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श्रम न्यायालय के निर्णय को लागू कराने के लिए निष्पादन आवेदन प्रस्तुत करें।
रामचन्द्र कनौजिया पुत्र श्री रामाधार कनौजिया ने गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरा (स्वयं) बनाम मै.राठी इस्पात लि., इस्पात नगर, साऊथ ऑफ जी0टी0 रोड़, गाजियाबाद का सेवा संबंधी विवाद लम्बित था, जिसका निर्णय दिनांक 14.07.2011 को मेरे पक्ष में हो चुका है। निर्णय में श्रमायुक्त उ.प्र.गाजियाबादद्वारा राशि रुपए 10,19,493/- का भुगतान किये जाने के आदेश दिये जा चुके हैं।परन्तु करीब 3 वर्ष से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी दूसरे पक्ष द्वारामुझे कोई भी तसल्लीबक्श उत्तर नहीं मिला और ना ही कोई धनराशि अभी तक मुझेप्राप्त हुई है। मुझे आगे क्या कार्यवाहीकरनी चाहिए कि मुझे मेरी राशि प्राप्त हो सके?
समाधान-
हम ने कल ही लिखा था कि समस्या भेजते समय पूरा विवरण दिया जाना चाहिए। जिस से सटीक समाधान प्रस्तुत किया जा सके। आप की यह समस्या भी अधूरे विवरण वाली है। सेवा संबंधी मामले का निर्णय श्रम न्यायालय करता है न कि श्रम आयुक्त। अब श्रम आयुक्त ने कैसा निर्णय दिया है और निर्णय क्या है यह स्थिति आप के प्रश्न से स्पष्ट नहीं है। इस मामले में गाजियाबाद में किसी श्रम न्यायालय में काम करने वाले वकील से संपर्क कर के उसे आदेश की प्रति बता कर आप सलाह लेंगे तो उत्तम होगा।
फिर भी यदि आप का निर्णय श्रम न्यायालय का है तो आप औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा धारा 11(9) सपठित आदेश 21 व्यवहार प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत निष्पादन (इजराय) हेतु आवेदन श्रम न्यायालय को प्रस्तुत कर सकते हैं। श्रम न्यायालय इस आवेदन को किसी दीवानी न्यायालय को संप्रेषित कर देगा जो आप की धनराशि की वसूली कर आप को दिलवा सकता है।
हस्ताक्षर करने में असमर्थ व्यक्ति वसीयत कैसे निष्पादित करे?
समस्या-
नीमच, मध्यप्रदेश से सुरेन्द्र ने पूछा है –
कोई व्यक्ति बीमारी के कारण अपने हस्ताक्षर कर सकने में असमर्थ हो तो वह वसीयत कैसे निष्पादित कराए कि वसीयत मान्य रहे?
समाधान-
सब से पहले तो किसी चिकित्सक से यह प्रमाण पत्र प्राप्त किया जाए कि जिस समय वसीयत निष्पादित की जा रही है उस समय निष्पादनकर्ता हस्ताक्षर करने में असमर्थ है। इस प्रमाण पत्र को वसीयत के साथ नत्थी किया जा सकता है।
ऐसी परिस्थिति में वसीयत के निष्पादनकर्ता का अंगूठा निशानी दो साक्षियों की उपस्थिति में वसीयत पर अंकित कराई जा सकती है। उस समय वसीयतकर्ता साक्षियों को बताए कि वह हस्ताक्षर करने में असमर्थ है इस कारण से अंगूठा निशानी कर रहा है। उस ने वसीयत को पढ़ लिया है अथवा उसे वसीयत पढ़ कर सुना दी गई है और वह समझ चुका है कि उस में क्या लिखा है। उसी समय वसीयत के निष्पादनकर्ता के हस्ताक्षर हो जाने के उपरान्त वसीयत पर यह नोट डाल कर कि वसीयत निष्पादनकर्ता हस्ताक्षर करने में असमर्थ है, उस ने वसीयत को पढ़/सुन समझ लिया है और हमारे सामने निष्पादन हेतु हस्ताक्षर किए हैं। इस नोट के नीचे साक्षीगण के हस्ताक्षर करवा लिए जाएँ।
इस से भी बेहतर उपाय यह है कि ऐसी वसीयत उपपंजीयक के कार्यालय में उपस्थित हो कर और यदि वसीयतकर्ता वहाँ उपस्थित होने में भी असमर्थ हो तो उपपंजीयक को घर पर बुला कर उस के समक्ष वसीयत निष्पादित कराई जाए जिसे उपपंजीयक अपने रिकार्ड में पंजीकृत कर ले।
उत्तराधिकारी अन्य हिस्सेदार के पक्ष में अपने हिस्से के त्याग के लिए हक-त्याग विलेख निष्पादित करे।
समस्या-
चौमहला, राजस्थान से दिनेश जैन ने पूछा है-
मेरी माताजी का निधन 15 अगस्त 2012 को अचानक हो गया उनकी कोई वसीयत नहीं है। हम 2 भाई हैं व 3 बहनें हैं तथा पिताजी भी हैं| माताजी की 2 दुकानें हैं | हम दोनों भाई साथ रहते हैं। हम दोनों चाहते हैं कि माताजी की सम्पति हमारे नाम हो जाए। इस में बहनों, पिताजी या किसी अन्य को कोई एतराज नहीं है| ये सम्पति हमारे नाम कैसे हो सकती है?
