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केवल सूचनाएँ कृतियाँ नहीं हैं, उन पर कोई कॉपीराइट नहीं होता …
समस्या-
मालेर कोटला, पंजाब से साहिल कुमार ने पूछा है-
मुझे तीसरा खंबा से कॉपीराइट से सम्बन्धित कुछ जानकारी चाहिए। मैं एक 11वीं कक्षा का छात्र हूँ और मेरा ब्लॉगर पर एक ब्लॉग www.interestingfactsinhindi.blogspot.com है। इस ब्लॉग पर मैं भिन्न-भिन्न चीजों के बारे में रोचक तथ्य डालता हूँ, जो कि मैं अंग्रेजी साइट्स से अनुवाद करता हूँ पर किसी एक साइट से नहीं बल्कि अलग अलग से करता हूँ। मेरा प्रश्न यह है कि उन साइटस को कैसे पता चलेगा कि कोई उनकी सामग्री का अनुवाद करके कोई अपने ब्लॉग पर डाल रहा है, और वह पता चलने के बाद क्या कर सकते हैं। मैं उक्त ब्लॉग के अलावा एक ऐसा ब्लॉग भी बनाना चाहता हूँ जिस में कि मैं ज्ञान से संम्बंधित कई और भी चीजें डालना चाहता हूँ और उस की सामग्री भी शायद मैं इसी तरह से एकत्र करूँ। कृपया मेरी कॉपीराइट सम्बन्धी इस अज्ञानता और डर को दूर करें।
समाधान-
साहिल कुमार जी, सब सब से पहले तो मैं आप के श्रम की सराहना करना चाहता हूँ कि आप ज्ञानवर्धक तथ्यों को अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद कर के अपने उक्त ब्लाग पर डाल कर हिन्दी अंन्तर्जाल के पाठकों को यह ज्ञानवर्धक सामग्री उपलब्ध करवा रहे हैं। इस तरह आप वास्तव में हिन्दी की सेवा कर रहे हैं और उस समृद्ध भी कर रहे हैं। आप को इस कार्य के लिए बहुत बहुत बधाई¡ आप एक ब्लाग और भी ऐसा ही बनाना चाहते हैं। एक व्यक्ति के लिए दो ब्लाग निरन्तर चला पाना संभव नहीं होता। फिर वह भी तब जब आप एक विद्यार्थी हैं। आप को अभी अपने विद्यार्थी जीवन के लक्ष्य भी प्राप्त करने हैं। इस तरह आप को पूरा समय अपने अध्ययन में देना चाहिए। उस से समय बचने के बाद ही ब्लागिंग करनी चाहिए। मेरा आप को सुझाव है कि जो भी आप सामग्री प्रस्तुत करना चाहते हैं उसे एक ही ब्लाग पर डालें। इस से आप का ब्लाग जल्दी जल्दी अपडेट होगा और आप के पाठकों की संख्या में भी वृद्धि होगी। आप ने अपने ब्लाग पर सामग्री को विषयों के हिसाब से वर्गीकृत किया हुआ है इस कारण से यदि एक से अधिक विषयों की सामग्री को भी आप एक ही ब्लाग पर प्रस्तुत करेंगे तो आप के ब्लाग की रेटिंग भी अच्छी होगी। आप का ब्लाग बहुत उपयोगी सिद्ध हो और उस के पाठक निरन्तर बढ़ते रहें ऐसी मेरी शुभकामना है।
कापीराइट के संबंध में बहुत अधिक डरने की कोई जरूरत नहीं है। आप जिस तरह की सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं वह सामान्य ज्ञान से संबंधित सामग्री है। वह कोई कृति नहीं है। आप केवल कूछ सूचनाएँ अपनी भाषा में अपनी खुद की शैली में प्रस्तुत कर रहे हैं। इस तरह की सामग्री पर किसी तरह का कोई कापीराइट नहीं होता है। आप इस तरह की सामग्री बिना किसी भय के प्रस्तुत करते रह सकते हैं। यदि आप किसी मौलिक कलात्मक रचना का अनुवाद प्रस्तुत करेंगे तो ही कॉपीराइट का प्रश्न उत्पन्न होगा। अभी आप जो सामग्री प्रस्तुत कर रहे हैं वे किसी तरह की कृति का अनुवाद नहीं है, वे केवल सूचनाएँ मात्र हैं, उन पर किसी तरह का कापीराइट नहीं है।
कापीराइट – कृतिकारों की संपत्ति
दो बरस पहले विश्व पुस्तक एवं कापीराइट दिवस मनाने के सप्ताह भर बाद ही बंगलूरू पुलिस ने भारत के प्रसिद्ध इंटरनेट सर्चइंजन गुरुजी डाट कॉम के दफ्तर पर छापा मारा और उन के बहुत सारे कंप्यूटर जब्त कर लिए। कंपनी के फाउंडर और सीईओ अनुराग डोड और कुछ अन्य अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस ने यह कार्रवाई टी-सिरीज ब्रांड के संगीत उत्पादों की निर्माता कंपनी द्वारा कराई गई एफआईआर पर की थी जिस में टी-सिरीज ब्रांड के संगीत उत्पादों के कापीराइट का उल्लंघन करने का आरोप