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Category: Judicial Reform

क्या वकीलों की पोशाकें न्याय प्रणाली और समाज के बीच अवरोध हैं?

न्यायाधीशों और वकीलों ने काले कोट वाली पोशाक  इंग्लेंड में पहली बार 1685 ईस्वी में किंग जॉर्ज द्वितीय की मृत्यु पर शोक संकेत के लिए अपनाई थी। तब
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न्यायाधीश और वकील काला कोट क्यों पहनते हैं?

भारत में कहीं भी आप किसी अदालत में जाएंगे। आप को काले कोटों की बहुतायत दिखाई देगी। चाहे भीषण गर्मी क्यों न पड़ रही हो। चेहरे से पसीने
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लोकपाल और न्यायपालिका के लिए सरकारों के बजट का निश्चित प्रतिशत निर्धारित हो

आखिर यह तय हो ही गया है कि लोकपाल विधेयक संसद के अगले सत्र में प्रस्तुत होगा। इस के लिए जिस प्रकार का वातावरण बना है उसे देखते
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पैबंद लगी पैरहन

कल के आलेख न्यायालयों की श्रेणियाँ और उन में न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ पर सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की टिप्पणी थी कि “इसमें परिवार न्यायालयों, उपभोक्ता फोरम व विविध ट्रिब्यूनल्स
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कोई इस आग को लगने से रोक पाएगा?

कोई व्यक्ति जब किसी कंपनी में ऐसा नियोजन प्राप्त कर लेता है, जिस में सेवा की अवधि उल्लखित नहीं होती तो सामान्यतः  उस का नियोजन सुरक्षित है, वह
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प्रणव दा! सिंह साहब! और सोनिया जी! न्याय के लिए कुछ नहीं, मतलब अन्याय जारी रहेंगे ?

तीसरा खंबा में 26 जनवरी, 2009 की पोस्ट थी, न्याय रोटी से पहले की जरूरत है, …. जीवन के लिए जितना हवा और पानी आवश्यक है उतना ही
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जनता का गुस्सा सब से भयंकर होता है

कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री ने न्यायपालिका को नसीहत दी थी कि न्यायाधीशों को सरकार पर अनावश्यक टिप्पणियाँ नहीं करनी चाहिए। यह अवसर राष्ट्रमंडल विधि सम्मेलन का था,
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सरकारों के माई-बाप

आज फिर खबर है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने कहा है कि न्यायपालिका को अतिसक्रियता दिखाते हुए ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिस से शासनप्रणाली के अन्य
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कीडों का कनस्तर खुलता है तो उसे खुलने दो!

तहलका में प्रकाशित प्रशांत भूषण के साक्षात्कार में भारत के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश श्री एस.एच. कपाड़िया के संबंध में की गई टिप्पणी पर कि ‘उन्हें उस कंपनी के
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विधि शिक्षा के नियंत्रण को ले कर बार कौंसिल और केन्द्र सरकार के बीच टकराव संभव

देशी विदेशी पूंजीपतियों को देश की जनतांत्रिक संस्थाओं की गतिविधियाँ अब रास नहीं आ रही है, जिस के कारण उन के हितों के लिए काम करने वाली केंद्र
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