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पिता की संपत्ति पर उस के जीते जी संतान का कोई अधिकार नहीं।
समस्या-
सहज प्रीत सिंह ने लुधियाना, की समस्या भेजी है कि-
मेरा नाम सहज प्रीत सिंह है। 2006 में मेरा डाइवोर्स हो गया था। मेरा एक बेटा है जो अपनी माँ के पास है। मेरे पिता जी स. जसवीर सिंह सारी प्रॉपर्टी मेरे नाम करवाना चाहते हैं लेकिन उन्हे डर है कि कहीं मेरा बेटा जो मेरी पत्नी क पास है. प्रॉपर्टी पर अधिकार मांगने ना आ जाए. मेरे पिता जी ने डाइवोर्स सेटल्मेंट के समय लिखवाया था कि मेरे पोते का किसी चीज़ पर कोई हक नहीं और उस टाइम मेरी पत्नी ने 2 लाख रुपए मांगे थे जो दे दिए थे. लेकिन क्या मेरा बेटा मुझ से या मेरे पिता जी पर प्रॉपर्टी हक के लिए कोई क़ानूनी कार्रवाई कर सकता है? जो भी प्रॉपर्टी है मेरे पिता जी ने खुद बनवाई है. जो मेरे डाइवोर्स के बाद खरीदी थी. अभी 2/3 साल में. यह प्रॉपर्टी मेरे माता जी के नाम पर है लेकिन ये मेरे खुद के पैसे से खरीदी है लेकिन रजिस्टर्ड मेरे माता जी क नाम पर है.
समाधान-
असल में जिस संपत्ति के बारे में आप चिन्तित हैं वह आपकी माताजी के नाम है और वही उस की स्वामिनी हैं। मेरा एक सवाल ये है कि क्या आप कानूनी रूप से इस समय अपने पिताजी या माताजी की संपत्ति में हिस्सा मांग सकते हैं? नहीं न, तो फिर आप का बेटा आप के जीतेजी आप की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मांग सकता। उस का कोई भी हक पैदा होगा तो तब होगा जब आप नहीं रहेंगे और आप की संपत्ति के उत्तराधिकार का प्रश्न उठेगा। आप के जीवन काल में आप के पुत्र का आप की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
माताजी के नाम जो संपत्ति है उसे वे आप के नाम वसीयत कर सकती हैं। इस से उन के जीवनकाल के बाद आप उस के स्वामी हो जाएंगे। आप अपनी संपत्ति जिसे देना चाहेँ उसे वसीयत कर सकते हैं। आप दूसरा विवाह करें तो अपनी पत्नी और होने वाली संतानों के नाम या उन में से किसी एक के नाम वसीयत कर सकते हैं। इस से आप के शेष उत्तराधिकारी उन के उत्तराधिकार के हक से वंचित हो जाएंगे। आप के जीवन काल में आप की तलाकशुदा पत्नी से उत्पन्न पुत्र का कोई हक आप की संपत्ति पर नहीं है लेकिन यदि आप अपनी संपत्ति की कोई वसीयत नहीं करते तो जो भी निर्वसीयती संपत्ति आप के जीवनकाल के उपरान्त शेष रहेगी उस में आप की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र का भी अधिकार रहेगा।
विधवा द्वारा ग्रहण की गई दत्तक संतान का पिता कौन कहलाएगा?
