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फोन रिकॉर्डिंग में अमानत लौटाने से इन्कार करना मजबूत सबूत है।

Desertedसमस्या-
पटना, बिहार से प्रिया ने पूछा है-

मेरी शादी के दो साल हो चुके हैं। शादी के पश्चात मैं 6 महीनों तक अपने सास-ससुर के साथ रही जबकि मेरे पति काम के सिलसिले में दूसरे शहर में निवास करते थे। शादी के तीन महीने बाद ही मेरी सास मुझसे महंगे घरेलू सामानों के लिए एक लाख रुपयों की माँग करने लगीं, उनकी इच्छा थी कि मैं अपने पिताजी पर दबाव डालकर ये पैसे दिलवाऊँ। पर मैंने ऐसा नहीं किया। 6 माह के बाद जब मैं पति के साथ रहने गई तब भी उनकी माँग पूर्ववत जारी रही। मैंने यथासंभव अपने पति से इस संदर्भ में आपत्ति भी की पर उसका कुछ असर नहीं हुआ। अंततः जब मेरे पति भी मुझसे पैसों की माँग करने लगे तो मैंने परेशान हो कर वह घर छोड़ दिया और दूसरे शहर में अपने माता पिता के घर में आ कर रहने लगी। अब मैं पिछले एक साल से पति से अलग रह कर यहीं पर नौकरी कर रही हूँ। मेरी समस्या है कि मुझे शादी और अन्य अवसरों पर दिये गये गहने एवं मेरे पिताजी के द्वारा मुझे दिए गए पाँच लाख रुपये नगद मेरी सास के पास हैं। कई बार फोन पर यह बात उठाने पर मेरे पति मेरी यह संपत्ति मुझे देने से साफ मना कर चुके हैं। मेरे पास इन काल्स की रिकॉर्डिंग सेव है। अब मैं चाहती हूँ कि धारा 406 के तहत उन पर मुकदमा करूँ। कृपया मुझे यह बताएँ कि सुनवाई के दौरान अगर वो यह आरोप लगाते हैं कि सारे गहने अपने साथ ले गई हूँ तो मुझे यह प्रमाणित करने के लिए क्या करना पड़ेगा कि गहने-पैसे उनके ही पास हैं? यदि गहने उन्होंने किसी रिश्तेदार के यहाँ रख दिये हों तो क्या इससे मेरा केस कमजोर हो जायेगा? मेरे पास गहनों की लिस्ट मौजूद है जो मैंने शादी के कुछ समय बाद बनाई थी। मेरी एक अन्य समस्या है कि मेरे पति पूर्ण सहयोग के बावजूद शारीरिक संबंध बना पाने में असफल रहे हैं, सामाजिक तथा धार्मिक कारणों से मैं तलाक नहीं लेना चाहती, क्या इन परिस्थितियों में मैं न्यायिक पृथक्करण Judicial Separation के लिए अर्जी दे सकती हूँ? क्या इसके लिए मुझे अदालत में उनकी नपुंसकता साबित करनी होगी, क्योंकि मुझे संदेह है कि थोड़ा -बहुत सामर्थ्य उनमें हो सकता है पर उनकी मेरे साथ यौन संबंध कायम करने में दिलचस्पी नहीं है। हालाँकि मेरे पूछने पर वह इससे इनकार करते थे परंतु मेरे लाख प्रोत्साहन पर भी डॉक्टर से दिखाने को कभी तैयार नहीं हुए। कृपया मेरी एक और शंका का समाधान करें।  मेरे सास-ससुर दोनों की आय मिलाकर 30 हजार प्रतिमाह से ज्यादा है और उन्हें अन्य कोई पुत्र नहीं है। मेरी मासिक आय 24 हजार रुपये है। मेरे पति की नौकरी अस्थायी है, ऐसे में यदि वह न्यायिक पृथक्करण अथवा तलाक की सुनवाई के दौरान अपनी नौकरी छोड़कर मुझसे गुजारा भत्ता की माँग करें तो क्या मुझे देना पड़ेगा?