लगाया था। गुरूजी डाट कॉम अपने सर्च इंजिन के लिए प्रसिद्ध हुआ था। लेकिन कुछ समय से उन्हों ने संगीत के लिए सर्च इंजन बनाया था जो किसी भी संगीत रचना को तुरन्त तलाश कर सकता था। इतना ही नहीं वह वैसे लिंक भी उपलब्ध कराता था जिस पर जा कर कोई भी व्यक्ति तुरंत उस संगीत रचना को सुनने के साथ ही उसे डाउनलोड कर के अपने कंप्यूटर पर सेव कर सकता था और जब चाहे उस का उपयोग कर सकता था। निश्चित रूप से गुरूजी डाट कॉम की इस सेवा से सभी संगीत उत्पादों की बिक्री पर बुरा असर पड़ा था। लेकिन यह तो सर्च इंजन की विशिष्टता थी। उस सर्च इंजन ने किसी भी संगीत उत्पाद या उस के अंश को न तो प्रस्तुत किया था और न ही किसी तरह का उपयोग किया था। इस कारण आईटी इंडस्ट्री में इस गिरफ्तारी से सनसनी फैल गई। यह अपनी तरह का पहला और विचित्र मामला था जिस में गुरूजी डाट कॉम ने एक एफिशियंट सर्च इंजन बनाया था तथा शिकायतकर्ता कंपनी के किसी भी उत्पाद का कोई उपयोग नहीं किया था। उन का सर्च एंजिन केवल उन लिंकों का रास्ता बताता था जहाँ से शिकायतकर्ता कंपनी के उत्पादों को बिना कोई मूल्य दिए हासिल किया जा सकता था। इस मामले से यह सवाल खड़ा हो गया था कि क्या इस तरह के स्वतंत्र कार्य को भी कापीराइट एक्ट का ऐसा गंभीर अपराध माना जा सकता है जिस में पुलिस अपने विवेक से प्रसंज्ञान ले कर कंपनी की संपत्ति को जब्त कर ले तथा उस के उच्चाधिकारियों को गिरफ्तार कर ले? इस मामले में गिरफ्तारी तक कहीं भी अदालत और कानून विशेषज्ञों की कोई भूमिका नहीं थी लेकिन अभियुक्तों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करते ही वह आरंभ हो जाने वाली थी। इस मामले में अभी न्यायालय का निर्णय आना शेष है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण होगा और जो कापीराइट एक्ट से जुड़े अपकृत्यों, अपराधों के विस्तार और सीमाओं को स्पष्ट करेगा।
हाल ही में यूरोप के तीन प्रमुख पुस्तक प्रकाशकों ने दिल्ली विश्वविद्यालय पर मुकदमा किया है जिस में विश्वविद्यालय लायसेंस प्राप्त व्यक्ति द्वारा उन की छात्रोपयोगी पुस्तकों की फोटोकापी करने को कापीराइट का उल्लंघन बताया है। इन प्रकाशकों की आपत्ति को मान लिया जाए जाए तो छात्र उन महंगी पुस्तकों का उपयोग करने से वंचित हो जाएंगे। इस आपत्ति को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन सहित अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों ने इस आधार पर खारिज कर दिया है कि इस का शैक्षणिक गतिविधियों पर बुरा प्रभाव होगा। लेकिन कुछ लोगों ने उस का उपाय भी सुझाया है कि यदि फोटोकापियाँ प्रकाशकों से लायसेंस प्राप्त कर के की जाएँ तो एक-डेढ़ रुपया प्रति पृष्ट की दर पर छात्रों को उपलब्ध हो सकती हैं और प्रकाशकों को भी उस का लाभ मिल सकता है।
इन दो घटनाओं ने सिद्ध कर दिया कि कापीराइट आम लोगों को प्रभावित करने लगा है और ‘सब चलता है’ कहते हुए कापीराइट का उल्लंघन किया जाना भारी पड़ सकता है। अब आम लोगों को यह जानना जरूरी हो गया है कि कापीराइट क्या है? जिस से वे अपनी अज्ञानता और लापरवाही से यह अपराध करने से बचें।
कापीराइट – एक कानूनी अधिकार
कापीराइट का अधिकार नैसर्गिक या दीवानी अधिकार नहीं है। यह कानून द्वारा प्रदत्त और नियंत्रित है जिस की उत्पत्ति प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार और पुस्तकों की अनियंत्रित प्रतिलिपियाँ बनाए जाने से जुड़ी है। इंग्लेंड के चार्ल्स द्वितीय इस स्थिति से चिंतित हुए और तब 1662 में ब्रिटिश संसद ने ‘लायसेंसिग ऑफ प्रेस एक्ट’ पारित किया। प्रिंटिंग प्रेस और मशीनों के विकास और प्रसार ने धीरे धीरे इस अधिकार की जरूरत को दुनिया भर में पहुँचा दिया और एक के बाद दूसरे देश में इस तरह के कानून बनने लगे। ये कानून