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संसद सर्वोच्च नहीं है?

द्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 देश में उत्पन्न औद्योगिक विवादों का हल प्रस्तुत करता है। किसी भी कर्मकार की सेवाएँ समाप्त हो जाने पर उत्पन्न औद्योगिक विवाद इसी कानून के अंतर्गत हल किया जाता है। इसी कानून में यह भी प्रावधान है कि यदि कोई लाभ यदि नियोजक की ओर बकाया हो तो उस की संगणना श्रम न्यायालय द्वारा की जा सकती है। कोई भी औद्योगिक विवाद सीधे श्रम न्यायालय या औद्योगिक न्यायाधिकरण के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। उसे केवल उचित सरकार (राज्य या केंद्र सरकार) ही इन न्यायालयों को संप्रेषित करती है।
स कानून के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया है कि कुछ खास किस्म के औद्योगिक विवादों का निपटारा श्रम न्यायालय अथवा औद्योगिक न्यायाधिकरण द्वारा निर्धारित अवधि में कर दिया जाना चाहिए। इन प्रावधानों का मूल अंग्रेजी पाठ निम्न प्रकार है-

Sec.10 [(2A)   An order referring an industrial dispute to a Labour Court, Tribunal or National Tribunal under this section shall specify the period within which such Labour Court, Tribunal or National Tribunal shall submit its award on such dispute to the appropriate Government:
Provided that where such industrial dispute is connected with an individual workman, no such period shall exceed three months:

Sec. 33 C (2)  Where any workman is entitled to receive from the employer any money or any benefit which is capable of being computed in terms of money and if any question arises as to the amount of money due or as to the amount at which such benefit should be computed, then the question may subject to any rules that may be made under this Act, be decided by such Labour Court as may be specified in this behalf by the appropriate Government 1[within a period not exceeding three months.] 

धारा 10 [2-ए में स्पष्ट किया है कि यदि सरकार कोई भी औद्योगिक विवाद श्रम न्यायालय, औद्योगिक न्यायाधिकरण या राष्ट्रीय न्यायाधिकरण को संप्रेषित करती है तो संप्रेषण आदेश में अंकित करेगी कि इस विवाद का निपटारा कितने समय में किया जाना है, यदि विवाद किसी एक श्रमिक के संबंध में हुआ तो यह अवधि तीन माह से अधिक की नहीं होगी।
सी तरह धारा 33 सी (2) में स्पष्ट किया गया है कि मामले का निपटारा तीन माह से में किया जाएगा।

ये कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए हैं, अर्थात भारतीय संसद ने सरकारों को निर्देशित किया है कि इस तरह के विवादों का निपटारा तय सीमावधि में होना चाहिए। अब यह भी आवश्यक है कि अदालतों की संख्या इतनी पर्याप्त हों कि विवादों का निपटारा इस तयशुदा सीमावधि में किया जा सके। लेकिन सरकारों ने इतनी संख्या में अदालतों का गठन ही नहीं किया कि ऐसा किया जा सके। हो यह रहा है कि इस तरह के विवादों के निपटारे में 20-20 वर्ष लग जा रहे हैं। जहाँ विवाद के निपटारे की अवधि तीन माह तय की गई है वहाँ एक सुनवाई के बाद दूसरी सुनवाई की तिथि ही छह माह बाद की दी जा रही है।
अब इसे आप क्या कह सकते हैं?
1. कि संसद सर्वोच्च नहीं है, सरकारें सर्वोच्च हैं, वे कुछ भी कर सकती है, संसद के किसी भी निर्देश को बट्टा खाते में डाल सकती है।
2. कि संसद केवल दिखावे के लिए और जनता को धोखा देने के लिए कानून बनाती है।
3. कि इस देश में श्रमजीवियों का कोई मूल्य नहीं। उन के अधिकारों के लिए जो कानून बनते हैं उन पर कोई अमल नहीं किया जाता। अंबानी बंधुओं के विवाद सु्प्रीम कोर्ट दिनों और महिनों में तय कर देता है। 

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