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सब से पहले अपने विरुद्ध कार्यवाही होने के भय को त्यागें और उचित कार्यवाहियाँ करें

समस्या –

 लखनऊ, उत्तर प्रदेश से वैभव पूछते हैं –

मेरी शादी २०फ़रवरी २००८ में महमूदाबाद, जिला सीतापुर से हिन्दू रीतिरिवाज से हुई थी। उस समय मैं संगीत की पढ़ाई कर रहा था, जिसमे मैं ने हमेशा उच्च स्थान प्राप्त किया। किन्तु मेरे  भाग्य की विडंबना कुछ और ही थी।  मेरी पत्नी ने शादी की पहली रात में ही  यह बताया कि उसकी शादी बिना उस की मर्जी के हुई है, छोड़ दो नहीं तो फँस जाओगे। उस के बाद मैं ने उसे काफी समझाया।  लेकिन वह मुझे गन्दी गन्दी गलियाँ देने लगी। तब  मैंने यथास्थिति से अपने  माता-पिता व  पत्नी के माता पिता को अवगत करवाया।  पत्नी के माता-पिता उनके अन्य रिश्तेदार भी साथ में आये और उन्होंने ने भी समझाया।  परन्तु उनके जाते ही पत्नी के स्वाभाव में एकदम से उग्रता आ गयी और घर में रखी वस्तुएँ इधर उधर फेंकने लगी और गन्दी गन्दी गलियाँ देने लगी।  उस के बाद से ही स्थिति ऐसी हो गई कि वह छत पर चढ़ कर चिल्लाती और अभद्रतापूर्ण वार्तालाप करती।  वह नए नए तरीकों से परेशान करती।  मेरे पिता हृदय, डायबिटीज व उच्चरक्तचाप रोगों से पीड़ित हैं तथा मेरी माता जी डायबिटिक व उच्चरक्तचाप से ग्रसित हैं।  रात में भी ३.०० बजे हो या दिन हो पत्नी को उन पर भी कोई दया नहीं आती।  हाथ जोड़ कर समझाने पर भी उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।  बल्कि उसने मेरे ६५-७० वर्ष के माता पिता को धक्का दे दिया जिस से उन्हें काफी चोट भी लग गयी।  मेरे पिता जी को ह्रदयाघात होने के कारण  अस्पताल में एडमिट करवाना पड़ा।  यथास्थिति से जब उनके घर वालो को सूचित किया तो उन्होंने कहा कि बच्ची समझ कर माफ़ कर दें।   इस के बाद वो बक्सा जिस में हमारे परिवार द्वारा दिए जेवर व उपहार थे, उसे लेकर उनके पिता जी विदा कराकर चले गए।  बाद में पत्नी के पिता जी का फ़ोन आया कि वह अब बिलकुल सही हो गयी है।  हम विदा कराने गए तो वह एक बैग लेकर चलने लगी, मैंने पूछा के तुम्हारा बक्सा कहाँ है तो उस के पिता जी ने कहा कि हमें कल लखनऊ काम से आना है,आपकी गाड़ी में ले जाते नहीं बनेगा, हम कल आयेंगे तो लेते आयेंगे।  शादी के 5 वर्ष बीतने के बाद भी बक्सा वहीं है।  पत्नी के परिवार वाले बहाने बनाते हैं,  पूछने पर अब जान से मार देने  व  दहेज़ के केस में फ़ँसाने की  धमकियाँ देते हैं।  सभी परेशानियों को  देखते हुए  मैं विदा कराकर एक अन्य दूसरी जगह,  दूसरे घर में 10 जनवरी 2010 से पत्नी के साथ रहने लगा हूँ।  यहाँ पर मुझसे  बड़े एक भईया भाभी व उनकी 3 वर्ष की पुत्री भी रहती है।  दूसरे ही दिन से ही न तो वह मेरे लिए खाना ही बनाती है और ना ही अपने कमरे में आने देती है।  मेरे ऊपर थूकती है और जो भी हाथ में आता है वही मार  देती है।  कभी रसोई में बाथरूम कर देती है, ना, कभी आंगन में।  कभी रसोई  में नग्नवस्था में स्नान करती है।  छत के ऊपर टीन पर चढ़ कर चिल्लाने लगती है और उलटी सीधी हरकतें करती है।  मुझ पर भाभियों व माँ से शारीरिक संबंधों का आरोप लगाती है।  इस संदर्भ में उनके परिवार वालों को बुलाकर  लगभग  15-20 बार मीटिंग की गई।   जिसमे उन्होंने उसे समझाने की जगह उल्टा हम ही लोगो को डरया धमकाया कि वो जैसा करती है वैसा  करने दोस अन्यथा सब को  जेल में बंद करवा देंगे।  ससुराल वालों के इस व्यवहार से हम काफी दु:खी  हुए।   गत ३१.१०.२०११ को पत्नी ने कमरा  बंद करके मेरे बक्से में रखे हुए मेरे  लगभग २५- ३० कपडे निकाल कर उन में आग लगा दी।  जब मैंने धुआँ निकलते देखा तो मैंने दरवाजा खोलने की  कोशिश की।  परन्तु अन्दर से बंद होने की वजह से नहीं खोल पाया।   मैंने मोहल्ले वालों व भइया भाभी को  बुलाया जिनकी सहायता से  दरवाजा तोडा गया तो देखा की वह किनारे खड़ी हंस रही है।  जिसके बाद मोहल्ले वालों की ही सहायता से आग पर नियंत्रण पाया गया।  जिसकी सूचना उनके घर वालों को दी तो उनका भाई, मौसा व मौसा का लड़का व अन्य रिश्तेदार आये और पुलिस में सूचना  देने के लिए मना  किया।    उल्टा मुझको मारा पीटा व रिवोल्वर दिखाकर जान से मार देने की धमकियाँ  दी।  उक्त घटना से हमारा परिवार व मोहल्ले वाले सभी काफी भयभीत थे।  मेरी पत्नी में कोई परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि फ़ोन करके अपने  भाई को बुलवा कर व फ़ोन द्वारा लगातार धमकियाँ देती है।  काफी दुखी होकर अपने भविष्य व मानसिक प्रताड़ना से बचने हेतु मैंने 3 दिसम्बर 2011 को डी.आई.जी, सी.ओ. व ए.सी.ओ. महोदय को प्रार्थना पत्र डाक से प्रेषित किया जिस में सभी तथ्यों के पुष्ट होने पर  हिदायत दी गई।   परन्तु उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा।  जिसके बाद  पत्नी के ज्यादा बीमार पड़ने की वजह से मैंने उसे एक सरकारी अस्पताल में दिखाया तो डाक्टर ने बताया कि आपकी पत्नी मानसिक रोग से शादी से पहले से ही पीड़ित है।  जिसकी दवाई कराइ थी परन्तु हम को नहीं बताया।  अपनी पत्नी में कोई भी सुधार न देख कर व धमकियों से परेशान होकर मैंने अगस्त 2012 में विवाह विच्छेद हेतु न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर दिया है।  अब भी पत्नी के परिवार वाले मुझको फ़ोन पर धमकियाँ देते हैं और आकर मारते हैं, मंत्री व पुलिस द्वारा प्रताड़ना दिलवाने  व दहेज़ के केस में बंद करवाने की बात कहते हैं।  उक्त सन्दर्भ में वो अपने काफी सौर्सेज बताते हैं।  वे लोग  काफी क्रिमिनल मानसिकता के व्यक्ति हैं उन के वहाँ बहू के साथ डिवोर्स हो चुका है और उसने (बहू) ने  भी इनके परिवार पर दहेज़ का केस किया था। वे अपने परिवार में ही कई अन्य मुकदमे लड़ चुके हैं और  अपने को बहुत बड़ा मुकदमेबाज बताते हुए कहते हैं कि ऐसे केस में फँसा  दूंगा जिस में जिंदगी भर जेल में सड़ोगे।   मेरे भईया-भाभी के विषय में कोई प्रार्थना पत्र  नहीं गया दिया है परन्तु मोहल्ले वालों के सामने गन्दी गन्दी गलियाँ व धमकियाँ  देती है व पत्नी के  घर वाले आकर अभद्रता करते हैं।  पत्नी  अभी भी मेरे घर पर ही है, मुझे लगातार प्रताड़ित करती है व करवाती है।  ऐसी स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए? उचित मार्गदर्शन करें।