कृतिकारों और व्यवसायियों को केवल अपने ही देश में संरक्षण प्रदान कर सके। किसी भी कृति की दूसरे देश में कितनी ही प्रतियाँ बनाई और वितरित की जा सकती थीं। इस पर रोक लगाने के लिए देशों के बीच सन्धियाँ होने लगीं जिन्हें कानून में स्थान दिया जाने लगा। आज लगभग सभी देश कापीराइट पर हुई सन्धियों में से किसी न किसी एक में पक्षकार हैं जिस से इस अधिकार को लगभघ पूरे विश्व में स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है। भारत में कापीराइट का आरंभ “भारतीय कापीराइट एक्ट-1914” से हुआ जो उस समय इंग्लेण्ड में प्रचलित अंग्रेजी कानून “कापीराइट एक्ट 1911(य़ू.के)” में मामूली हेर-फेर के साथ बनाया गया था। स्वतंत्रता के बाद भारत को “कापीराइट” पर एक सम्पूर्ण स्वतंत्र कानून की जरूरत महसूस होने लगी। प्रसारण और लिथो फोटोग्राफी जैसे नए, आधुनिक संचार माध्यमों और भारत सरकार द्वारा स्वीकृत अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के निर्वाह के लिए संसद ने “कापीराइट एक्ट, 1957” पारित किया जो समय समय पर बदलती हुई परिस्थितियों के कारण संशोधित किया जाता रहा।
कापीराइट – एक संपत्ति
जब भी व्यक्ति अपने मस्तिष्क में उत्पन्न विचार को किसी भी रूप में अभिव्यक्त करता है तो वह किसी न किसी कृति का सृजन करता है और स्वयं कृतिकार हो जाता है। इस सद्यजात कृति या उस के किसी महत्वपूर्ण अंश का किसी भी रूप में उपयोग करने का अधिकार ही कापीराइट है। भारत में कापीराइट का स्वामित्व मूलतः कृतिकार का होता है लेकिन कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के नियोजन में रहते हुए अथवा किसी कान्ट्रेक्ट के अंतर्गत नियोजन या कांट्रेक्ट की शर्तों के अंतर्गत काम करते हुए किसी कृति को जन्म दे तो उस कृति में प्रथम अधिकार उस के नियोजक या उस व्यक्ति का होता है जिस के लिए वह कांट्रेक्ट पर काम करता है। किसी भी कृति में कापीराइट का स्वामित्व उस कृति के कृतिकार की मृत्यु के अगले केलेंडर वर्ष के आरंभ से 60 वर्ष तक का रहता है। लेकिन फोटोग्राफ, सिनेमा फिल्म, साउंड रेकार्डिंग, कंप्यूटर प्रोग्रामों, वास्तु कलात्मक कृतियों, सरकारी कार्यों और अन्तराष्ट्रीय कार्यों में कृति के प्रकाशन से 60 वर्ष तक निहित रहता है। यह अवधि समाप्त हो जाने पर कृति पर कापीराइट का अधिकार समाप्त हो जाता है और कृति पब्लिक डोमेन में चली जाती है। तब उस कृति का कोई भी व्यक्ति उपयोग कर सकता है। कापीराइट का यह अधिकार कोई भी कृतिकार स्वेच्छा से त्यागना चाहता है तो कापीराइट रजिस्ट्रार को नोटिस दे कर त्याग सकता है। कापीराइट रजिस्ट्रार इस की अधिसूचना गजट में जारी कर देता है। कापीराइट एक स्वअर्जित संपत्ति की तरह है जिसे उस का स्वामी हस्तांतरित कर सकता है, उस के उपयोग के लिए लायसेंस दे सकता है, उस की वसीयत कर सकता है और यदि वसीयत नहीं करता है तो उस के जीवनकाल के बाद यह अधिकार कापीराइट के स्वामी पर प्रभावी पर्सनल लॉ के अनुसार उस के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हो जाता है।
कापीराइट – कब नहीं रहता
कापीराइट में किसी भी कृति को किसी भी तात्विक रुप में पुनः प्रस्तुत करना या इलेक्ट्रॉनिक विधि से किसी माध्यम में संग्रहीत करना शामिल है। इस के अतिरिक्त किसी कृति की प्रतियाँ जनता में वितरित करना, उस का सार्वजनिक प्रदर्शन या उसे जनता में संप्रेषित करना, उस के संबंध में सिनेमा फिल्म बनाना, उस का सार्वजनिक प्रदर्शन करना, साउंड रिकार्डिंग करना, अनुवाद करना, रूपान्तरण या अनुकूलन करना और किसी कृति के अनुवाद या रुपान्तरण (अनुकूलन) तथा किसी कंप्यूटर प्रोग्राम के सम्बन्ध में उक्त सभी काम करना शामिल है। एक अनुवाद को भी स्वतंत्र मौलिक कृति माना गया है यदि वह मूल कृति के स्वामी की स्वीकृति से किया गया हो। लेकिन किसी सिनेमा फिल्म के महत्वपूर्ण अंश में तथा किसी साहित्यिक, नाटकीय या संगीतीय कृति के संबंध में निर्मित साउंड रिकार्डिंग में किसी अन्य कृति के कापीराइट का उलंघन किया गया हो तो इस प्रकार निर्मित किसी भी कृति में कापीराइट स्थित नहीं रहता।
