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पूर्व पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय से प्राप्त नहीं की, वही वैध पत्नी है और भरण पोषण की अधिकारी है।

समस्या-

लोकनाथ साहु ने छत्तीसगढ़ के टिकारापाड़ा से समस्या भेजी है कि-

मैं रायपुर के एक स्कुल मे व्याख्याता पद पर कार्यरत हूँ। मेरा विवाह 1986 में हुआ था। और कुछ दिनों बाद मेरी पत्नी से मेरा झगड़ा होना चालू हो गया, घर में भी सभी सदस्यों से उनका हमेशा झगड़ा होता रहता था। मेरी पत्नी बार बार मायके चली जाती थी और मैं बार बार उनको लेने जाता था। मेरी पत्नी के मायके वाले मुझे धोखा देकर ये ‘शादी करवाये थे। मेरी पत्नी बचपन से ही विकलांग थी। ये सब ‘शादी के बाद पता चला जब मेरी पत्नी की विकलांगता बढ़ती गई, इस विकलांगता के कारण मेरा वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रह पाता था। उन्होने मुझे धोखा देकर मेरी दांपत्य जीवन से खिलवाड़ किये। तभी मैंने अपनी ‘शादी के 6 महीने बाद सामाजिक तौर से उन्हे तलाक दे दिया उसके बाद वो अपनी मायके में रहने लगी और 3 माह बाद पुत्र को जन्म दिया। मैं पुत्र को लेने भी गया मगर उन्होंने मुझे पुत्र को देखने भी नहीं दिया और मेरे उपर दबाव बनाया गया कि मैं दूसरी ‘शादी कर लूँ। मैं कब तक उनका और अपने पुत्र का इंतजार करता। मुझे भी तो अपने जीवन में आगे बढ़ना था। इसलिए मैं ने उनकी सहमति से दूसरी ‘शादी कर लिया। उसके बाद भी मैं अपने पहली पत्नी और बच्चे से कभी कभी मिलने जाता था और मुझसे जैसा बन पाता मैं उनकी आर्थिक मदद करता था। मैं उस समय एक प्राइवेट नौकरी करता था मुझसे ज्यादा मेरी पहली पत्नी के मायके वाले सम्पन्न थे। मैं जब भी जाता मुझे अपने पुत्र से मिलने नहीं दिया जाता था। 1995 में मुझे सरकारी नौकरी मिली व्याख्याता पद पर। उसके बाद मैं बीच बीच में जाकर उनकी आर्थिक मदद करता रहा और अपनी पहली पत्नी के पुत्र की पढ़ाई का खर्चा उठाता रहा फिर 2010 में मेरा पुत्र मेरे पास आया पढ़ाई के लिये और ज्यादा आर्थिक मदद मांगने के लिए। उस समय मैं ने अपने पहली पत्नी के पुत्र को 3 लाख रु. दिया जिसका मेरे पास कोई लिखित साक्ष्य नहीं है। इसी बीच मेरी पत्नी ने मुझ से अपने भरण पोषण की मांग कि मगर मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी उसके बाद भी मुझे मजबूरी वश कर्ज लेकर उन्हे समाजिक तौर पर 3 लाख रु. एकमुश्त राशि देना पड़ा, उस राशि को मैं ने उसके पुत्र के खाते में डलवाया जिसका पर्ची मेरे पास है। वर्तमान में मैं कुल 10 लोगों का भरण पोषण कर रहा हूँ। मेरी दुसरी पत्नी और दुसरी पत्नी से प्राप्त दो पुत्री और दो पुत्र, अपनी माता जी और अपनी विधवा बहन जिसका इस दुनिया मे मेरे सिवा कोई नहीं है और मेरी विधवा बहन की तीन पुत्रियों