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फोन रिकार्डिंग इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड है जिसे दस्तावेज की तरह, न्यायालय में प्रमाणित कराया जा सकता है।

electronic recordsसमस्या-
सादुल शहर, राजस्थान से हरिकृष्ण काँटीवाल ने पूछा है –

क्या फ़ोन रिकॉर्डिंग को न्यायालय में एक मजबूत साक्ष्य के तौर पर पेश किया जा सकता है? अगर हाँ, तो किस अधिनियम के अंतर्गत? कृपया इस विषय की विधि पर विस्तृत प्रकाश डालें।

समाधान-

किसी भी न्यायालय में सारी साक्ष्य भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के अंतर्गत प्रस्तुत की जाती है। इस कारण से न्यायालय में प्रस्तुत की जाने वाली साक्ष्य के लिए आप को इस अधिनियम का अध्ययन करना चाहिए।

साक्ष्य अधिनियम में सूचना तकनीक अधिनियम 2008 के द्वारा कुछ संशोधन किए गए थे जो कि दिनांक 27.09.2009 से प्रभावी हो चुके हैं। इन संशोधनों के माध्यम से ‘इलेक्ट्रॉनिक सिगनेचर सर्टिफिकेट’, इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म, इलेक्ट्रॉनिक रिकार्डस्, इन्फोर्मेशन, सीक्योर इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड, सीक्योर इलेक्ट्रॉनिक सिग्नेचर, व सबस्क्राइबर शब्दों की परिभाषा को जोडा गया है। इस में  से इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस् शब्द में टेलीफोन रिकॉर्डिंग सम्मिलित है।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम में धारा 65-ए तथा धारा 65-बी 2000 के अधिनियम से ही जोड़ी जा चुकी थीं जो कि दिनांक 17.10.2000 से प्रभावी हो गई थी। धारा 65-ए में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकार्डस् को धारा 65-बी के अनुसार प्रमाणित किया जा सकता है। धारा 65-बी में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक रिकार्डस् को जिस में टेलीफोन रिकार्डिंग सम्मिलित है, एक दस्तावेज माना जाएगा तथा ऐसा रिकार्ड किसी भी कार्यवाही में स्वीकार्य होगा।

स तरह आप उक्त धाराओं के अन्तर्गत टेलीफोन रिकार्डिंग को एक दस्तावेज के रूप में किसी भी कार्यवाही में प्रस्तुत कर सकते हैं, चाहे वह कार्यवाही किसी न्यायालय में हो या अन्यत्र। इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को दस्तावेजी साक्ष्य मानते हुए प्रमाणित किया जा सकता है।

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