समस्या-
पुरुषोत्तम शर्मा ने हनुमानगढ़, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
श्रीमती कमला पत्नी स्व. लालचन्द कमला देवी की आयु 45 वर्ष थी और कमला देवी के कोई औलाद नहीं थी और ना ही होने की सम्भावना थी। कमला के पति लालचन्द की मृत्यु हो चुकी.थी। कमला.ने अपने जेठ लक्ष्मीनारायण के लड़के धर्मवीर को हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार बचपन से गोद ले रखा है। गोदनामा बना हुआ है कमला.ने अपनी सम्पति का त्याग कर धर्मवीर के नाम कर दी है। तो आप मुझे ये बताएँ कि पहले सभी डाँक्यूमेन्ट में धर्मवीर पुत्र श्री लक्ष्मीनारायण था अब पि.मु./दत्तक पुत्र होने के बाद भविष्य में सभी धर्मवीर के डाक्युमेन्ट में क्या नाम करवाया जाए? लालचन्द की मृत्यु के बाद कमला ने धर्मवीर को गोद लिया था। अब.पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड, भामाशाह कार्ड, बैक खाता, लाईसेन्स, सभी डाक्युमेन्ट में क्या नाम करवाया जाए, जो भविष्य मे पूर्ण रुप से सही हो और कोई समस्या ना आए? कोई कहता है. धर्मवीर पि.मु./दत्तक पुत्र कमला करवा लो और कोई कहता है धर्मवीर पि.मु./दत्तक पुत्र लालचन्द करवा लो। तो आप ही बताएँ कि भविष्य में क्या नाम पूर्ण रूप से सही होगा? आपका सुझाव यह था कि बच्चे का दत्तक ग्रहण होने के उपरान्त उस के पिता के स्थान पर उस के दत्तक पिता का ही नाम होना चाहिए। अन्यथा अनेक प्रकार की परेशानियाँ हो सकती हैं। मुझे थोड़ा समझने मे समस्या आ रही है कि धर्मवीर को कमला देवी ने गोद लिया था, ना कि लालचन्द ने। धर्मवीर को गोद लेने से पहले ही लालचन्द की मृत्यु हो चुकी थी। लालचन्द की मृत्यु होने के कुछ समय बाद कमला देवी ने धर्मवीर को गोद लिया था।
समाधान-
हमारा जो सुझाव था वही सही है। यदि विधवा किसी पुत्र को दत्तक ग्रहण करती है तो उस का दत्तक पिता दत्तक ग्रहण करने वाली स्त्री का पति ही होगा। उस के पिता के स्थान पर उस के जन्मदाता पिता का नाम तो इस कारण अंकित नहीं किया जा सकता कि वह तो अपनी पत्नी की सहमति से अपने पुत्र को दत्तक दे चुका होता है और पिता होने की हैसियत को त्याग देता है।
हिन्दू दत्तक ग्रहण एवं भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 14 की उपधारा (4) में उपबंधित किया गया है कि जब एक विधवा या अविवाहित स्त्री किसी बालक को दत्तक ग्रहण करती है और बाद में किसी पुरुष से विवाह करती है तो जिस पुरुष से वह विवाह करती है वह उस दत्तक बालक का सौतेला पिता कहलाएगा।
इस उपबंध से स्पष्ट है कि किसी विधवा द्वारा दत्तक ग्रहण करने पर दत्तक ग्रहण किए गए बालक का पिता उस विधवा स्त्री का मृत पति ही होगा। इस मामले में दत्तक ग्रहण किए गए बालक के दस्तावेजों में धर्मवीर पुत्र स्व. श्री लालचंद लिखवाना होगा। जो कि दत्तक ग्रहण विलेख की प्रति प्रस्तुत कर परिवर्तित कराया जा सकता है। हर दस्तावेज में परिवर्तन की प्रक्रिया भिन्न भिन्न हो सकती है जो आप संबंधित विभाग से पता करें।
स्वयं को अपने वास्तविक पिता की पुत्री कैसे प्रमाणित करें?
रेनू ने जालोर, राजस्थान से समस्या भेजी है कि-