कापीराइट – पंजीकरण जरूरी नहीं
कापीराइट किसी भी कृति के तैयार हो जाने पर या प्रथम प्रकाशन के साथ ही उस में उत्पन्न हो जाता है। इस के रजिस्ट्रेशन की कोई आवश्यकता नहीं है लेकिन इस के सबूत के लिए कि किसी विशेष कृति पर किस व्यक्ति का कापीराइट है कापीराइट के रजिस्ट्रेशन के लिए रजिस्ट्रार की व्यवस्था की है इस का देश में एक मात्र कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
कापीराइट – लायसेंस
यदि कोई व्यक्ति कापीराइट के स्वामी की अनुमति के बिना या कापीराइट पंजीयक से लायसेंस प्राप्त किये बिना कृति का उपयोग करता है या लायसेंस की शर्तों का उल्लंघन करता है या वह उस कृति की उलंघनकारी प्रतियाँ बेचने के लिए बनाता है, या भाड़े पर लेता है, या व्यवसाय के लिये प्रदर्शित करता है या बेचने या भाड़े पर देने का प्रस्ताव करता है, या व्यवसाय के लिये या इस हद तक वितरित करता है जिस से कापीराइट का स्वामी प्रतिकूल रुप से प्रभावित हो, या व्यावसायिक रुप से सार्वजनिक रुप से प्रदर्शित करता है तो यह उस कृति में कापीराइट का उलंघन है।
कापीराइट – कैसे बना कानून?
कापीराइट का कानून कृतियों का उस के स्वामी के अलावा अन्य व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे अनियंत्रित उपयोग को सीमित करने के लिए अस्तित्व में आया था। किन्तु इस से शिक्षा, ज्ञान और कला के प्रसार को बाधा पहुँचने का खतरा भी कम नहीं था। इस कारण कृतियों के कुछ उपयोग ऐसे भी निर्धारित किए गए जिन्हें कापीराइट का उल्लंघन नहीं माना गया। कम्प्यूटर प्रोग्राम के अतिरिक्त अन्य साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय या कलात्मक कृति का व्यक्तिगत या रिसर्च में उपयोग, कृति की आलोचना एवं समीक्षा करने के लिए किया गया उचित-व्यवहार कापीराइट का उलंघन नहीं है। कम्प्यूटर प्रोग्राम की प्रति को कानूनी धारक द्वारा स्वीकृत उपयोग के लिए प्रतियाँ बनाना या उस का रूपान्तरण करना, उस के नष्ट होने और क्षति से सुरक्षा के लिए एक प्रति बनाना, किसी अन्य प्रोग्राम के साथ उसे चलाने के लिए नई सूचना प्राप्त करने के उद्देश्य से कोई काम करना तथा गैर-वाणिज्यिक व्यक्तिगत उपयोग के लिए प्रतियां बनाना या रूपान्तरण करना कापीराइट का उलंघन नहीं है। इसी तरह साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय या कलात्मक कृति का उपयोग सामयिक घटनाओं को रिपोर्ट करने, किसी समाचार-पत्र, पत्रिका या समान प्रकार के सावधिक पत्रों, या सिनेमा फिल्म या चित्रों में प्रसारण हेतु किया गया समुचित उपयोग भी कापीराइट का उलंघन नहीं है। लेकिन सार्वजनिक रूप से किए गए संबोधनों या भाषणों के संग्रह का प्रकाशन उचित व्यवहार नहीं है। किसी साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय या कलात्मक कृति की न्यायिक कार्यवाहियों, या न्यायिक कार्यवाहियों की रिपोर्ट के उद्देश्य से पुनरुत्पादन, विधायिका के सचिवालय द्वारा सदन के सदस्यों के उपयोग हेतु पुनरुत्पादन या प्रकाशन। किसी कृति के उचित सार का जनता के बीच पठन-पाठन। किसी अध्यापक या प्यूपिल के निर्देशों पर किसी परीक्षा में किसी प्रश्न में या प्रश्नों के उत्तर के रुप में या किसी शैक्षणिक संस्थान की गतिविधियों के क्रम में उस के विद्यार्थियों और स्टॉफ द्वारा प्रस्तुतिकरण, या एक सिनेमा फिल्म या साउंड रिकार्डिंग का प्रस्तुतिकरण आदि कृत्य कापीराइट का उलंघन नहीं हैं। इन के अलावा अनेक ऐसे कार्य कानून द्वारा निर्धारित किए गए हैं जो कापीराइट उलंघन हो सकते हैं या नहीं हो सकते हैं।