समाधान-
दोनों दुकानें माता जी की संपत्ति थीं। माता जी ने उक्त दुकानों के सम्बन्ध में कोई वसीयत नहीं की थी। इस तरह माता जी के देहान्त के साथ ही उक्त संपत्ति हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 (1) (क) के अनुसार उन के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों अर्थात आप दोनों भाइयों, तीनों बहिनों व पिताजी की संयुक्त संपत्ति हो चुकी है तथा आप में से प्रत्येक 1/6 हिस्से का अधिकारी है।
अब जिस संपत्ति में जो व्यक्ति अपना हिस्सा छोड़ना चाहे तथा जिस के हक में छोड़ना चाहे एक हक-त्याग विलेख (Release Deed) उपपंजीयक के यहाँ पंजीकृत करवा कर छोड़ सकता है।
यदि दोनों दुकानें दोनों भाइयों के नाम करवानी हैं और किसी को कोई आपत्ति नहीं है तो आप की तीनों बहिनों व पिता जी को आप दोनों भाइयों के नाम से हक-त्याग विलेख (Release Deed) निष्पादित करवानी होगी। इस से दोनों दुकानों पर दोनों भाइयों का सम्मिलित स्वामित्व स्थापित हो जाएगा।
लेकिन यदि आप चाहते हैं कि एक दुकान आप के व दूसरी आप के भाई के नाम हो जाए तो जिस दुकान को आप रखना चाहते हैं उस में आप की तीनों बहिनें, पिताजी और आप के भाई को हक-त्याग विलेख (Release Deed) निष्पादित कर आप के हक में अपना अपना हिस्सा का हक-त्याग करना होगा। इस से आप को उस दुकान पर एकल स्वामित्व का हक प्राप्त हो जाएगा। इसी तरह जिस दुकान को आप का भाई रखना चाहता है उस दुकान में तीनों बहिनें, पिताजी और आप को अपना-अपना हिस्सा भाई के हक में त्याग करने के लिए हक-त्याग विलेख (Release Deed) निष्पादित कराने से आप के भाई का एकल स्वामित्व उस दुकान पर प्राप्त हो जाएगा।
विक्रय-पत्र के पंजीयन हेतु मृत विक्रेता के उत्तराधिकारियों पर संविदा के विशिष्ट अनुपालन का वाद किया जा सकता है
समस्या-
मेरठ, उत्तर प्रदेश से युवराज ने पूछा है-
हम एक घर में पिछले 30 साल से रह रहे हैं और जिसका मुख़्तार नामा और विक्रय पत्र हमारे पिता जी के नाम है। विक्रेता ने संपत्ति को विक्रय कर दिया था और पिताजी ने उस संपत्ति का संपूर्ण विक्रय मूल्य अदा कर के संपत्ति पर कब्जा प्राप्त कर लिया था। एग्रीमेंट में सम्पूर्ण संपत्ति का अधिकार हर प्रकार से पिता जी को दिए जाने की बात अंकित है लेकिन पिता जी ने उसकी रजिस्ट्री नहीं कराई थी। तीन महीने पहले पिता जी की मृत्यु हो गई है, मूल विक्रेता की भी मृत्यु हो चुकी है। ऐसी स्थिति में हम किस प्रकार रजिस्ट्री अपने नाम कर सकते हैं या इस के लिए मुझे क्या करना होगा?