मेरा नाम रेनू है। मेरे पिताजी का स्वर्गवास मेरी 5 दिन की आयु में हो गया था। मैं उनकी इकलौती संतान हूँ। मेरी माँ मन्जू देवी मेरे साथ 7 वर्ष तक साथ रही बाद में उन्होंने मुझे ननिहाल छोड़कर नाता विवाह कर लिया। मेरी पढ़ाई कक्षा दूसरी तक मेरे पैतृक शहर ब्यावर में हुई थी। मेरे बड़े पिताजी मदनलाल जी ने मेरे स्कूल में दाखिला करवाते समय मेरे पिताजी ओम प्रकाश जी के स्थान पर खुद का नाम मदन लाल लिखवा दिया था। कक्षा 3 से 10 तक पढ़ाई मेरे ननिहाल सोजत सिटी में हुई। मेरे नानाजी ने कक्षा 10 बोर्ड के फॉर्म में मेरे वास्तविक पिताजी ओम प्रकाश जी का नाम लिखवाने के लिए मेरी माँ मन्जू देवी से उस समय शपथ पत्र भी लिखवाया। परन्तु स्कूल हेडमास्टर ने मेरे बड़े पिताजी मदन लाल जी से पिताजी के नाम परिवर्तन के लिए शपथ पत्र लिखवाने के लिए कहा, तब मेरे बड़े पिताजी मदनलाल जी ने शपथ देने से इनकार कर लिया। इस तरह मेरे वास्तविक पिताजी का नाम ओम प्रकाश मेरे शैक्षणिक दस्तावेजो में कहीं इन्द्राज नहीं हुआ। मैं कक्षा 11 व् 12 मेरे पैतृक शहर ब्यावर में मेरे दादाजी व् दादाजी के पास पढ़ी। मेरी शादी 1997 मेरे दादाजी और दादीजी ने मेरे पैतृक मकान ब्यावर में ही करवाई। मेरे विवाह कार्ड मेरे पिताजी का नाम ओम प्रकाश जी लिखवाया। मुझे 5 दिसम्बर 2009 को जानकारी मिली कि मेरे बड़े पिताजी ने मेरी पैतृक जायदाद बेचने का सौदा कर रहे है। उपरोक्त जायदाद के मालिक मेरे पिताजी के दादाजी हैं। कभी कानूनन बँटवारा भी नही हुआ है। मैं ने मेरे बड़े पिताजी स्व. मदनलाल जी की पत्नी यानि मेरी बड़ी माँ से व्यक्तिगत सम्पर्क कर उन से मेरे पिताजी के हिस्से की रकम की मांग रखी। तो उन्होंने साफ़ इनकार कर दिया। तब मैं ने उक्त जायदाद पर मेरे अधिकार की आम सूचना 16 दिसम्बर 2009 को समाचार पत्र में प्रकाशित करवाई। 21 दिसम्बर 2009 को सिविल न्यायालय में बेचान पर रोक और परिवार की सदस्या होने की वजह से जायदाद को प्रथम खरीदने का अवसर मुझे मिले इस का वाद दायर किया। जिस के समन का जवाब मेरे बड़े पिताजी के परिवार ने 22 दिसम्बर 2009 को कोर्ट में दिया कि वो मुझे नहीं जानते हैं और मेरी पुश्तैनी जायदाद को मेरे परिवार वालों ने 30 दिसम्बर 2009 को ब्यावर के पास मसूदा जाकर रजिस्टर्ड बेचान कर लिया। मैं ने कोर्ट में मेरे स्व पिताजी ओम प्रकाशजी की हिस्से की अधिकारी बताते हुए वाद दायर किया। मेरे परिवार ने मेरे शैक्षणिक दस्तावेजो में मेरे बड़े पिताजी मदनलाल जी पुत्री लिखा है बताकर मुझे ओम प्रकाश जी की पुत्री होने का सबूत मांग रहे है। मेरे दादाजी दादीजी का स्वर्गवास हो चुका है। बाकी पूरा परिवार मेरे से विरोध में है। सम्पति पर कोर्ट आगे बेचान व् यथास्थिति का स्टे लग चुका है। स्टे की अपील भी ख़ारिज हो चुकी है। मैं ने स्टे के बाद कोर्ट में जायदाद की रजिस्ट्री की पूरी राशि की कोर्ट फीस जमा करवाकर हक शफा (परिवार की सदस्या होने के नाते पूरी जायदाद को खरीदने का) का वाद दायर किया। मेरी समस्या यह है कि मैं मुझे मेरे वास्तविक पिताजी ओम प्रकाश जी की पुत्री कोर्ट में कैसे साबित करूँ। मेरे नानाजी और मेरी वास्तविक माँ मन्जू देवी जीवित है और उनसे मेरे सम्बन्ध अच्छे है। मेरे स्व पिताजी का पूरा परिवार मेरे विरुद्ध है।
समाधान–
हमें लगता है कि आप ने जो हक शफा का वाद प्रस्तुत किया है उस की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी यदि आपने वाद किया है तो उसे अन्तिम स्तर तक लड़ना चाहिए।
आप को अपने आप को अपने पिता ओम प्रकाश जी की पुत्री साबित करने के लिए अपनी माता जी को ला कर न्यायालय में बयान कराना होगा। एक बार माता जी से मिल लेंगी तो हो सकता है आप का जन्म प्रमाण पत्र या फिर जिस अस्पताल में आप का जन्म हुआ हो उस का रिकार्ड भी मिल जाए। आप उस रिकार्ड के आधार पर अपने को ओम प्रकाश जी की पुत्री साबित कर सकती हैं।
आप ने अपनी समस्या में यह उल्लेख किया है कि आप ने अपने पिता का नाम अपने शैक्षणिक रिकार्ड में दर्ज कराने के लिए अपनी माता जी का शपथ पत्र प्राप्त किया था। यदि वह वजूद में हो तो वह भी एक अच्छा दस्तावेजी साक्ष्य हो सकता है। जिन प्रधानाध्यापक जी ने मदन लाल जी का शपथ पत्र प्रस्तुत करने को कहा था उन का बयान भी इस मामले में महत्वपूर्ण हो सकता है।