समाधान-

प की समस्या पढ़ी।  आप ने बहुत गलतियाँ की हैं।  आप की पत्नी ने विवाह के पहले ही दिन यह स्वीकार किया था कि विवाह उस की इच्छा के बिना हुआ है।  तो वह सही समय था जब आप को कदम उठाना चाहिए था।  यदि बिना विवाह की इच्छा के किसी महिला ने आप से विवाह किया था और वह आप को उसे छोड़ देने को कह रही थी तो तुरन्त उस का बयान कुछ गवाहों के बीच दर्ज करवाना चाहिए था।  पुलिस को भी सूचना देना चाहिए था कि उस के परिजनों ने उस का विवाह आप के साथ उस की इच्छा के बिना कर के गलती की है।  जबरन पुत्री का विवाह किसी के साथ करना पहला अपराध था जिसे आप ने माफ कर दिया।  यदि आप की पत्नी आप के साथ आरंभ से ही नहीं रहना चाहती थी तो आप ने भी उसे उस के माता-पिता के कहने से ही सही अपने पास रखा है।  यह भी एक गलती थी जो आप ने की।  इस के पीछे आप की यह मंशा रही हो सकती है कि विवाह मुश्किल से होता है और जब हो गया है तो उसे बनाए रखा जाए।  लेकिन यही आप के लिए मुसीबत की जड़ बना हुआ है।