समाधान-
कोई भी अपंजीकृत विक्रय पत्र जिस में विक्रय की गई अचल संपत्ति का मूल्य 100 रुपए से अधिक का है मान्य नहीं है। इस कारण विक्रयपत्र का पंजीकृत होना आवश्यक है। आप ने जिसे विक्रय पत्र कहा है वह विक्रय का इकरारनामा है जिस में विक्रय का संपूर्ण मूल्य प्राप्त कर के विक्रेता ने संपत्ति का कब्जा क्रेता को दे दिया है। क्यों कि संपत्ति का मूल्य दिया जा चुका है और कब्जा भी हस्तांतरित हो चुका है वैसी अवस्था में यदि कोई उस संपत्ति पर से आप का कब्जा हटाने का प्रयत्न करता है या कब्जे के लिए दावा करता है तो आप के पास संपत्ति हस्तान्तरण अधिनियम की धारा 53-ए के अंतर्गत यह प्रतिरक्षा ले सकते हैं कि आप विक्रय मूल्य अदा कर चुके हैं। आप के विरुद्ध उक्त संम्पत्ति का कब्जे का कोई भी दावा निरस्त हो जाएगा। लेकिन बिना विक्रय पत्र के पंजीकरण के आप उक्त संपत्ति के स्वामी नहीं कहलाएंगे और किसी भी सरकारी रिकार्ड में संपत्ति पर आप का स्वामित्व स्थापित नहीं माना जाएगा।
आप ने यह नहीं बताया कि उक्त विक्रय संविदा के अंतर्गत विक्रय पत्र का पंजीकरण कराने के लिए क्या शर्त अंकित की गई थी। यदि उस में यह अंकित था कि जब भी क्रेता तैयार होगा तभी विक्रेता विक्रय पत्र का पंजीयन करवा देगा तो आप के पास अब भी उपाय मौजूद है। जो विक्रेता की जिम्मेदारी थी वही उस के उत्तराधिकारियों की जिम्मेदारी है और जो क्रेता का अधिकार है वही क्रेता के उत्तराधिकारियों का अधिकार है। इस कारण आप अपने पिता के सभी उत्तराधिकारियों की ओर से किसी वकील के माध्यम से एक विधिक नोटिस विक्रेता के उत्तराधिकारियों को भिजवाएँ कि वे उक्त संपत्ति का विक्रय पत्र आप के पिता के उत्तराधिकारियों के पक्ष में निष्पादित कर के उस का पंजीयन कराएँ। नोटिस में इस के लिए एक माह तक का समय दिया जा सकता है। यदि इस नोटिस के उपरान्त भी विक्रेता के उत्तराधिकारी विक्रय पत्र निष्पादित कर उस का पंजीयन नहीं कराते हैं तो आप विक्रेता के उत्तराधिकारियों के विरुद्ध दीवानी न्यायालय में विक्य पत्र का निष्पादन कर उस का पंजीयन कराने के लिए संविदा के विशिष्ट पालन के लिए दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं।
एग्रीमेंट या किसी अन्य दस्तावेज के लिए कितने रुपए का स्टाम्प पेपर उपयोग में लेना चाहिए?
समस्या-
नोएडा, उत्तर प्रदेश से एस.सी. शुक्ला ने पूछा है –
किसी भी एग्रीमेंट (इकरारनामे) के दस्तावेज का निष्पादन करने के लिए कितने रुपए का स्टाम्प पेपर उपयोग करना चाहिए। यह कैसे निर्धारित होता है कि 10, 50 या 100 रुपए का होना चाहिए?
समाधान-
स्टाम्प ड्यूटी एक तरह का टैक्स है जो सरकार वसूल करती है। इस टैक्स की अदायगी के बिना वह दस्तावेज कानून के समक्ष अधूरा और अनुपयोगी होता है। यह टैक्स स्टाम्प के रूप में सरकार वसूल करती है। सारे टैक्स सरकारें निर्धारित करती हैं। इस तरह सभी तरह के दस्तावेजों के निष्पादन के लिए प्रत्येक राज्य सरकार ही स्टाम्प ड्यूटी निर्धारित करती है।
इस कारण से जिस राज्य में दस्तावेज का निष्पादन करना हो उसी राज्य में राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्टाम्प ड्यूटी के अनुसार उसी मुल्य का स्टाम्प खरीद का उपयोग में लेना चाहिए।
आप उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। यदि उत्तर प्रदेश में कोई सामान्य एग्रीमेंट (इकरारनामा) निष्पादित करना हो उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा निर्धारित स्टाम्प ड्यूटी के अनुरूप स्टाम्प खरीदना होगा। उत्तर प्रदेश में सामान्य एग्रीमेंट (इकरारनामा) निष्पादित करने के लिए 100 रुपये का स्टाम्प जरूरी है। अन्य दस्तावेजों के निष्पादन के लिए कितने रुपए के स्टाम्प की आवश्यकता होगी यह नीचे की अनुसूची में दिया गया है। यदि किसी को अन्य राज्य के लिए स्टाम्प ड्यूटी जाननी हो तो यहाँ चटका लगा कर इस वेबसाइट पर तलाश किया जा सकता है।
STAMP DUTY IN UTTAR PRADESH |
|
Description of Instruments | Proper Stamp Duty |
Acknowledgement | Fifty paise. Subject to a max. of two hundred rupees, the same duty as on a Bond. One hundred rupees. |
Administration Bond | |
Adoption Deed | Five rupees. |
Affidavit | |
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Two rupees. |
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Five rupees. |
Agreement or Memorandum of an Agreement | |
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Sixty paise. |
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Subject to a max. of forty-five rupees; thirty paise (or every Rs. 10,000 or part thereof the value of the security or share. |
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One hundred rupees. |
Appointment in execution of a power | |
where the amount does not exceed Rs. 1,000 . | One hundred rupees. |
Appraisement or Valuation | |
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The same duty as a Bond. |
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Thirty-seven rupees, fifty paise. |
Apprenticeship Deed | Twelve rupees. |
Articles of Association of a Company | Three hundred rupees. |
Articles of Clerkship | Four hundred rupees. |
Award | |
|
The same duty as a Bond for such amount. |
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One rupee, fifty paise. |
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Thirty-seven rupees, fifty paise. |
Bond | |
where the amount or value secured does not exceed Rs. 10. | Two rupees. |
where it exceeds Rs. 10 but does not exceed Rs. 50. | Four rupees. |
