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पुश्तैनी, सहदायिक संपत्तियाँ और उन का दाय।

rp_law-suit.jpgसमस्या-

दीपक ने भिरङाना , फतेहाबाद से हरियाणा राज्य की समस्या भेजी है कि-

पने अपने पिछले लेखों मे पुश्तैनी ओर सहदायिक सम्पत्ति में अन्तर बताया। मेरे मन मे पुश्तैनी सम्पत्ति को लेकर कुछ प्रश्न हैं। 1. आपने बताया कि 1956 से पहले तीन पीढ़ी में से किसी पुरुष पूर्वजों से प्राप्त सम्पत्ति पुश्तैनी है यदि वह सम्पत्ति पुरुष पूर्वजों से प्राप्त न हो कर स्त्री पूर्वज से प्राप्त हुई हो और स्त्री पूर्वज को अपने पति से प्राप्त हुई हो तब क्या होगा? 2. अब जैसे भारत पाकिस्तान का बटवारा हुआ ओर पूर्वज पाकिस्तान से भारत आए और उन्हें 1956 से पहले जमीन अलॅाट हुई तब वह सम्पत्ति क्या कहलाएगी? क्योंकि वह सम्पत्ति तो उन्हे न तो किसी पूर्वज से मिली न ही उनकी स्वार्जित हुई भले ही पाकिस्तान में उन के पूर्वजों की सम्पत्ति के बदले भारत में सम्पति उन्हे मिली हो? 3. मान लीजिए, अ व्यक्ति को 1956 से पहले अपने पिता से सम्पति मिली तो वह सम्पत्ति पुश्तैनी हो गई। और अ की मृत्यु 1956 के बाद हो गई ओर वह सम्पत्ति उसके पुत्र ब को 1956 के बाद प्राप्त हुई तो क्या वह सम्पत्ति पुश्तैनी नहीं रही? इस प्रकार से ब के पुत्र स. के लिए अपने पिता ब की सम्पति तो पुश्तैनी नहीं कहलाई। लेकिन क्या स के लिए उसके दादा अ की सम्पत्ति पुश्तैनी हो जाएगी? 4. आपने कहा कि पुश्तैनी जायदाद का बंटवारा उतरजीविता के अधार पर होता है अगर किसी सहदायिक का जन्म होता है तो पहले के सभी सहदायिकों का हिस्सा कट कर जन्म लेने वाले सहदायिक को मिलता है, मेरा प्रश्न है कि जिस व्यक्ति के नाम पुश्तैनी सम्पति उसके जीवित रहते किसी सहदायिक का जन्म लेना जरूरी है या उसके मरने के बाद भी अगर किसी का जन्म होता है तो वह भी उस में हिस्सेदार बनेगा? 5. आपने कहा कि पुश्तैनी सम्पति मे तीन पीढ़ी यानि पुत्र पोत्र, प्रपोत्र तक का हिस्सा होता है लेकिन जब तक प्रपोत्र का जन्म होता है समझदार बनता है तब तक वो सम्पत्ति कई व्यक्ति को हस्तांतरित हो चुकी होती है, तब वह प्रपोत्र क्या कर सकता है? तब वह अपना हिस्सा कैसे प्राप्त कर सकता है? 6. आप ने पुश्तैनी व सहदायिक में अन्तर बताया, इसलिए सहदायिक सम्पत्ति की अलग परिभाषा होगी।

समाधान-

ब से पहले तो आप समझें कि पुश्तैनी संपत्ति क्या है। यदि किसी पुरुष को अपने परदादा, दादा या पिता से उत्तराधिकार में कोई संपत्ति प्राप्त होगी तो वह पुश्तैनी संपत्ति कहलाएगी। यदि पुरुष अकेला है अर्थात उस के कोई पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र नहीं है तो इस संपत्ति का स्वामी वह पुरुष होगा। लेकिन उस संपत्ति का चरित्र पुश्तैनी ही होगा व्यक्तिगत नहीं। यदि वह व्यक्ति उस समय उस संपत्ति को विक्रय या हस्तान्तरित करना चाहता है तो कर सकता है क्यों कि उस संपत्ति का वह अकेला स्वामी है। लेकिन उक्त संपत्ति उस के स्वामित्व में रहते हुए उस के एक पुत्र का जन्म हो जाता है तो इस संपत्ति का चरित्र पुश्तैनी होने के कारण पुत्र को उस संपत्ति में जन्म से ही अधिकार प्राप्त हो जाएगा। पुत्र के जन्म के साथ ही उसे पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार मिलते ही इस संपत्ति के दो स्वामी हो जाएंगे और यह संपत्ति सहदायिक हो जाएगी। जब दूसरा पुत्र जन्म लेगा तो इस सहदायिक संपत्ति में उसे भी जन्म से स्वामित्व प्राप्त होगा। इस तरह उस सहदायिकी में 3 व्यक्ति हो जाएंगे। पुश्तैनी संपत्ति और सहदायिक संपत्ति में यही अन्तर है। यह अन्तर इतना महीन है कि अक्सर इस में कोई अन्तर दिखाई ही नहीं देता है। वस्तुतः एक व्यक्ति जिस के कोई पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र जीवित नहीं है उसे जब कोई संपत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त होती है तो उत्तराधिकारी उस का अकेला स्वामी होता है इस कारण उसे सहदायिक संपत्ति नहीं कह सकते। इसी कारण उसे पुश्तैनी संपत्ति कहा जाता है।

