की अभिरक्षा उस की माँ के विरुद्ध प्राप्त कर सकें। पौत्र आप से मिलने की इच्छा अवश्य करता होगा। लेकिन यदि अभिरक्षा की बात आएगी तो वह अपनी माँ के पास रहना चाहेगा। वैसी स्थिति में आप उस से मिलने के लिए भी न्यायालय में कोई आवेदन पोषणीय नहीं है। आप के पौत्र के वयस्क हो जाने पर और आप दोनों के वृद्धावस्था के समय अशक्त हो जाने पर यदि कोई निकटतम संबंधी नहीं है तो पौत्र से सहायता प्राप्त करने का आप का अधिकार पुनर्जीवित हो सकता है। इस कारण यदि मेरा सुझाव आप को उचित लगे तो वह कीजिए। हो सकता है कि बिना कानून और न्याय की शरण लिए आप को इच्छित व्यवहार प्राप्त होने लगे।

Print Friendly, PDF & Email
One Comment