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स्त्री या पुरुष अपने आधारों पर तलाक की डिक्री प्राप्त कर सकते हैं, सहमति आवश्यक नहीं।

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धर्मेन्द्र सिंह ने जेहानाबाद बिहार से पूछा है-

गर पति न चाहे तब भी तलाक हो सकता है क्या? अगर हो सकता है तो उस का आरंभ कैसे करना होगा?

समाधान-

निश्चित रूप से आप से यह प्रश्न  किसी स्त्री ने पूछा होगा। या फिर हो सकता है किसी स्त्री की स्थिति को देख कर आप ने खुद सोचा हो कि क्या ऐसा हो सकता है? आप का सोचना बिलकुल सही है 1955 में हिन्दू विवाह अधिनियम प्रभावी होने के उपरान्त से पत्नी और पति दोनों में से कोई भी कुछ निश्चित आधारों पर तलाक के लिए अर्जी दाखिल कर सकते हैं और आधार प्रमाणित हो जाने पर तलाक की डिक्री हासिल कर सकते हैं। बल्कि सहमति से तलाक तो तब भी आरंभ नहीं हुआ था इसे तो बाद में संशोधन के जरिए लागू किया गया। 1955 के पूर्व हिन्दु विवाह में किसी प्रकार का विवाह विच्छेद था ही नहीं।

स्त्री या पुरुष किन आधारों पर अपने जीवनसाथी से तलाक प्राप्त कर सकते हैं वे सब आधार हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-13 में वर्णित है। धारा 11व 12 का भी अध्यनयन करना चाहिए।

तलाक के लिए सब से पहले यह करें कि अपने इलाके के किसी अच्छे अनुभवी वकील से मिलें और सलाह करें। वह आप से बातचीत कर के यह बता सकेगा कि तलाक के लिए कोई आधार है या नहीं। यदि आधार है तो फिर परिवार न्यायालय में तलाक की अर्जी दाखिल करने और डिक्री हासिल करने में आप की मदद कर सकता है।

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