का, सभी के भरण पोषण का भार मेरे ही उपर है। मेरी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर है हमेशा कर्ज से लदा रहता हूँ। जिसकी वजह से मैं अपने वर्तमान 4 बच्चो को उच्च शिक्षा नहीं दे पाया, मगर मै अपनी पहली पत्नी के पुत्र को एमबीए कोर्स करवाया ताकि आगे भविष्य मे मेरा पुत्र अपना और अपनी माँ का भरण पोषण कर सके। मेरी पहली पत्नी का पुत्र 27 वर्ष का है जो 2010-2012 तक एमबीए कोर्स पूरा कर लिया था। अब वर्तमान (जनवरी 2014) में मेरी पहली पत्नी भरण पोषण के लिए और राशि मांगने लगी मगर मेरी स्थिति किसी भी प्रकार से राशि देने लायक नही थी मुझ पर बहुत कर्ज था मैं 2011-2012-2013 में अपने तीनो भांजी की शादी की, जिसका कर्ज आज तक चुका नहीं पाया हूँ और अब मुझे अपनी दोनों पुत्रियों की ‘शादी करना है मेरी पहली पत्नी ने जनवरी 2014 से मार्च 2014 तक भरण पोषण की राशि के लिए बहुत दबाव बनाया मगर मेरी स्थिति ही देने लायक नही थी तो मै कहाँ से लाकर उनको पैसा देता। उसके बाद जून 2014 में मेरी पहली पत्नी और उनका पुत्र मिलकर कुटुम्ब न्यायालय रायपुर में धारा 125 के तहत भरण पोषण के लिए केस कर दिए हैं और मेरे द्वारा बताए गए सभी उपरोक्त कथन को झूठा करार दिया जा रहा है मुझे जबरदस्ती फँसाया जा रहा है कि मैं ने बिना तलाक के दूसरी ‘शादी की है और आवेदिका को मार पीट कर प्रताडित करके अपने घर से भगाया जिसकी वजह से आज आवेदिका विकलांग हो गयी है। इस तरह से न्यायालय में झूठा, बनावटी आवेदन प्रस्तुत किया गया है। मेरा वेतन 50000 महिना है और मेरा किसी भी प्रकार से आय का साधन नहीं है मेरी पहली पत्नी ने महिना 15000 और अंतरिम राशि भी 15000 की मांग की है जिसका न्यायालय द्वारा अंतरिम राशि 8000 रु फैसला किया गया है जिसे वर्तमान में मै देने के लिए सक्षम नहीं हूँ। पर भी मजबूरीवश देना पड़ रहा है। महोदय मेरा सवाल यह है कि मैं ने अपनी पहली पत्नी और पुत्र के लिए इतना सब कुछ किया उसके बाद भी उन लोगों ने मुझसे दुश्मनी रखी। उन्होने तलाक के 27 वर्ष बाद केस दायर किये हैं। आपके हिसाब से न्यायालय द्वारा अंतरिम राशि के लिए कितना रु. फैसला दिया जाना चाहिये था और अंतिम फैसला कितना रु. तक का दिया जा सकता है वैसे आवेदिका विकलांग है। न्यायालय द्वारा मेरे पक्ष मे फैसला नहीं हो सकता क्या? मेरे पक्ष के लिए आपके हिसाब से अच्छे से अच्छा समाधान बताइए, और वे लोग आपसी समझौते के लिए भी तैयार नहीं हैं। मेरा एक और सवाल है कि मेरी पहली पत्नी के पुत्र ने बंजर भूमि सम्पत्ति के लिए जिला न्यायालय रायपुर में भी केस दायर किया है मेरे पास जो भी भूमि है सभी अपने आय से अर्जित (स्वअर्जित) भूमि है मेरे पास एक भी भूमि पैतृक सम्पत्ति नहीं है क्या मुझे अपने पुत्र को भूमि में हिस्सा देना पड़ेगा?