17 जून 1956 एक विशिष्ट तिथि है क्यों कि इस दिन हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभाव में आया है। इस अधिनियम की विशिष्ट बात यह थी कि इस में यह तो उपबंध था कि जो संपत्ति पहले से सहदायिक है उस में उत्तराधिकार उत्तरजीविता के आधार पर होगा। लेकिन यदि कोई संपत्ति इस अधिनियम के प्रभावी होने के समय सहदायिक नहीं थी। पुश्तैनी या स्वअर्जित थी तो वह इस अधिनियम के प्रभावी होने के बाद उत्तराधिकार अधिनियम से शासित होगी। इस अधिनियम में पुत्रों, पुत्रियों, पत्नी और माता को उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त हुआ था। इस कारण गैर सहदायिक संपत्ति का उत्तराधिकार इस प्रकार से होने लगा।

स नए उत्तराधिकार कानून से पुरुष वंशजों को मिलने वाली संपत्ति अब स्त्रियों को भी मिलने लगी। पुत्रों और पुत्रियों को समान भाग प्राप्त होने लगा। अब यह तो नहीं हो सकता था कि पुत्र को मिली संपत्ति तो पुश्तैनी हो जाए और पुत्री को मिली संपत्ति उस की व्यक्तिगत हो जाए। दूसरे इस अधिनियम की अनुसूची में पुत्र तो उत्तराधिकारी है लेकिन जीवित पुत्र का पुत्र या जीवित पुत्र के जीवित पुत्र का पुत्र इस में कहीं सम्मिलित नहीं है। इन कारणों से इस नए कानून से पुत्र को प्राप्त संपत्ति पुश्तैनी संपत्ति होना बन्द हो गई। हालांकि न्यायालय अब भी पुत्र को पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति को पुश्तैनी मान कर निर्णय करते रहे। बाद में जब उच्चतम न्यायालय ने इस गुत्थी को सुलझाया तो यह स्पष्ट हुआ कि गैर सहदायिक संपत्ति जो उत्तराधिकार में पुरुष को अपने पुरुष पूर्वजों को प्राप्त होती है वह न पुश्तैनी हो सकती है और न ही सहदायिक हो सकती है। यही कारण है कि 17 जून 1956 के पहले तक जो संपत्ति सहदायिक हो चुकी थी वही सहदायिक रही और नयी पुश्तैनी या सहदायिक संपत्ति का अस्तित्व में आना बन्द हो गया।

स्त्रियों को प्राप्त संपत्ति उन की व्यक्तिगत संपत्ति होती है और उन से उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति भी व्यक्तिगत ही होगी।

जो भूमि पाकिस्तान से आने पर व्यक्तियों को आवंटित हुई है वह न पुश्तैनी है और न ही सहदायिक। वह संपति जिसे आवंटित हुई थी उस की व्यक्तिगत संपत्ति है। उस का उत्तराधिकार उत्तराधिकार अधिनियम के शासित होगा। यदि किसी को ऐसी भूमि आवंटित हुई है और आवंटी की मृत्यु 17 जून 1956 के पूर्व हो गयी तो ऐसी आवंटित भूमि जिन पुरुष उत्तराधिकारियों को प्राप्त हुई वे पुश्तैनी या सहदायिक हो गई होंगी। जो संपत्ति 17 जून 1956 तक पुश्तैनी या सहदायिक नहीं थी वह बाद में किसी भी भांति पुश्तैनी या सहदायिक नहीं हो सकती।

दि किसी के पास पुश्तैनी संपत्ति है तो वह उस की मृत्यु तक पुश्तैनी ही रहेगी। यदि एक सहदायिक उस संपति का उस के जीवनकाल में जन्म लिया तो वह संपत्ति पुश्तैनी न रह कर सहदायिक हो जाएगी और उस का उत्तराधिकार उत्तरजीविता के आधार पर होगा। जैसे ही उस का देहान्त होगा उस का उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार तय हो कर वह उत्तराधिकारियों की हो जाएगी। क्यों कि संपत्ति पुश्तैनी रही और उस व्यक्ति के जीवनकाल में कोई सहदायिक जन्म नहीं लिया तो उस के देहान्त के बाद उस का कोई भ सहदायिक नहीं हो सकता।

पौत्र के जन्म लेने तक संपत्ति का अनेक स्थानों तक हस्तांतरित होना स्पष्ट नहीं है। सहदायिक संपत्ति का केवल एक ही सहदायिक जीवित बचे तो वह संपत्ति पुश्तैनी हो जाएगी। लेकिन किसी अन्य सहदायिक के उत्पन्न होते ही वह पुनः सहदायिक हो जाएगी। कोई भी सहदायिक यदि अपना हिस्सा बेचता है या हस्तान्तरित करता है तो वह हिस्सा सहदायिक संपत्ति से अलग हो जाएगा। तब हिस्सा बेचने वाले के बाद में कोई पुत्र, पौत्र या प्रपोत्र होने पर उस का सहदायिक संपत्ति में कोई भाग नहीं होगा। यदि सहदायिक संपत्ति का बँटवारा हो जाता है तो बंटवारे के उपरान्त जिन व्यक्तियों को हिस्सा मिलेगा उन के पास वह हिस्सा पुश्तैनी संपत्ति के रूप में रहेगा। उन के यहाँ पुत्र, पौत्र या प्रपोत्र जन्म लेने पर वह पुन सहदायिक हो जाएगी।

डिसक्लेमर : यहाँ जितने निष्कर्ष हम ने प्रस्तुत किए हैं। वे हमारे स्वयं की विश्लेषण के आधार पर हैं। यदि किसी को इस में कोई निष्कर्ष गलत लगता है तो उसे अपने निष्कर्ष का आधार बताते हुए अपना मत प्रस्तुत कर सकता है। उस में विमर्श का अवसर बना रहेगा। बिना किसी आधार के कोई नया निष्कर्ष प्रस्तुत न करें।

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