कापीराइट – उलंघन पर उपाय
कापीराइट के उल्लंघन से संबंधित मामलों में उसे रोकने के लिए निषेधाज्ञा प्राप्त करने, क्षतिपूर्ति प्राप्त करने, हिसाब किताब मांगने आदि अनेक उद्देश्यों के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत किए जा सकते हैं। इसी तरह कापीराइट के अनेक प्रकार के उलंघनों को अपराध बनाया गया है। आरोप सिद्ध हो जाने पर अभियुक्त को जुर्माने से लेकर तीन वर्ष तक के कारावास के दंड दंडित किया जा सकता है।
कापीराइट – रॉयल्टी की नई व्यवस्था
कापीराइट कानून से जहाँ कृतिकारों को उन के द्वारा कृति के निर्माण पर जो श्रम किया जाता है उस का उचित मूल्य और रायल्टी मिलने लगी है उस से कृतिकारों को राहत प्राप्त हुई है। लेकिन इस में अनेक कमियाँ भी हैं। अधिकांश कलाकारों से निश्चित शुल्क पर काम करवा कर कृतियों का निर्माण करवा कर व्यवसायी कृति में उत्पन्न स्वामित्व का लाभ जीवन भर उठाते हैं। इस स्थिति को बदलने के लिए 2012 में कानून को संशोधित किया गया। अब इस तरह के कुछ विशिष्ट प्रकार के कार्यों के लिए कलाकारों को जीवन भर उन के योगदान से बनी कृतियों पर रायल्टी की व्यवस्था की गई है। लेकिन इस कानून से ज्ञान, कला और शिक्षा के विस्तार में बाधा उत्पन्न हुई है। इस मामले में विद्वान अनेक प्रकार के मत रखते हैं। कुछ इस के समर्थक हैं तो सामाजिक आंदोलनों के अधिकांश नेता इस का विरोध भी करते हैं। महात्मा गांधी का विचार था कि सर्वोत्तम तो यह है कि स्वयं कृतिकार ही अपने जीवन काल में उचित परिस्थितियों में कृति पर से अपना कापीराइट सार्वजनिक हित में त्याग दे और उसे आम जनता के लिए सुलभ बना दे।
क्या किसी समाचार पर भी किसी का कॉपीराइट होता है?
मलखान सिंह जी,
13. कृतियाँ जिन में कॉपीराइट अवस्थित रहता है –
(1) इस धारा तथा इस कानून के प्रावधानों की परिधि में सम्पूर्ण भारत में कृतियों की जिन श्रेणियों पर कॉपीराइट अवस्थित रहेगा, वे निम्न प्रकार हैं –(क) मूल साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय और कलात्मक कृतियाँ;(ख) सिनेमा फिल्में; और(ग) ध्वन्यांकन।
(2) जिन कृतियों पर धारा 40 तथा 41 के प्रावधान लागू होते हैं उन के अलावा उक्त उप धारा (1) में वर्णित कृतियों में कॉपीराइट अवस्थित नहीं होगा जब तक कि वह कृति –< span lang="EN-GB" style="color: navy;">(i) प्रकाशित कृति है तो सर्वप्रथम भारत में प्रकाशित हुई है, और कृति यदि भारत के बाहर प्रकाशित हुई है तो के मामले में प्रकाशन की तिथि पर उस का कृतिकार, या प्रकाशन की तिथि पर कृतिकार जीवित न रहा हो तो उस की मृत्यु की तिथि पर वह भारत का नागरिक हो;(ii) वास्तुकलात्मक कृति के अलावा एक अप्रकाशित कृति के मामले में कृतिकार कृति के संपन्न होने की तिथि को भारत का नागरिक हो या वह भारत में निवास करता हो; और(iii) वास्तुकलात्मक कृति के मामले में कृति भारत में स्थित हो।स्पष्टीकरण – यदि कृति एक संयुक्त कृतित्व है तो इस उपधारा में वर्णित कॉपीराइट के लिए आवश्यक शर्तें सभी कृतिकारों को संतुष्ट करनी होंगी।
(3) कॉपीराइट अवस्थित नहीं होगा –(क) किसी भी सिनेमा फिल्म में, यदि फिल्म का महत्वपूर्ण अंश किसी अन्य कृति का उल्लघंन है;(ख) किसी साहित्यिक, नाटकीय या संगीतीय कृति के संबंध में निर्मित ध्वन्यांकन में, यदि ध्वन्यांकन के निर्माण में कॉपीराइट का उल्लंघन किया गया है;(4) किसी भी सिनेमा फिल्म या ध्वन्यांकन में कॉपीराइट उस कृति के कॉपीराइट पर बेअसर रहेगा जिस के सम्बन्ध में या जिस के महत्वपूर्ण अंश के सम्बन्ध में वह सिनेमा फिल्म या ध्वन्यांकन जिस का भी निर्माण किया गया है।
कॉपीराइट कैसे मिलता है, इस का पंजीयन कैसे और कहाँ कराया जा सकता है?