where it exceeds Rs. 50 but does not exceed Rs. 100. | Six rupees, twenty- five paise. |
where it exceeds Rs. 100 but does not exceed Rs. 200. | Twelve rupees and fifty paise. |
where it exceeds Rs. 200 but does not exceed Rs. 300. | Eighteen rupees, seventy five paise. |
where it exceeds Rs. 300 but does not exceed Rs. 400. | Twenty-five rupees. |
where it exceeds Rs. 400 but does not exceed Rs. 500. | Thirty-one rupees. fifty paise. |
where it exceeds Rs. 500 but does not exceed Rs. 600. | Thirty-seven rupees, fifty paise. |
where it exceeds Rs. 600 but does not exceed Rs. 700. | Fourty-three rupees, seventy-five paise. |
where it exceeds Rs. 700 but does not exceed Rs. 8OO. | Fifty rupees. |
where it exceeds Rs. 800 but does not exceed Rs. 900. | Fifty-six rupees, twenty-five paise. |
where it exceeds Rs. 900 but does not exceed Rs. 1000. | Sixty-five rupees. |
and for every Rs. 500 or part thereof in excess of Rs. 1,000. | Thirty-one rupees. twenty-five paise. |
Bottomry Bond | The same duty as a Bond. |
Cancellation— Instrument of, | Twenty-five rupees. |
Certificate of Emolument | Two hundred and fifty rupees. |
Certificate of Practice, as Notary | Five hundred rupees. |
Charter Party | Six rupees. |
Composition Deed | Fifty rupees. |
Counterpart or Duplicate– | |
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The same duty as is payable on the original. |
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Fifty rupees. |
Customs Bond | Subject to a maximum of one hundred and fifty rupees, the same duty as on a Bond. |
Delivery order in respect of goods | Fifty paise. |
Divorce | Twenty-five rupees. |
Indemnity Bond | The same duty as a Security Bond for the same amount. |
Instrument | |
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One-half of the duty payable on the original. |
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Six rupees. |
Letter of Allotment of Shares | Fifty rupees. |
Letter of Licence | Thirty rupees. |
Memorandum of Association of a company– | |
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Two hundred rupees. |
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Five hundred rupees. |
Notarial Act | Three rupees, fifty paise. |
Note or Memorandum | |
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One rupee. |
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Subject to maximum ofseventy-five rupees; one rupee foreveryRs. 10,000 of part thereof of the value of the stock or security. |
Note of Protest by the Master of a Ship. | Three rupees. |
Partnership — | |
A– Instrument of — | |
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The same duty as a Bond. |
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Thirty-seven rupees, fifty paise. |
Power of Attorney | |
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Three rupees. |
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Ten rupees. |
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Fifty rupees. |
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One hundred rupees. |
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Duty as a convey ance. |
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Ten rupees. |
Protest of bill or note | Five rupees. |
Protest by the Master of a ship | Five rupees. |
Release | |
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The same duty as a Bond for suchamount or value as set forth in the Release. |
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The same duty as a Bond |
Respondentia Bond | The same duty as a Bond for the amount of the loan secured. |
Security Bond or Mortgage Deed | |
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The same duty as a Bond for the amount secured. |
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The same duty as a Bond. |
Share Warrants to bearer issued under the Indian Companies Act. | The same duty as a Debenture transferable by delivery for a face amount equal to the nominal amount of the shares specified in the warrant. |
Shipping Order | Fifty paise. |
Surrender of Lease– | |
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The duty with which such lease is chargeable. |
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The same duty as a conveyance. |
Trust– | |
A.– Declaration of, | |
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The same duty as a Bond. |
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On ten thousand rupees, the duty payable under clause (a) and on the remainder, three rupees for every additional one thousand rupees or part thereof. |
B.– Revocation of, | The same duty as a Bond fora sumequal to the amount or value of the prop- erty concerned but not exceeding the duty payable on Bond. |
Warrant for Goods | Three rupees. |
पिताजी के नाम का मकान माँ के नाम कैसे हो? उत्तराधिकार प्रमाण पत्र कैसे बनेगा?
