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राज्य और केन्द्रीय कानूनों में प्रतिकूलता (Repugnancy)

समस्या-

भिलाई, छत्तीसगढ़ से नरेन्द्र कुमार ने पूछा है –

मैं भिलाई इस्पात संयंत्र में सीनियर आपरेटर के पद पर कार्यरत हूँ।  हमारे संयंत्र में 1960  से मध्यप्रदेश औद्योगिक संबंध अधिनियम (MPIR Act/CGIR Act) लागू है। औद्योगिक विवाद अधिनियम में हुए संशोधन के पश्चात रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन का कहना है कि अब औद्योगिक विवाद अधिनियम में 2010 में हुए संशोधन के फलस्वरूप भिलाई इस्पात संयंत्र में मध्यप्रदेश/ छत्तीसगढ़ औद्योगिक संबंध अधिनियम की जगह औद्योगिक विवाद अधिनियम लागू होगा।  उसऩे (1 Oct 2012) अपने आदेश द्वारा भिलाई इस्पात संयंत्र से औद्योगिक संबंध अधिनियम को हटा दिया।  क्या किसी को कानून एक रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन अपने अपने आदेश द्वारा हटा सकता है। जिस कानून (मध्यप्रदेश /छत्तीसगढ़ औद्योगिक संबंध अधिनियम) को राष्ट्रपति की अनुमति से लागू किया गया था।  अब हम पर कौन सा कानून लागू होगा और किस धारा के तहत?  कयों कि हम औद्योगिक संबंध अधिनियम के आदी हो चुके हैं।

समाधान-

THE_INDUSTRIAL_DISPUTES_ACTप ने ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार के जिस आदेश का उल्लेख किया है उसे पढ़े बिना आप के प्रश्न का उत्तर देना संभव नहीं है।  मुझे लगता है कि आप ने उक्त आदेश को सही तरीके से समझा नहीं है। हो सकता है आप ने उसे पढ़ा ही न हो।

प को जानना चाहिए कि देश में तीन तरह के कानून बनते हैं। एक वे कानून जो केवल केन्द्र बना सकता है और पूरे देश पर प्रभावी होते हैं। दूसरे वे कानून जिन्हें सिर्फ राज्य बना सकते हैं और जो केवल राज्य में ही प्रभावी होते हैं। तीसरी तरह के कानून वे हैं जिन्हें दोनों ही सरकारें बना सकती हैं और यदि केन्द्र सरकार बनाती है तो पूरे देश में व राज्य सरकार बनाती है तो केवल राज्य में प्रभावी होते हैं। भारत के संविधान में उन तीनों तरह के कानून जिन विषयों पर बनाए जा सकते हैं उन की तीन सूचियाँ बनी हुई हैं। केन्द्र सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची। केवल तीसरी समवर्ती सूची के विषयों पर बनने वाले कानून हैं जिन में केन्द्रीय कानून और राज्य के कानून में प्रतिकूलता की संभावना हो सकती है। किसी मामले में राज्य का कानून भी वैसा ही हो जैसा कि केन्द्र सरकार का कानून है तो एक ही मामले में दो तरह के कानून होने से समस्या खड़ी हो सकती है। जब भी ऐसी समस्या सामने आती है तो केन्द्रीय कानून राज्य के कानून पर प्रभावी होता है।

क्सर यह होता है कि केन्द्रीय कानून जिन विषयों पर पहले से बने हुए हों उन पर राज्य कानून नहीं बनाते हैं। यदि कानून बनाए भी जाते हैं तो एक ही मामले में दोनों के प्रावधान भिन्न नहीं होते हैं। यदि किसी कानून में एक ही मामले पर केन्द्र और राज्य के कानून में भिन्नता हो तो वह प्रावधान प्रभावी होता है जो केन्द्र ने बनाया हो। लेकिन यदि राज्य समझता है कि केन्द्र द्वारा बनाया गया कानूनी उपबंध उस के राज्य की परिस्थितियों में सही नहीं है और भिन्न होना चाहिए तो राज्य उस विषय पर अपना भिन्न कानून या उपबंध को विधानसभा में पारित करवा सकता है। लेकिन जब तक वह राष्ट्रपति की अनुमति नहीं ले लेता तब तक वह केन्द्रीय कानून के स्थान पर प्रभावी नहीं हो सकता। लेकिन राष्ट्रपति की अनुमति के बाद वह केन्द्रीय कानून के बदले राज्य में प्रभावी रहेगा।

द्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के स्थान पर जो कानून मध्यप्रदेश में बनाया गया था उसे राष्ट्रपति की अनुमति ली गई थी और वह केन्द्रीय कानून के स्थान पर प्रभावी था। लेकिन 2010 में हुए संशोधनों से कुछ नए उपबंध नए मामलों पर औद्योगिक विवाद अधिनियम में जोड़े गए हैं। जिन मामलों में ये उपबंध जोड़े गए हैं उन पर राज्य के कानून में कोई उपबंध नहीं है। इस कारण से 2010 का संशोधन अधिनियम के उपबंध मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में प्रभावी होंगे। लेकिन जिन मामलों पर पहले राष्ट्रपति की अनूमति प्राप्त राज्य का कानून उपलब्ध है उन मामलों में राज्य का कानून प्रभावी होगा।

स कारण से आप को ट्रेड यूनियन रजिस्ट्रार ने जो आदेश दिया है वह केवल मात्र स्पष्टीकरण होना चाहिए कि जिन मामंलों में केन्द्रीय कानून बना है उस मामले में राज्य के कानून में कोई प्रावधान नहीं होने के कारण संशोधन अधिनियम के प्रावधान प्रभावी होंगे। इस कारण आप को उक्त आदेश को ठीक तरह से पढ़ना चाहिए और स्पष्ट हो जाना चाहिए कि राज्य के कानून के कौन से प्रावधान प्रभावी होंगे और कौन से प्रावधान केन्द्रीय कानून के प्रभावी होंगे। यदि आप उक्त आदेश की प्रति हमें उपलब्ध करा दें तो हम स्पष्ट कर सकते हैं कि वास्तविक स्थिति क्या है?

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