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मकान-दुकान खाली कराने के लिए अदालत की डिक्री के सिवा कोई दूसरा उपाय नहीं।

rp_judge-cartoon-300x270.jpgसमस्या-

कुसुम लाता जैन ने भोपाल, मध्यप्रदेश से पूछा है-

मैं आयु वयस्क विधवा माहिला हूँ।  मेरे पति का देहान्त सन 2002 में हुआ था।  मैं पेन्शन से अपना गुजारा चलाती हूँ।  मेरे पति द्वारा सन 1997 में इस्लामुद्दीन (काबिटपुरा निवासी) शालीमार ट्रेडर्स को केवल 6 माह के लिये दुकान गोदाम के उपयोग के लिए किराये पर दी थी। (पता – 677 नया कबाड़खाना मेनरोड भोपाल) वह दुकान में गोदाम की जगह रिटेल काउंटर चला रहा हैं। उसने दुकान उप-भाड़े पर आपने भतीजे को दे रखी है।  इस से पहले भी इस्लामुद्दीन ने मेरी दुकान को मोहम्मद नवाब को उप-भाड़े पर दे रखी थी।  अब 7 महिने से किराया भी नहीं दे रहा है, ना-ही दुकान खाली कर रहा है।,  मेरे कई बार अनुरोध करने के बाद भी इस्लामुद्दीन दुकान खाली नहीं कर रहा है।  इस्लामुद्दीन  ने  पिछले १९ साल से किरायानामा रिन्यू नहीं किया। जब भी दुकान ख़ाली करने की बात करो तो वह टाल  दता है। हमें धमकी देता है कि दुकान 5 लाख में बेच दो।  हम अपनी दुकान नहीं बेचना चाहते हैं न ही इस्लामुद्दीन को किराये पर देना चाहते हैं मैं मानसिक तनाव एवं प्रताड़ना  की वजह से काफी परेशान रहती हूँ इस्लामुद्दीन के इस व्यवहार से हमेशा तनाव एवं प्रताड़ना महसूस करती हूँ। ये मेरी दुकान हड़पना चाहते हैं।  मैं अपनी बहु के साथ मिल कर व्यापार करना चाहती हूँ जो हमारी जीविका का साधन बने। मुझे स्वयं के व्यापार के लिए दुकान की आवश्यकता है।  मैं ने आपनी जमा पूंजी से पानी की टंकी व दरवाज़े का व्यापार प्रारंभ किया है। मैं कोर्ट केस (court case)  लड़ने  कि हालात मे नहीं हूँ। बताएँ, मुझे क्या करना चाहिए।

समाधान-

प के पास दुकान को खाली कराने के बहुत सारे कानूनी आधार हैं। जैसे किराएदार द्वारा छह माह से अधिक का किराया न दे कर किराया अदायगी में कानूनी डिफाल्ट करना, दुकान को शिकमी किराए पर देना और इन दोनों कारणों से अधिक मजबूत कारण यह कि आप अपनी बहू के साथ मिल कर व्यापार कर रही हैं और उस के लिए आप को दुकान की जरूरत है। भोपाल में किसी भी संपत्ति से किराएदार को न्यायालय की डिक्री के निष्पादन में ही हटाया जा सकता है, अन्यथा नहीं। यदि आप समझती हैं कि न्यायालय बिना जाए आप का काम हो जाए तो आप कभी सफल नहीं हो सकेंगी। यदि आप किसी गुंडा गेंग को भी सुपारी दे कर मकान खाली कराना चाहें तो नहीं कर सकेंगी क्यों कि इस मामले में भी शायद आप का किराएदार भारी पड़ेगा। यह एक गलत और गैर कानूनी काम है और इस के लिए आप को जेल भी जाना पड़ सकता है।

यदि आप को दुकान खाली कराना है तो आप को अदालत में ही अर्जी देनी पड़ेगी। अदालत आप इस लिए नहीं जाना चाहती कि वहाँ कई वर्ष तक निर्णय नहीं होता। तो इस में अदालत की गलती नहीं है। इस में राज्य सरकार की गलती है कि उस ने पर्याप्त अदालतें नहीं खोल रखी हैं। राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार के समय 2003 में ही नया किराया कानून बन गया था। बाद में उस के अनुरूप किराया अधिकरण और अपील किराया अधिकरण स्थापित हो जाने से अब दो साल में मुकदमा अधिकरण से तथा साल भर में अपील से निपट जाता है।

जो भी स्थिति है उस में आप को चाहिए कि तुरन्त वकील से मिल कर दुकान खाली कराने का मुकदमा करें। अभी तक मुकदमा न कर के आप ने कई वर्ष बर्बाद कर दिए हैं। जब पहली बार शिकमी किराएदार रखा गया तभी आप दुकान खाली कराने का दावा कर देतीं तो हो सकता था अभी तक दुकान का कब्जा आप को मिल चुका होता।

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