कॉपीराइट कानून के प्रभाव से किसी भी कृति पर उस के कृतिकार का कॉपीराइट जैसे ही उस कृति की रचना संपन्न होती है, स्वतः ही उत्पन्न हो जाता है। बस कृतिकार के पास उस का प्रमाण होना चाहिए। पुस्तक, चित्र, छायाचित्र, किसी भी लिखित सामग्री आदि के सम्बंध में उस का प्रथम प्रकाशन उस के कॉपीराइट का अच्छा प्रमाण है। इस तरह सामान्य रूप से कॉपीराइट का पंजीयन कराना आवश्यक नहीं है। कॉपीराइट का पंजीयन कराने से केवल यह सुविधा मिलती है कि कॉपीराइट का पंजीयन किसी कृति पर कृतिकार का कॉपीराइट होने प्रथम दृष्टया प्रमाण माना जाता है। लेकिन कानून के समक्ष कॉपीराइट अधिकार को चुनौती प्राप्त होने पर पंजीयन होने पर भी यह साबित करना पड़ेगा कि पंजीयन के पूर्व कृतिकार को किसी कृति विशेष पर कॉपीराइट प्राप्त था।
क्या मामूली रूप परिवर्तन के साथ पुस्तक का पुनः प्रकाशन कॉपीराइट का उल्लंघन है?

कॉपीराइट के बारे में अधिक जानकारी यहाँ चटका लगा कर प्राप्त की जा सकती है।
23 अप्रेल-पुस्तकों लेखकों और कृतिकारों को याद करने का दिन
विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस
आज 23 अप्रेल पुस्तकों और लेखकों का दिन है। इस दिन को “विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस” के रुप में मनाते हुए यूनेस्को सम्पूर्ण विश्व में पठन-पाठन व प्रकाशन को प्रोत्साहित करने और कॉपीराइट व बौद्धिक संपदा अधिकारों को प्रचारित करने का प्रयत्न करता है।
1616 में इसी दिन सरवाण्टेस, शेक्सपियर, तथा इंका गार्सिलेसो डी ला वेगा इस दुनियाँ से विदा ले गए। यह मौरिस ड्रुओं, के. लेक्स्नेस, व्लादिमिर नबोकोव, जोसप प्लॉ, मैन्यूल मेजिया वालेजो और अन्य अनेक प्रमुख लेखकों का जन्म या स्मृति दिवस भी है। इन्हीं कारणों से यह यूनेस्को की सामान्य सभा के लिए पुस्तकों व लेखकों और मानव सभ्यता व संस्कृति के विकास में उनके अनूठे योगदान को स्मरण करने और सभी को, विशेष रुप से युवाओं को पठन और उसके आनन्द को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करने के लिए एक नैसर्गिक दिन के रुप में सामने आया।
इस दिवस को मनाने का विचार केटालोनिया से प्राप्त हुआ जहाँ 23, अप्रेल को सेण्ट जॉर्ज दिवस मनाया जाता है और परम्परागत रुप से इस दिन पुस्तक खरीदने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक पुस्तक के साथ एक गुलाब भेंट किया जाता है।
विश्व पुस्तक एवं कॉपीराइट दिवस की सफलता विभिन्न देशों में यूनेस्को और इससे सम्बन्धित संस्थाओं द्वारा कितने लेखकों, प्रकाशकों, अध्यापकों. पुस्तकालयाध्यक्षों, सार्वजनिक और निजी संस्थाओं मानववादी अशासकीय संस्थाओं और लोगों को पुस्तकों और लेखकों के इस त्यौहार के आनन्द में सम्मिलित कर पाती है।
हम लोग आज के दिन को मनचाही पुस्तक खरीद कर, किसी प्रिय व्यक्ति को पुस्तक भेंट कर, पुस्तकालयों को व्यवस्थित कर के, संग्रहीत पुस्तकों की दशा को सुधार कर, सामुदायिक पुस्तकालय चला कर, अपने आसपास के किसी लेखक को सम्मानित कर, कॉपीराइट और बौद्धिक संपदा अधिकार के सम्बन्ध में गोष्ठी या सेमीनार आयोजित कर या अन्य कोई भी ऐसी गतिविधि सम्पन्न कर के मना सकते हैं। जिस से ज्ञान और विचार तथा उन्हें प्रकट करने की कलाओं को सम्मान और विस्तार प्राप्त हो सके।
क्या-क्या करने से कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं होगा
इस अंक में हमने यह जानना प्रारंभ किया था कि वे कौन से कृत्य हैं, जो कॉपीराइट का उल्लंघन नहीं हैं। इन कृत्यों को कॉपीराइट एक्ट की धारा 52 में समाहित किया गया है। यह धारा बहुत विस्तृत है। इस कारण पहले इसे अनेक भागों में प्रस्तुत करने का विचार था और इस अंक में एक भाग प्रस्तुत भी कर दिया गया था। किन्तु इस का अनुवाद करते समय यह महसूस हुआ कि इस पूरी धारा को एक साथ ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए। इस कारण से इस अंक की सामग्री को विलोपित कर दिया गया है और इस धारा की समस्त सामग्री अगले अंक में प्रस्तुत की जा रही है- -दिनेशराय द्विवेदी
कॉपीराइट का उल्लंघन कब होता है?
