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हिन्दू विवाह विच्छेद केवल न्यायालय की डिक्री से ही संभव है।

hindu-marriage-actसमस्या-

सतवन्त जी ने आर्यपुरा सब्जीमंडी, दिल्ली से समस्या भेजी है कि-

मैं जम्मू की रहने वाली हूँ, मेरी शादी 1993 मे दिल्ली निवासी से हुई थी। शादी जम्मू में हुई थी, उनके रिश्तेदार भी वहीं रहते हैं। शादी के बाद वो मुझे दिल्ली ले आए। शुरू से ही मुझे परेशान रखा। मारना, पीटना, डिमांड करते। माँ-बाप ग़रीब थे, सहती रही। साल गुज़रे, दो बेटे हो हुए। जिंदगी यूँ ही चलती रही, खुशी नहीं मिली। 1998 में मुझे टीबी की बीमारी हो गयी तो मेरे पति ने मुझे जम्मू भेज दिया। मैं एक बेटे के साथ जम्मू अपने माँ बाप के पास रहने लगी। पति ने कभी मेरी ना अपने बच्चे की खबर ली, ना कभी पैसे भेजे। जम्मू में मेरा इलाज चला, 2 साल में ठीक हुई। फिर मेरी माँ ने जम्मू कोर्ट में तलाक़ का केस फाइल कर दिया। काफ़ी नोटिस भेजे लेकिन पति नहीं आया। ना ही मैं जाना चाहती थी, पति के पास। फरवरी 2003 में जम्मू कोर्ट में वकील ने आपसी सहमति के पेपर तैयार करवाए और पति के रिश्तेदार और हमारे रिश्तेदारो ने आपसी समझौते के तहत हमारे डाइवोर्स पेपर पर साइन करवा दिए, दो गवाहों के भी इस शर्त पर कि बेटे को पति अपने साथ ले जाएगा। उस वक़्त यही तय हुआ था कि अब हमारी जिंदगी अलग हो गयी है। मैं ओर पति कहीं भी दूसरी शादी कर सकते हैं। वो दिन था और आज का दिन है, ना तो अपने बच्चों की ओर ना पति की तरफ देखा। 2004 में मैं ने दूसरा विवाह कर लिया दिल्ली में। इन शादी से मेरे दो बच्चे भी हैं। अब 11 साल बाद अक्टूबर 2014 में पता नहीं कहाँ से पहला पति आ गया। परेशान करने कि मुझे अब दोबारा तलाक़ और डिग्री चाहिए। मैं पुलिस के पास गयी। तो पुलिस ने कहा कि आपके दूसरे पति पर कार्यवाही हो सकती है। ये 11 साल पुराने रज़ामंदी के कागज अवैध हैं। अब मुझे क्या करना चाहिए मैं बहुत परेशान और दुखी हूँ।

समाधान-

पूर्व में जो सहमति से विवाह विच्छेद की प्रक्रिया हुई थी वह सही नहीं है। हिन्दू विवाह में 1955 से पहले तलाक जैसी कोई चीज नहीं थी। कानून से विवाह विच्छेद की प्रक्रिया आई। कानून कहता है कि हिन्दू विवाह का विच्छेद केवल और केवल मात्र न्यायालय की डिक्री के माध्यम से ही हो सकता है। इस कारण पहले वाला विवाह विच्छेद कानून की निगाह में विवाह विच्छेद नहीं था। आप के और आप के पूर्व के पति के बीच कानूनी निगाह में विवाह अभी तक भी बना हुआ है। कानून की निगाह में आप अभी भी पूर्व पति की पत्नी हैं। आप ने जो दूसरा विवाह किया है वह कानून की निगाह में अवैध है क्यों कि कोई भी विवाहित पति या पत्नी अपने पति या पत्नी के जीवित रहते हुए उस से विवाह विच्छेद हुए बिना दूसरा विवाह नहीं कर सकता।

भी भी आप अपने पूर्व पति की कानूनन पत्नी हैं, इस कारण से यदि कोई व्यक्ति आप के साथ आप के पूर्व पति की सहमति या मौन सहमति के बिना यौन संबंध स्थापित करता है तो यह आईपीसी की धारा 497 के अन्तर्गत एक अपराध है। आप के साथ यौन संबंध बनाने का पक्का सबूत यह है कि आप के दूसरे पति से बच्चे हैं और वे उसे पिता हैं। इसी आधार पर पुलिस ने कहा है कि आप के वर्तमान पति परेशानी में पड़ सकते हैं और आप के पूर्व पति की शिकायत पर कार्यवाही हो सकती है। लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है।

प ने पूर्व पति के विरुद्ध विवाह विच्छेद का आवेदन दिया जो कि उस की तामील न होने से खारिज हो गया। फिर आप के पूर्व पति ने तलाक के दस्तावेज बना कर उन पर हस्ताक्षर करवा कर आप को यह विश्वास दिलाया कि तलाक हो गया है और अब दोनों विवाह कर सकते हैं। इस तरह उस ने आप को तलाक हो जाने का धोखा दिया। लेकिन चूंकि आप के पति का लिखित दस्तावेज आप के पास है कि आप दूसरा विवाह कर सकती हैं। यह दस्तावेज यह कहता है कि आप दूसरा विवाह कर सकती हैं और दूसरे पति के साथ यौन संबंध स्थापित कर सकती हैं। इस तरह आप के पति ने आप के साथ दूसरा विवाह करने वाले व्यक्ति को आप के साथ यौन संबंध स्थापित करने की मौन ही नहीं लिखित सहमति दी हुई है। इस कारण से धारा 497 आईपीसी के अन्तर्गत कोई अपराध आप के दूसरे पति के द्वारा किया जाना साबित नहीं होता है। यह सही है कि आप का पहला पति आप के दूसरे पति के विरुद्ध न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत कर सकता है, उन पर मुकदमा चला सकता है। लेकिन यह साबित नहीं कर सकता कि उन्हों ने कोई अपराध किया है।

धारा 494 आईपीसी के अन्तर्गत पहले पति या पत्नी के जीवनकाल में दूसरा विवाह करना अपराध है। लेकिन उस में आप के पहले पति को यह साबित करना होगा कि आप ने दूसरा विवाह किया है, जिसे साबित करना दुष्कर है। विवाह का अर्थ यह है कि आप के और आप के दूसरे पति के बीच सप्तपदी हुई हो। लेकिन हमारे यहाँ किसी भी स्त्री का दूसरा विवाह होता है तो सप्तपदी की रस्म नहीं की जाती है। इस दूसरी प्रकार के विवाह को नाता या नातरा कहते हैं। नाता या नातरा करना दूसरे विवाह की श्रेणी में नहीं आता इस कारण आप के दूसरे विवाह को साबित नहीं किया जा सकता और आप के विरुद्ध कोई अपराध साबित नहीं किया जा सकता।

स तरह आप के पास डर का कोई कारण नहीं है। आप के विरुद्ध आप का पहला पति अदालती कार्यवाही तो कर सकता है लेकिन वह आप को या आप के दूसरे पति को दंडित नहीं करवा सकता। लेकिन यह भी जरूरी है कि अब जो कुछ अवैधानिक हो गया है उसे वैधानिक रूप दिया जाए। इस के लिए आप को चाहिए कि आप अपने पहले पति के तलाक देने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लें और उस के साथ हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13ख मे पारिवारिक न्यायालय को आवेदन प्रस्तुत कर विधिवत विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर लें।

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