समस्या-
लखनऊ, उत्तर प्रदेश से मनोज स्वरूप शुक्ला ने पूछा है-
मेरे पिता जी का देहांत दिनांक 25.03.2008 को हो गया है। लखनऊ में पिताजी के नाम पर एक मकान स्थित है, उसे मैं अपनी माता जी के नाम हस्तान्तरित कराना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे क्या करना होगा? मेरे पिताजी ने कोई वसीयत नहीं लिखी है तथा हम दो भाई तथा दो बहने हैं और सब विवाहित हैं।
उत्तराधिकार प्रमाण पत्र कैसे बनेगा? उसके लिए मुझे क्या करना होगा?
समाधान –
आप के पिता जी ने कोई वसीयत नहीं की थी। इस तरह उन की संपत्ति निर्वसीयती है। इस संपत्ति पर उन के उत्तराधिकारियों का समान अधिकार है। अब इस संपत्ति के आप, आप की माता जी, आप का भाई और आप की दो बहनें, कुल पाँच हिस्सेदार हैं। यदि शेष चारों हिस्सेदार यह चाहते हैं कि उक्त मकान केवल माता जी की संपत्ति हो जाए तो आप सभी भाई-बहनों को अपना हिस्से पर स्वत्वाधिकार उन के नाम छोड़ना पड़ेगा। यदि उत्तराधिकार में प्राप्त किसी सम्पत्ति का कोई एक या अधिक हिस्सेदार उसी संपत्ति के किसी अन्य हिस्सेदार के नाम अपना हिस्सा स्थानान्तरित करवा सकते हैं। इस के लिए वे जो दस्तावेज निष्पादित करते हैं उसे रिलीज डीड या हक त्याग विलेख कहते हैं।
हक त्याग विलेख पर स्टाम्प ड्यूटी अत्यन्त कम है और पंजीयन शुल्क भी। लखनऊ के जिस क्षेत्र में आप के पिताजी के नाम का मकान स्थित है उस क्षेत्र पर क्षेत्राधिकार रखने वाले उप पंजीयक के कार्यालय में इस दस्तावेज का पंजीयन होगा। उस कार्यालय में जो भी डीड रायटर यह काम कराता होगा, वह इस दस्तावेज का प्रारूप बना देगा और वही स्टाम्प ड्यूटी और पंजीयन शुल्क की जानकारी भी आप को दे देगा। यदि कोई वकील आप का परिचित है या जिसे आप जानते हैं वह भी इस काम को करवा सकता है। इस तरह आप चारों भाई बहन उक्त रीलीज डीड अथवा हक त्याग विलेख निष्पादित कर उस का पंजीयन करवा कर उक्त मकान को अपनी माँ के नाम करवा सकते हैं। इस से आप की माता जी उक्त मकान की एकल स्वत्वाधिकारी (स्वामिनी) हो जाएंगी।
किसी अचल संपत्ति के लिए उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन बैंक में जमा राशि, या अन्य कहीं भी पिताजी की कोई सीक्योरिटीज और ऋण होंगे तो उन्हें प्राप्त करने या चुकाने के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा। इस के लिए आप को जिला न्यायाधीश के न्यायालय में आवेदन करना होगा। उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करने की प्रक्रिया दीवानी मुकदमों की तरह है। इस के लिए आप को किसी वकील की मदद लेनी होगी। जिन राशियों के लिए उत्तराधिकार प्रमाण पत्र प्राप्त करना है उन के मूल्य के आधार पर न्यायालय शुल्क अदा करना होगा जो उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने का आदेश हो जाने पर स्टाम्प पेपर के रूप में न्यायालय में जमा कराना होगा। इन्ही स्टाम्प पेपर पर उत्तराधिकार प्रमाण पत्र टाइप किया जा कर जारी किया जाएगा। उत्तराधिकार प्रमाण पत्र की प्रक्रिया की विस्तृत जानकारी यहाँ क्लिक कर के जानी जा सकती है।
विक्रय पत्र में बेची गयी संपत्ति का पूरा वर्णन न हो तो विक्रेता से संशोधन विक्रय पत्र निष्पादित करवा कर पंजीकृत करवाएँ
समस्या-
पानीपत, हरियाणा से दीपक ने पूछा है-
हम ने पानीपत में एक मकान खरीदा है, 28 अगस्त को उस के विक्रय पत्र की रजिस्ट्री हुई है। ह्मारे मकान का प्लाट कुल 78 गज का है। लेकिन मकान के ग्राउंड फ्लोर की 17 गज जमीन बेची हुई है जिस में अब एक डाक्टर की दुकान है। इस तरह भूतल पर प्लाट और निर्माण 61 गज का है और प्रथम तल 78 गज में ही बना हुआ है। अब हमारी रजिस्ट्री केवल 61 गज की हुई है जिस में प्रथम तल 78 गज में निर्मित है। क्या यह हमारे लिए भविष्य में परेशानी का कारण बन सकता है? इसी बात को सोच कर पिताजी बहुत तनाव और अवसाद में हैं। क्या हमें यह गलती ठीक करवानी चाहिए? यदि ठीक करवाएँ तो कैसे होगी?