कॉपीराइट किन किन कृतियों में उत्पन्न होता है तथा अवस्थित रहता है?
विगत अंक में हमने जाना था कि कॉपीराइट क्या है। इस अंक में हम जानेंगे कि कौन कौन सी कृतियाँ हैं, जिन में कापीराइट उत्पन्न होता है तथा अवस्थित रहता है। जिन्हें भारतीय कॉपीराइट एक्ट की धारा-13 में समाहित किया गया है।
(1) इस धारा तथा इस कानून के प्रावधानों की परिधि में सम्पूर्ण भारत में कृतियों की जिन श्रेणियों पर कॉपीराइट अवस्थित रहेगा, वे निम्न प्रकार हैं –
(क) मूल साहित्यिक, नाटकीय, संगीतीय और कलात्मक कृतियाँ;
(ख) सिनेमा फिल्में; और
(ग) ध्वन्यांकन।
(2) जिन कृतियों पर धारा 40 तथा 41 के प्रावधान लागू होते हैं उन के अलावा उक्त उप धारा (1) में वर्णित कृतियों में कॉपीराइट अवस्थित नहीं होगा जब तक कि वह कृति –
(i) प्रकाशित कृति है तो सर्वप्रथम भारत में प्रकाशित हुई है, और कृति यदि भारत के बाहर प्रकाशित हुई है तो के मामले में प्रकाशन की तिथि पर उस का कृतिकार, या प्रकाशन की तिथि पर कृतिकार जीवित न रहा हो तो उस की मृत्यु की तिथि पर वह भारत का नागरिक हो;
(ii) वास्तुकलात्मक कृति के अलावा एक अप्रकाशित कृति के मामले में कृतिकार कृति के संपन्न होने की तिथि को भारत का नागरिक हो या वह भारत में निवास करता हो; और
(iii) वास्तुकलात्मक कृति के मामले में कृति भारत में स्थित हो।
स्पष्टीकरण – यदि कृति एक संयुक्त कृतित्व है तो इस उपधारा में वर्णित कॉपीराइट के लिए आवश्यक शर्तें सभी कृतिकारों को संतुष्ट करनी होंगी।
(3) कॉपीराइट अवस्थित नहीं होगा –
(क) किसी भी सिनेमा फिल्म में, यदि फिल्म का महत्वपूर्ण अंश किसी अन्य कृति का उल्लघंन है;
(ख) किसी साहित्यिक, नाटकीय या संगीतीय कृति के संबंध में निर्मित ध्वन्यांकन में, यदि ध्वन्यांकन के निर्माण में कॉपीराइट का उल्लंघन किया गया है;
(4) किसी भी सिनेमा फिल्म या ध्वन्यांकन में कॉपीराइ
समझें, भारतीय कॉपीराइट कानून में 'कॉपीराइट' क्या है?
- पिछले अंक में हमने कॉपीराइट का उल्लेख करते हुए देखा था कि कॉपीराइट का उल्लंघन करना बहुत हानिकारक हो सकता है, यहाँ तक कि भारी जुर्माना और सजा का भी सामना करना पड़ सकता है। जिस से एक कृतिकार का जीवन बहुत ही विपरीत रूप से प्रभावित हो सकता है।
- 25 फरवरी, 2008 के अंक में मैं ने एक संक्षिप्त प्रयत्न किया था कि कॉपीराइट क्या है? इसे समझा जाए। लेकिन बाद में वह प्रयत्न अपर्याप्त प्रतीत हुआ। अनेक पाठकों ने उस अंक को संग्रहीत करने की सूचना भी मुझे दी। इस पर मैंने इसे और गंभीरता के साथ प्रस्तुत करने का निर्णय लिया। इस कारण से पिछले अंक का अंतिम भाग को हटा कर दुबारा प्रस्तुत करना उचित समझा। जिन पाठकों ने पिछला अंक संग्रहीत किया है उसे हटा कर पिछले अंक को दुबारा संग्रहीत कर लें।
- कॉपीराइट कानून को हिन्दी में प्रस्तुत करने का मेरा यत्न है लेकिन फिर भी इस का अंग्रेजी संस्करण ही कानून द्वारा मान्य है। इस कारण से मैं ने “इंण्डियन कॉपीराइट एक्ट” का मूल अंग्रेजी पाठ “तीसरा खंबा पुस्तकालय” में संग्रह कर प्रकाशित कर दिया है जिसे आप यहाँ क्लिक कर के पढ. सकते हैं और प्रतिलिपि बना कर अपने कंप्यूटर पर संग्रह भी कर सकते हैं। मेरा निवेदन तो यह है कि प्रत्येक कृतिकार को यह कार्य तुरंत कर लेना चाहिए।
कॉपीराइट का अर्थ-
कॉपीराइट का अर्थ किसी कृति अथवा उस के किसी महत्वपूर्ण अंश के सम्बन्ध में भारतीय कॉपीराइट कानून के प्रावधानों की परिधि में, इस कानून के अधिकार से किसी कार्य को करने, या उसे करने के लिए अधिकृत करने का एक-मात्र अधिकार है। यही कारण है कि भारत में कॉपीराइट को समझने के लिए इस कानून को समझना आवश्यक हो जाता है।