जैसे जैसे आप की पत्नी की उग्रता बढ़ती गई वैसे वैसे आप ने उस के मायके वालों से शिकायत की।  लेकिन आप भारतीय समाज को तो जानते हैं न?  यहाँ बेटी को विवाह के बाद पराया समझा जाता है और उस के भी पहले बोझ।  कोई भी अपनी बेटी का विवाह होने के बाद उत्पन्न हुई परिस्थितियों में उस पराई चीज को जो बोझ है वापस अपने घर में प्रवेश क्यों कर देगा? यही कारण है कि आप के ससुराल वाले चाहते हैं कि जैसे भी हो वह आप के साथ रहे, उस बीमार मुसीबत को वे अपने घर वापस क्यों लाएँ?  जैसे ही उन्हें अवसर मिला उन्हों ने आप की पत्नी का स्त्री-धन भी अपने पास रख लिया।  वे सोचते हैं कि अब आप के पास इस बात का कोई सबूत नहीं कि आप की पत्नी अपना स्त्री-धन मायके रख आई है।  भविष्य में यदि कोई विवाद हो तो स्त्री-धन की मांग कर के आप पर दबाव बनाया जा सके।

स मामले में आप की पत्नी और उस के मायके वाले लगातार आप का सहयोग करने के  स्थान पर आप को धमकाने और आप के साथ मारपीट करने के अपराधिक कृत्य कर रहे हैं।  होना तो यह चाहिए था कि जिस दिन पहली बार उन्हों ने अपराधिक कृत्य किया उस की तुरन्त पुलिस को सूचना दे कर कार्यवाही की जाती।  एक अपराधिक कृत्य को छुपा कर हम हमेशा अपराधी को बचा कर उस का हौसला बढ़ाने का काम करते हैं।  यही आप ने किया।  हो सकता है आप उन के द्वारा मुकदमों में फँसाए जाने से डर गए हों या फिर उन्हों ने जो रसूख आप को बता रखे हों उन से आप भय खाते हों। लेकिन आप को अंत में अदालत तो जाना पड़ा ही।  यदि आप पहले ही अदालत चले जाते और सही समय पर सही कार्यवाही करते तो आप को शायद यह दिन देखने को नहीं मिलते।  आप ने तलाक के लिए मुकदमा किया है।  आप के पास तलाक के पर्याप्त आधार उपलब्ध हैं।  आप के वकील ने आप के आवेदन में उन्हें अवश्य ही समाविष्ट किया होगा।  यदि आप पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत कर सके तो आप को तलाक मिल जाएगा।

लेकिन अब भी देर नहीं हुई है।  पुरानी कहावत है ‘देर आयद दुरुस्त आयद’। आप को चाहिए कि आप अब अपने ससुराल वालों से न डरें।  यह सही है कि वे भी आप के विरुद्ध कार्यवाही कर सकते हैं।  लेकिन कार्यवाही से डरने की जरूरत नहीं है। आरंभ में परेशानी जरूर होती है।  मुकदमा लड़ना पड़ता है पर अंत में सच ही जीतता है।  आप के पास तो मुहल्ले के लोगों की बहुत सारी सच्ची साक्ष्य है।  यदि अब आप के ससुराल वाले कोई धमकी देते हैं या मारपीट करते हैं तो तुरंत पुलिस को सूचना दीजिए।  पुलिस कार्यवाही न करे तो अदालत में परिवाद प्रस्तुत कीजिए।  आप के ससुराल वालों के कितने ही रसूख हों वे अदालत की कार्यवाही को नहीं रोक सकते और न ही आप के पक्ष की सच्ची साक्ष्य को समाप्त कर सकते हैं।  आप को हिम्मत रखनी होगी और कार्यवाहियाँ करनी होंगी।  जो भी परिस्थितियाँ हैं उन में आप अपनी पत्नी के साथ हमेशा नहीं रह सकते।

धिकांश, बल्कि कहिए कि लगभग सभी पुरुष इस बात से डरते हैं कि उन के विरुद्ध 498 ए और 406 आईपीसी का मुकदमा कर दिया जाएगा।  उन्हें और उन के रिश्तेदारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।  लेकिन यह अर्ध सत्य है।  रिश्तेदारों के विरुद्ध आसानी से कार्यवाही नहीं होती।  यदि कोई मिथ्या प्रथम सूचना रिपोर्ट आप के विरुद्ध दर्ज भी कराई जाती है तो आप  धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता में उच्च न्यायालय को आवेदन कर के उसे निरस्त करवा सकते हैं।  इस बारे में अनेक न्यायिक निर्णय आ चुके हैं।  इसलिए सब से पहले अपने विरुद्ध होने वाली कार्यवाहियों का भय त्यागिए और उचित कानूनी कार्यवाहियाँ कीजिए।  बिना कुछ किए तो आप इस समस्या से बाहर निकल नहीं सकते।  इस मामले में आप तलाक लेने गए हैं और एक बार विवाह के पश्चात पति ही सब से नजदीकी रिश्तेदार है, इस कारण से तलाक लेने के उपरान्त भी जब तक आप की पत्नी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो जाती है या उस का दूसरा विवाह नहीं हो जाता है आप को उस के भरण पोषण के लिए न्यायालय द्वारा निर्धारित राशि अदा करनी पड़ सकती है। तलाक के उपरान्त आप की पत्नी या तो उस के मायके वालों के साथ रह सकती है या फिर अलग अकेले रह सकती है।  लेकिन आप दूसरा विवाह कर सकते हैं।

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