समाधान-

प ने अपनी परिस्थितियों में अपने पिता के साथ आ कर रहने और नौकरी कर के उचित ही निर्णय लिया है। आप की समस्या यह है कि आप का स्त्री-धन अर्थात आप को विवाह और उस के उपरान्त अपने माता-पिता और अन्य लोगों से उपहार में प्राप्त संपत्ति व धन आप के सास-ससुर के पास रह गया है। आप उस की मांग भी कर चुकी हैं, जिसे देने से उन्हों ने इन्कार कर दिया है जिस की मूल रिकार्डिंग भी आप के पास उपलब्ध है। इस रिकार्डिंग में उस संपत्ति का उल्लेख किया गया होगा जो आप की आप के ससुराल में है और जिसे आप वापस चाहती हैं। यदि ऐसा है तो यह मूल रिकार्डिंग इस तथ्य का अच्छा सबूत है कि आप का क्या स्त्री-धन उन के पास है जिसे वे नहीं लौटा रहे हैं। यदि मूल रिकार्डिंग सुरक्षित न भी हो तो कोई भी कार्यवाही करने के पहले आप पुनः फोन पर बात कर के फिर से रिकार्डिंग करने का अवसर आप के पास है। फोन की रिकार्डिंग में आप के पति या उन के माता-पिता द्वारा आप का स्त्री-धन जो उन के पास आप की अमानत है लौटाने से इन्कार करना स्वयं में एक मजबूत सबूत है।

स के अलावा यदि आप यह साबित कर देती हैं कि आप का स्त्री-धन उन के पास था और वे यह कहते हैं कि आप उसे वापस ले आई हैं तो आप के द्वारा अपना स्त्री-धन का वापस लाना उन्हें साबित करना होगा, आप को नहीं। फिर भी धारा 406 भा.दं.संहिता का मामला एक अपराधिक मामला है। इस में जितना स्त्री-धन पुलिस उन के यहाँ से बरामद कर लेगी उतना आप को न्यायालय से मिल जाएगा तथा आप के पति व अन्य लोगों को दंडित किया जा सकता है। लेकिन जो धन बरामद नहीं होगा वह नहीं दिलाया जा सकता। शेष धन प्राप्त करने के लिए तो आप को उन के विरुद्ध दीवानी वाद प्रस्तुत करना होगा।

प के सास ससुर द्वारा आप से निरन्तर धन की मांग की गई और पति द्वारा भी की गई। इस धन की मांग करने में आप के सास-ससुर और पति द्वारा यदि किसी तरह मानसिक या शारीरिक क्रूरता की है तो आप के पति और उन के माता-पिता के विरुद्ध धारा 498-ए भा.दं.संहिता का मामला भी बनता है। इस तरह आप धारा 406 तथा 498-ए भा.दं.संहिता का मामला दर्ज करवा सकती हैं।

फिलहाल आप अपने माता पिता के साथ निवास कर रही हैं और नौकरी भी करती हैं। आप की इच्छा के विरुद्ध आप को अपने साथ रखने को कोई बाध्य नहीं कर सकता तथा आप के पास साथ रहने से इन्कार करने का कारण भी है। इस स्थिति में न्यायिक पृथक्करण की डिक्री प्राप्त करने का कोई लाभ नहीं है। इस डिक्री का एक लाभ तो यह है कि आप डिक्री प्राप्त करने के बाद अपने पति के साथ सहवास का दायित्व निभाने के लिए बाध्य नहीं की जा सकतीं। दूसरे एक वर्ष के बाद आप इके आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती हैं कि न्यायिक पृथक्करण की डिक्री के बाद एक वर्ष तक दोनों के बीच सहवास नहीं हुआ है। लेकिन न्यायिक पृथक्करण की डिक्री प्राप्त करे के लिए फिलहाल आप के पास कोई आधार दिखाई नहीं देता अलावा इस के कि आप यह आधार लें कि विवाह के बाद पति की नपुंसकता के कारण आप दोनों के बीच कोई सहवास नहीं हुआ है। फिलहाल आप का विवाह विच्छेद का कोई इरादा नहीं है। ऐसी स्थिति में न्यायिक पृथक्करण की डिक्री का आप के लिए कोई विशेष लाभ प्रतीत नहीं होता है।

हाँ तक आप से आप के पति द्वारा खर्चा मांगे जाने का प्रश्न है तो वे अभी नौकरी कर रहे हैं तब तक तो इस बात की कोई संभावना नहीं है। अभी कुछ मामले ऐसे आए हैं जिन में उच्च न्यायालय ने यह कहा है कि यदि यह साबित हो जाता है कि पत्नी कमाने में सक्षम है तो यदि वह कमा नहीं रही है तब भी उसे भरण पोषण नहीं मांगा जा सकता। इन निर्णयों की रोशनी में आप से भरण पोषण मांगे जाने की कोई संभावना दिखाई नहीं पड़ती।

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