समाधान-
दीपक जी, तीसरा खंबा कोई प्रोफेशनल सेवा नहीं है। तीसरा खंबा पर जो भी समस्याएँ आती हैं उन में से अनेक अनुत्तरित भी रह जाती हैं। कोशिश यह की जाती है कि सभी समस्याओं का हल जल्दी से जल्दी प्रस्तुतद किया जाए। आप ने कल शाम को प्राप्त हुआ, आज आप ने तुरंत उस का उलाहना भी दिया। यदि आप को बहुत ही शीघ्रता थी तो इस का हल तुरंत आप को उसी वकील या रजिस्ट्री कराने वाले डीडराइटर से पूछ लेना चाहिए था। वह निश्चित रूप से बता देता।
यदि आप को बेचा गया भूखंड रजिस्टर्ड विक्रय पत्र में केवल 61 गज का ही अंकित है और यह अंकित नहीं है कि प्रथम तल पर 78 गज में निर्माण है। तो निश्चित रूप से यह आप के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। वास्तव में विक्रय पत्र में बेचे जाने वाली संपत्ति का पूर्ण विवरण अंकित होना चाहिए था। उस में अंकित होना चाहिए था कि भूखंड 78 गज का था जिस पर दो मंजिला मकान बना हुआ है। इस में से ग्राउंड फ्लोर का 17 गज का भूखंड और उस पर भूतल पर बना निर्माण किसी अन्य व्यक्ति को विक्रय किया जा चुका है लेकिन उस पूर्व में बेच दिए गए 17 गज के भूखंड पर बने निर्माण की छत वर्तमान में आप को बेची जा रही संपत्ति में सम्मिलित है। विक्रय पत्र में प्रत्येक तल पर निर्मित क्षेत्रफल अलग अलग लिखा जाता है जिस में आप के मामले में लिखा जाना चाहिए था कि भूतल पर 61 गज का भूखंड और उस पर निर्मित क्षेत्रफल 61 गज, प्रथम तल पर पूर्व में बेचे गए 17 गज भूखंड व प्रथम तल की छत सहित निर्मित क्षेत्रफल 78 गज है। इस तरह संपूर्ण निर्मित क्षेत्रफल 139 गज है।
आप को विक्रय पत्र को एक बार ध्यान से जाँच लेना चाहिए कि उस में यह स्पष्ट है कि नहीं कि पूर्व में बेचे गए भूखंड के भाग और उस पर निर्मित भूतल के निर्माण की छत तथा उस छत पर निर्मित हो रहे निर्माण सहित आप को विक्रय की जा रही है। यदि यह स्पष्ट नहीं है तो निश्चित रूप से आप के लिए परेशानी का कारण है। आप को इसे तुरंत दुरुस्त करवा लेना चाहिए।
इस त्रुटि को ठीक करवाने में न्यायालय का कोई काम नहीं है। कोई भी विक्रय विक्रेता और क्रेता के मध्य हस्तांतरण है। जिस का पंजीयन पंजीयक के यहाँ होना आवश्यक है। उस विक्रय पत्र से उतनी ही संपत्ति पर आप को अधिकार प्राप्त हुआ है जितनी उस में स्पष्ट रूप से अंकित है। इस अस्पष्टता का लाभ उठा कर 17 गज भूखंड और उस पर निर्मित भूतल का स्वामी प्रथम तल के उस के ऊपर निर्मित हिस्से पर अपना अधिकार जता कर आप को परेशान कर सकता है। अब चूंकि यह मामला क्रेता और विक्रेता के बीच का है तो दोनों के बीच ही सुलझ सकता है। इस के लिए आप को विक्रेता से कहना पड़ेगा कि प्रथम तल के 17 गज के निर्माण के बारे में विक्रय पत्र में कुछ नहीं लिखा है इस लिए उस 17 गज के भूतल के निर्माण की छत तथा उस पर प्रथम तल पर निर्मित निर्माण के लिए एक और विक्रय पत्र उसे निष्पादित कर पंजीकृत करवानी होगी। यदि यह केवल विक्रय पत्र के प्रारूपण या टंकण की त्रुटि है तो एक संशोधन विक्रय पत्र निष्पादित करवा कर उस का पंजीयन करवाना पड़ेगा। इस के लिए आप विक्रेता से बात करें और 17 गज के प्रथम तल की छत तथा उस पर निर्मित प्रथम तल के निर्माण के विक्रय पत्र अथवा संशोधन विक्रय पत्र की रजिस्ट्री जितना शीघ्र हो करवाएँ। यदि विक्रेता आनाकानी करे तो फिर आप को पूर्व में हुए विक्रय की संविदा (सेल एग्रीमेंट) में यह बात लिखे होने के आधार पर विक्रेता के विरुद्ध दीवानी न्यायालय में संविदा के विशिष्ट पालन का मुकदमा यह अतिरिक्त विक्रय पत्र निष्पादित कराने और उस का पंजीयन करवाने के लिए लाना पड़ेगा।