भारतीय कॉपीराइट कानून की धारा-14 के अनुसार किसी भी कृति के सम्बन्ध में कॉपीराइट का अर्थ निम्न प्रकार हैं-
(क) कंप्यूटर प्रोग्राम के रुप के अतिरिक्त साहित्यिक (Literary), नाटकीय (Dramatic) या संगीतीय (Musical)कृतियों के सम्बन्ध में इन में से किसी भी–
i- कृति को किसी भी तात्विक रुप में पुनः प्रस्तुत करना जिस में कृति को इलेक्ट्रॉनिक विधि से किसी माध्यम में संग्रहीत करना सम्मिलित है,
ii- कृति की प्रतियाँ जनता में वितरित करना जिन में पहले से वितरित प्रतियाँ सम्मिलित नहीं हैं;
iii- कृति का सार्वजनिक प्रदर्शन या उसे जनता में संप्रेषित करना;
iv- किसी कृति के संबन्ध में सिनेमा फिल्म बनाना या उस का ध्वन्यांकन करना;
v-किसी कृति का अनुवाद करना;
vi- कृति का रुपान्तरण (अनुकूलन) करना;
vii- कृति के अनुवाद या रुपान्तरण (अनुकूलन) के सम्बन्ध में उक्त बिन्दु संख्या i से vi तक में वर्णित कोई भी कार्य करना सम्मिलित है।
(ख) किसी कम्प्यूटर प्रोग्राम के सम्बन्ध में कोई भी वह काम करना (i) जो ऊपर बिन्दु (ख) में वर्णित है;
(ii) कम्प्यूटर प्रोग्राम की प्रतिलिपि को बेचना या व्यावसायिक रुप से किराए पर देना या बेचने या व्यावसायिक रुप से किराए पर देने के लिए प्रस्ताव करना,किन्तु व्यावसायिक रुप से किराए पर देना उन कम्प्यूटर प्रोग्रामों पर लागू नहीं होगा जहाँ प्रोग्राम को किराए पर देना आवश्यक उद्देश्य नहीं है।
(ग) कलात्मक कृतियों के सम्बन्ध में कापीराइट का अर्थ इन में से किसी भी कृति को –
i- कृति को किसी भी तात्विक रुप में पुनः प्रस्तुत करना जिस में द्विआयामी कृतियों का त्रिआयामी तथा त्रिआयामी कृतियों का द्विआयामी रुप में चित्रांकन सम्मिलित है;
ii- कृति को जन-संचारित करना;
iii- कृति की प्रतियाँ जनता में वितरित करना जिन में पहले से वितरित प्रतियाँ सम्मिलित नहीं हैं;
iv-कृति को किसी फिल्म में शामिल करना;
v- कृति का रुपान्तरण (अनुकूलन) करना;
vi- कृति के रुपान्तरण (अनुकूलन) के सम्बन्ध में उक्त बिन्दु संख्या i से iv तक में वर्णित कोई भी कार्य करना सम्मिलित है।
(घ) किसी सिनेमेटोग्राफ फिल्म के सम्बन्ध में–
i- उस फिल्म की प्रतिलिपि बनाना जिस में किसी भी ऐसी आकृति का छायाचित्र भी सम्मिलित है जो फिल्म का भाग है;
ii-फिल्म की किसी प्रतिलिपि को बेचना या किराए पर देना, या बेचने या किराए पर देने का प्रस्ताव करना, चाहे वह प्रतिलिपि पूर्व में किसी अवसर पर बेची या किराए पर दी गई हो;
iii- फिल्म को सार्वजनिक रुप से प्रदर्शित करना।
(ङ) ध्वन्यांकन (sound recording) के सम्बन्ध में,
(i) इस का उपयोग करते हुए अन्य ध्वन्याकंन करना;
(ii) ध्वन्यांकन को बेचना या किराए पर देना, या बेचने या किराए पर देने का प्रस्ताव करना, चाहे ध्वन्याकंन की वह प्रतिलिपि पूर्व में किसी अवसर पर बेची या किराए पर दी गई हो;
(iii) ध्वन्यांकन का सार्वजनिक प्रदर्शन करना;
स्पष्टीकरण- उक्त सभी मामलों में किसी प्रतिलिपि के एक बार बिक जाने पर उस प्रतिलिपि को प्रचलन में माना जाएगा।
विशेष- पाठकों को इसे समझने का प्रयत्न करने पर जो भी शंकाएं हों उन्हें मुझे टिप्पणी रुप में प्रेषित करेंगे तो कॉपीराइट कानून के प्रस्तुत किए गए भाग की व्याख्या प्रस्तुत करने में मुझे सहायता प्राप्त होगी। अग्रिम धन्यवाद।