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मुस्लिम विधि में पुरुष का एक से अधिक, चार तक विवाह करना अधिकार नहीं, एक सशर्त छूट है


फीरोज़ अहमद पूछते हैं,

र !  हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने “मुस्लिम सरकारी कर्मचारी के दूसरे विवाह” पर  एक असमंजस भरा निर्णय दिया है, जो कि संविधान प्रदत्त मुस्लिम पर्सनल लॉ के अधिकार के विपरीत है। कृपया इस निर्णय को साधारण भाषा में समझाएँगे कि क्या यह निर्णय सेवा नियमों के अंतर्गत है या या सभी मुसलमानों के लिए है। कृपया यह भी बताएँ कि एक मुस्लिम तलाक को न्यायालय के समक्ष कैसे सिद्ध कर सकता है?

उत्तर–

फीरोज़ भाई !
प ने एक साथ दो प्रश्न पूछ लिए हैं। दोनों के विषय भिन्न हैं इस कारण दोनों का उत्तर एक साथ देना ठीक नहीं है। आप के दूसरे प्रश्न कि एक मुस्लिम तलाक को न्यायालय के समक्ष कैसे सिद्ध कर सकता है? का उत्तर बाद में दूंगा। अभी ताजा सुप्रीमकोर्ट के निर्णय पर चलते हैं।

भी तक यह निर्णय किसी विधि पत्रिका या नैट पर उपलब्ध नहीं हो सका है इस कारण से इस के संबंध में अभी विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन जितना समाचार माध्यमों से पता लगा है उतनी जानकारी के अनुसार लियाकत अली राजस्थान सरकार के पुलिस विभाग में कांस्टेबल के पद पर नियोजित थे। उन्हों ने अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना ही दूसरा विवाह कर लिया। यह सही है कि उन का यह दूसरा  विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार गैरकानूनी नहीं है। यह प्रश्न न तो कभी अदालत के समक्ष विवाद का विषय बना और न ही इस पर किसी अदालत ने कोई निर्णय दिया है।
राजस्थान सेवा नियमों के अनुसार कोई भी राज्य कर्मचारी चाहे वह किसी भी पर्सनल लॉ से शासित होता हो पहली पत्नी के साथ विवाह संबंध में रहते हुए दूसरा विवाह केवल तभी कर सकता है जब कि उस ने राज्य सरकार से इस के लिए पूर्वानुमति प्राप्त कर ले। लियाकत अली ने दूसरा विवाह करने के पूर्व राज्य सरकार से पूर्वानुमति प्राप्त नहीं की और इस प्रकार उन्हों ने एक सेवा संबंधी दुराचरण किया। जब इस की शिकायत राज्य सरकार से की गई तो इस का अन्वेषण किया गया और पाया  कि लियाकत अली ने वास्तव में दूसरा विवाह किया है। तब उन्हें दुराचरण के लिए आरोप पत्र दिया गया और आरोप सही पाए जाने पर उन्हें सेवा से निष्कासन का दंड दिया गया। इस दंड को राजस्थान उच्च न्यायायलय ने सही माना और लियाकत अली को कोई राहत प्रदान नहीं की। लियाकत अली ने इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका प्रस्तुत की।  किन्तु उन की यह याचिका सुप्रीमकोर्ट द्वारा निरस्त कर दी गई। यह निर्णय केवल उन सरकारी कर्मचारियों के लिए है जिन्हों ने बिना अनुमति लिए पहली पत्नी के साथ विवाह में रहते हुए दूसरा विवाह कर लिया है। यहाँ मामला पर्सनल लॉ का था ही नहीं। यह मामला केवल सेवा नियमों के अंतर्गत एक दुराचरण का था। 
ब यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि सरकार का कोई ऐसा सेवा नियम नहीं होना चाहिए जो पर्सनल लॉ में दखल देता हो। लेकिन यह प्रश्न बिलकुल गलत तरीके और तर्कों के साथ उठाया जा रहा है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में विवाह एक कंट्रेक्ट (संविदा) है। एक स्त्री के यह अधिकार प्राप्त है कि निकाह के ल

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