नियमित भरण पोषण राशि हेतु धारा 125 दं.प्र.संहिता के अंतर्गत आवेदन करें
समस्या-
मेरी शादी 2003 में हुई थी, कुछ सालों बाद मेरे ससुर, पति, देवर और सास ने एफडी तुड़वाकर एक लाख रुपए लिए और कुछ ससुर ने अपने पैसे जोड़कर एक ज़मीन खरीदी। वो ज़मीन उन्हों ने मेरे पति और देवर के नाम पर खरीदी। कुछ सालों बाद उन्हों ने मेरे साथ मारपीट शुरू कर दी। तब मैं ज़मीन के ओरिजिनल पेपर लेकर अपने मायके आ गयी। फिर मैं ने उन पर 498क का केस चला दिया। इस पर मेरे ससुराल वालों ने तलाक़ का मुक़दमा डाल दिया। वे एक बार भी कोर्ट के सामने उपस्थित नहीं हुए और कोर्ट ने तलाक़ का मुक़दमा खारिज़ हो गया। 8000 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से एक साल का खर्चा बाँध दिया। क्या वह मुझे अब मिल सकता है? दो सालों से जो 498क का केस डाला था वो भी अभी तक चालू नहीं हुआ। क्या वह केस दब कर रह गया? जब की पुलिस कह रही है कि हम ने चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी है। फिर मुझे पता चला कि उन्हों ने वह ज़मीन चोरी छुपे बेच दी है, जब कि उस के ओरिजिनल पेपर्स मेरे पास ही हैं। मैं जानना चाहती हूँ कि उस ज़मीन पर मेरा कोई अधिकार है या नहीं? बिना ओरिजिनल पेपर के क्या ज़मीन बिक सकती है? मेरे दो बच्चे भी हैं और मेरा आय का कोई साधन नहीं है, मैं अपने मायके में रह रही हूँ।
-दीपिका, आगरा, उत्तरप्रदेश
समाधान-
आप के ससुर, देवर और पति ने आप की एक लाख रुपए की एफडी तुड़वा कर रुपया लिया और जमीन खरीदी उस में आप का स्वामित्व नहीं है। उस जमीन को जिन व्यक्तियों के नाम से खरीदा गया था वे विक्रय कर सकते हैं। जमीन के स्वामित्व के मूल दस्तावेज आप के पास होने से कुछ नहीं होता। दस्तावेज खोने की बात कह कर उस की प्रमाणित प्रतियाँ रजिस्ट्रार दफ्तर से प्राप्त की जा सकती हैं और भूमि को आगे बेचा जा सकता है। यदि आप उस जमीन को बेचे जाने से रोकना चाहती हैं तो आप को इस के लिए एक लाख रुपए की ब्याज सहित वापसी के लिए दीवानी वाद दाखिल कर के उस जमीन को बेचे जाने से रोकने के लिए कार्यवाही करनी होगी। यह कार्यवाही भी उस न्यायालय में करनी होगी जहाँ वह जमीन स्थित है। इस के लिए आप जमीन के स्वामित्व के कागजात और एफडी तुड़वाने का विवरण बता कर अपने वकील से सलाह करें, वे आप को उचित मार्गदर्शन कर सकेंगे।
आप ने जो 498क की शिकायत पुलिस को की है उस में आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत करने की सूचना पुलिस ने आप को दी है। अब उस में न्यायालय आरोप तय करेगा उस के बाद ही आप को साक्ष्य (गवाही) देने के लिए समन भेजेगा। इस काम में समय लग सकता है। यदि आप जानना चाहती हैं कि उस मुकदमे में क्या हो रहा है तो पुलिस से आरोप पत्र प्रस्तुत करने की तिथि और न्यायालय जान कर उस न्यायालय में अपने मुकदमे की स्थिति की जानकारी अपने वकील के माध्यम से जान सकती हैं।
आप के विरुद्ध जो तलाक का मुकदमा दाखिल किया गया था वह आप के पति के न्यायालय के समक्ष उपस्थित न होने से खारिज कर दिया गया है। इस मुकदमे के लंबित रहने के दौरान आप की ओर से जो आवेदन धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया था उस में आप को न्यायालय व्यय तथा भरण पोषण देने का आदेश हुआ होगा। यह आदेश केवल तलाक की याचिका के लंबित रहने की अवधि के लिए दिया जा सकता है। इस आदेश के अनुसार आप भरण पोषण राशि वसूल कर सकती हैं। इस के लिए आप को उसी न्यायालय में आदेश के निष्पादन के लिए दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 10 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत करना होगा। इस आवेदन पर आरंभ कार्यवाही से आप की भरणपोषण की राशि की वसूली हो सकती है।
