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फर्जी प्रथम सूचना रिपोर्ट को निरस्त कराने के लिए उच्च न्यायालय में धारा 482 दं.प्र.सं. के अंतर्गत आवेदन करें

समस्या-

मेरे पिता के विरूद्ध विरोधियों ने एक महिला होमगार्ड के द्वारा 406/420/323/504 धाराओं में प्रथम सूचना रिपोर्ट (F.I.R.) दर्ज करवा दी है । जिसमें कहा गया है कि मेरे पिता 11 वर्ष पूर्व उक्त महिला के यहां उसके 11 वर्षीय बच्चे को ट्यूशन पढ़ाने जाया करते थे।  जिससे उक्त महिला होमगार्ड ने विश्वास में आकर मेरे पिता को 12 तोला सोना रखने को दे दिया था , तथा अपनी बेटी की शादी में वापस देने को कहा था,  लेकिन जब वह सोना वापस लेने आई तो मेरे पिता ने उसे भगा दिया । तथा मेरे भाई ने उससे मार पीट की। F.I.R. करने वाली महिला की एकमात्र संतान उसका 35 वर्षीय पुत्र है। जो कि विज्ञान से स्नातक है, मेरे पिता ने कला से पूरी पढ़ाई की है।  सोने के लेन देन की बात तो दूर उससे हमारा पूर्व में कोई परिचय तक नहीं है ।  F.I.R. पूर्णतया फर्जी है तथा उसमें दर्ज सभी बातें काल्पनिक हैं।  उसकी विवेचना पुलिस द्वारा की जा रही है। पुलिस विरोधियों से मिली हुई है तथा मेरे पिता के विरूद्ध महज झूठे गवाहियों के आधार पर आरोप पत्र दाखिल करने और उन्हें गिरफ्तार करने की धमकी दे रही है। क्या उक्त धाराओं में ऐसा संभव है? तथा क्या उक्त मुकदमा बंद कराया जा सकता है ?

-भोलानाथ शुक्ला, गोण्डा, उत्तर प्रदेश

 

समाधान-

मामले के तथ्य जिस प्रकार आपने रखे हैं उन से लगता है कि मामला बिलकुल झूठा है। धारा 406 के अंतर्गत यह आवश्यक है कि जिस व्यक्ति को संपत्ति ट्रस्ट की गई है उस व्यक्ति की स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि स्वाभाविक रूप से उसे संपत्ति ट्रस्ट की जा सकती हो। इस मामले में आपके पिता को एक ट्य़ूटर बताया गया है और ट्यूटर की स्थिति ऐसी नहीं होती है कि उसे कोई संपत्ति ट्रस्ट की जा सकती हो। फिर प्रथम सूचना रिपोर्ट में 11 वर्ष पूर्व 11 वर्ष के पुत्र को ट्यूशन पढ़ाने की बात कही गई है। इस तरह शिकायतकर्ता के पुत्र की आयु इस समय 22 वर्ष होनी चाहिए। शिकायतकर्ता का इस आयु का कोई पुत्र नहीं है। स्वाभाविक रूप से इस तरह के मामले में पुलिस को कोई कार्यवाही नहीं करनी चाहिए और मामले को बंद कर देना चाहिए। यदि मामला सच्चा हो तो भी पुलिस को इस तरह के मामले में शिकायतकर्ता को यह कहना चाहिए कि वह सीधे न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करे। यदि न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत हो तो न्यायालय को भी इस मामले में यह परखने के लिए कि क्या कोई संपत्ति शिकायतकर्ता ने ट्रस्ट की थी शिकायतकर्ता और साक्षियों के बयान लेने के बाद ही निश्चय करना चाहिए कि आगे कार्यवाही करने का कोई आधार बनता है अथवा नहीं।

मामला कमजोर होने पर भी शिकायतकर्ता के होमगार्ड होने के कारण पुलिस से निकट के संबंध होना स्वाभाविक है और पुलिस इस मामले में कार्यवाही कर सकती है। भारत में पुलिस का जिस तरह का चरित्र है उस से उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। आप को मामले को बंद कराने के लिए प्रयास करने चाहिए। इस मामले को बंद कराने के लिए आप उच्च न्यायालय के समक्ष धारा 482 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। साथ के साथ ही आप के पिता को उस महिला के बारे में पूरी जानकारी करनी चाहिए और इस तरह के सबूत जुटाने चाहिए कि जिस से आप के पिता यह साबित कर सकें कि उन के और उस महिला के बीच कभी भी किसी तरह के कोई संबंध नहीं रहे हैं तथा यह मामला उन के विरोधियों ने षड़यंत्र कर के उन के विरुद्ध दर्ज कराया है। आप के पिता इस मामले में जिला पुलिस अधीक्षक और उन से उच्च अधिकारियों को आवेदन कर सकते हैं कि पुलिस ने उन के विरुद्ध ऐसा मामला दर्ज किया है जो फर्जी है और उस में कार्यवाही करना चाहती है।

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