समाधान-

प का विवाह 1986 में सम्पन्न हुआ था उस के 31 वर्ष पूर्व भारत में हिन्दू विवाह अधिनियम पारित हो कर अस्तित्व में आ चुका था। जिस में यह उपबंधित किया गया था कि कोई भी व्यक्ति अपनी पहली पत्नी के जीवित रहते उस से विवाह विच्छेद किए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता। यदि ऐसा दूसरा विवाह किया जाता है तो वह अवैध होगा। इस अधिनियम के पूर्व की स्थिति यह थी कि हिन्दू विवाह में विवाह विच्छेद संभव नहीं था। एक बार विवाह हो जाने के उपरान्त दोनों सदैव के लिए पति पत्नी रहते थे। इस अधिनियम से पहली बार हिन्दू विधि में विवाह विच्छेद होना आरंभ हुआ। लेकिन यह विवाह विच्छेद केवल न्यायालय की डिक्री से ही हो सकता था।

स तरह आप की जो स्थिति है उस के अनुसार आप ने अपनी पहली पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री न्यायालय से प्राप्त नहीं की है और वह अभी भी आप की वैध पत्नी है। आप का कथन है कि आप ने अपनी पहली पत्नी और उस के मायके वालों की सहमति से दूसरा विवाह किया है। लेकिन इस सहमति का कोई सबूत नहीं है। पत्नी से विवाह विच्छेद किए बिना आप उस की सहमति से भी विवाह नहीं कर सकते थे। इस कारण से आप का दूसरा विवाह वैध नहीं है। हालांकि दूसरे विवाह से उत्पन्न आप के सभी बच्चे आप की वैध संतानें हैं।

प आप की विधिक स्थिति यह है कि पहली पत्नी आप की वैध पत्नी है जिस से आप के एक वयस्क पुत्र है। दूसरी पत्नी आप की वैध पत्नी नहीं है लेकिन उस से उत्पन्न संताने वैध हैं। इस तरह आप की पहली पत्नी को आप से भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। आप ने पूर्व में उसे मदद की है और पुत्र को पढ़ाया लिखाया है तो ये आप का कर्तव्य था। उस को करने के कारण आप आज अपनी पहली पत्नी को भरण पोषण देने बच नहीं सकते। उसे भरण पोषण देना पड़ेगा। न्यायालय ने जो राशि आप की पत्नी के भरण पोषण के लिए अंतरिम रूप से तय की है वह भी उचित प्रतीत होती है और आप पर 10 व्यक्तियों के भरण पोषण का भार होने की स्थिति को देखते हुए ही दिलायी जानी प्रतीत होती है। अन्यथा स्थिति में यह 15-20 हजार तक की हो सकती थी।

प का पूर्व पत्नी से उत्पन्न पुत्र वयस्क है और अपना भरण पोषण करने में समर्थ है इस कारण से वह आप से भरण पोषण व अन्य खर्चे मांगने का अधिकारी नहीं है। यदि न्यायालय किसी भी प्रकार से इस 8000 रुपए प्रतिमाह के भरण पोषण के खर्चे को स्थाई कर देता है तो आप को इसे बड़ी राहत समझना चाहिए। आप पर बहुत खर्चे हैं आप की आय कम है। यह तो आप को उस समय सोचना चाहिए था जब आप अपने परिवार को बढ़ा रहे थे। अब सोचने से कुछ नहीं होगा। आप केवल एक स्थिति में इन परिस्थितियों से बच सकते थे कि पहले ही पूर्व पत्नी से सहमति से विवाह विच्छेद और स्थाई भरण पोषण की राशि न्यायालय से तय करवा लेते जिस से आप को उन दायित्वों से मुक्ति मिल जाती। लेकिन अब यह सब संभव प्रतीत नहीं होता।

प की जो भी संपत्ति आप की स्वअर्जित है उस पर आप की किसी भी पत्नी या संतान का कोई अधिकार नहीं है। आप के पहले पुत्र ने जो दावा किया है वह चलने योग्य नहीं है। आप अपनी स्वअर्जित संपत्ति को किसी को भी विक्रय कर सकते हैं या हस्तान्तरित कर सकते हैं या उस की वसीयत भी कर सकते हैं। उस में कोई बाधा नहीं है।

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