आप अपनी संतान और स्वयं अपने भरण पोषण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं। इस कार्यवाही के द्वारा आप भरण पोषण प्राप्त करने के लिए स्थाई आदेश प्राप्त कर सकती हैं। इस आदेश में समय और परिस्थितियों के अनुसार भरण पोषण की राशि में वृद्धि करने, कम करने या समाप्त करने के लिए संशोधन कराए जा सकते हैं तथा भरण पोषण राशि अदा न करने पर न्यायालय में आवेदन किया जा सकता है जिस की अदायगी न करने पर पति को जेल भेजा जा सकता है।
धारा-24 हिन्दू विवाह अधिनियम के आदेश के निष्पादन के लिए सीपीसी के आदेश 21 नियम 11(2) अंतर्गत लिखित आवेदन करें
समस्या-
पति ने झूठे आरोप लगा कर न्यायालय में तलाक की अर्जी लगा रखी थी। पति एक वर्ष में एक बार भी पेशी पर न्यायालय में उपस्थित नहीं हुआ। पत्नी तलाक नहीं देना चाहती है। पत्नी ने धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत आवेदन किया जिस में न्यायालय ने पत्नी और दो बच्चों के लिए 5000 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण देने का निर्णय प्रदान किया। उस के बाद अंत में पति का तलाक का मुकदमा खारिज कर दिया। क्या पत्नी को तलाक का मुकदमा खारिज होने के दिन तक का खर्चा मिलेगा? अगर पति तब भी नहीं दे तो पत्नी क्या कर सकती है? यदि पति लापता हो तो क्या पत्नी अपने सास ससुर से खर्चा ले सकती है?
– रानी आहूजा, लोहाघाट, उत्तराखण्ड
समाधान-
हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-13 में तलाक की अर्जी तथा धारा-24 में मुकदमे के लंबित रहने के दौरान निर्वाह भत्ते के लिए अर्जी दोनों का अलग अलग अस्तित्व है। जहाँ धारा-24 में अर्जी मंजूर हो कर अंतरिम निर्वाह भत्ता तथा न्यायालय खर्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कर दिया गया है धारा-13 की तलाक की अर्जी लंबित रहने के दौरान यह खर्चा पति को पत्नी और बच्चों को देना ही होगा। क्यों कि निर्वाह भत्ते और न्यायालय खर्च का आदेश अंतिम हो चुका है।
यदि पति न्यायालय द्वारा आदेशित यह राशि पत्नी को अदा नहीं करती है तो पत्नी न्यायालय के समक्ष उक्त आदेश के निष्पादन के लिए आदेश 21 नियम 11(2) सीपीसी के अंतर्गत लिखित आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। न्यायालय उक्त आवेदन पर पति से उक्त राशि वसूल कर सकता है। पति के लापता होने पर भी उक्त राशि उस की संपत्ति से वसूल की जा सकती है।
पति के विरुद्ध किसी आदेश या डिक्री का निष्पादन पति के माता-पिता के विरुद्ध नहीं किया जा सकता। यदि कोई ऐसी संपत्ति हो जिस में पति का भी माता-पिता के साथ हिस्सा हो तो उस संपत्ति को कुर्क कर के न्यायालय उक्त राशि को वसूल कर पत्नी को दिला सकता है।
यहाँ धारा 24 हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत निर्वाह भत्ता केवल हिन्दू विवाह अधिनियम के अंतर्गत किसी प्रकरण के न्यायालय के समक्ष लंबित रहने तक की अवधि के लिए ही दिलाया जा सकता है। पत्नी को चाहिए कि स्थाई निर्वाह भत्ते के लिए वह धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत न्यायालय को आवेदन करे। जिस में यह भी प्रावधान है कि निर्वाह भत्ते की राशि अदा नहीं करने पर पति को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है।