इस के अलावा परिवार के मित्रों या रिश्तेदारों में कोई व्यक्ति हो सकता है जो आप के ओम प्रकाश जी की पुत्री होने की हकीकत से परिचित हो। आप ऐसे व्यक्ति का बयान करवा सकती हैं। यदि आप का जन्म अस्पताल में हुआ है और अस्पताल का रिकार्ड नहीं मिलता है तो आप के जन्म समय की डाक्टर या नर्स का बयान भी महत्वपूर्ण है। यदि आप का जन्म अस्पताल में न हो कर घऱ पर हुआ हो जिस दाई ने आप की माताजी का प्रसव कराया है उस का बयान अति महत्वपूर्ण है। जन्म के समय होने वाले औपचारिक समारोह जैसे सूरज पूजन आदि में उपस्थित महिलाओं, पुरुषों, नाइन और ढोली आदि का बयान भी महत्वपूर्ण हैं।
इन सब साक्ष्यों पर डीएनए का साक्ष्य सब से बड़ा है। आप की वास्तविक माताजी उपलब्ध हैं आप उन का तथा अपना डीएनए टेस्ट करवा सकती हैं तथा आप की माताजी व डीएनए टेस्ट करने वाले विशेषज्ञ का बयान डीएनए रिपोर्ट प्रस्तुत कर उसे प्रदर्शित करवाने के साथ करवा सकती हैं। यह साक्ष्य सारे साक्ष्य पर भारी पड़ेगा।
हम ने आप के लिए साक्ष्य के इतन स्रोत बता दिए हैं इन में से कोई दो-तीन स्रोतों से भी आप साक्ष्य ले आएंगी तो आप का मकसद पूरा हो जाएगा।
ये लड़ाई लड़ना आप के लिए उचित नहीं, इस से सिर्फ आप को हानि होगी।
अमित ने हजारीबाग, झारखंड से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिता एक रिटायर सरकारी पदाधिकारी है। हम लोग चार भाई हैं। मेरे पिता के किसी दूसरी महिला के साथ संबध है। मेरे पिता से पूछने पर वह इस संबध होने से इनकार करते रहे। इसके अलावा वे मेरी मां को कोई पैसा नहीँ देते थे। पूछने पर वो गाली गलोज करते रहे। वो हम लोग के पास कुछ दिन रहते थे और बिना बताये एकाएक उसके पास जो दूसरे शहर मे चले जाते थे। इस बात को लेकर मेरी मां की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ा जो अक्सर बीमार रहने लगी। मेरे भाईयों की हालात भी ठीक नहीँ थी उनका बहुत मुशकिल से गुज़ारा हो पाता है। 10 नबंम्बर 2014 को मेरे मां की अचानक तबीयत ख़राब हुई तब मेरे पिता साथ में थे और भाई काम से बाहर। उस हालात में मेरे पिता छोड़कर उस महिला के पास चले गये। मैं उस समय पुलिस की ट्रेनिंग के लिए बाहर था। जब भाईयो को पता चला कि मां बीमार है तो उन्हें अस्पताल ले जाया गया। लेकिन तबतक हालात ख़राब हो चुकी थी। पड़ोसियों से पैसे लेकर एडमिट करवाया गया। 20 नवम्बर 2014 को मेरी मां का देहान्त हो गया। अभी मैं ट्रेनिंग पूरा कर घर आया हूँ। मैं ने अपने पिता से इस बारे में बात की तो उन्होने कहा मुझे झूठे केस में फंसा देंगे। उन्होंने बहुत लोगों पर केस कर रखा है। बात बात पर केस मुकदमा करना उनकी पुरानी आदत है। मेरे पिता की लापरवाही के कारण मेरी मां का देहान्त हुआ है। मेरी मां को न्याय कैसे मिलेगा मेरा मार्गदशन करें।
समाधान-
आप की माता जी के साथ जो होना था हो चुका। अब वे इस दुनिया में नहीं हैं। यदि उन्हें कुछ करना था तो अपने जीते जी करना था। अब वे नहीं रही हैं तो पिता को दूसरा सम्बन्ध बनाए रखने में कोई बाधा नहीं है। अपने पिता जी की लापरवाही को साबित करने के लिए आप को सबूत भी पर्याप्त नहीं मिलेेंगे। उसे साबित करने में आप को बहुत परेशानी आएगी और फिर भी आप उसे साबित नहीं कर पाएंगे। आप पिता की शिकायत करेंगे तो आप के पिता को भी आप के विरुद्ध शिकायत और मुकदमे करने का बहाना मिल जाएगा। जिस से आप को ही परेशानी आने वाली है हो सकता है इस का असर नौकरी तक भी जाए।
आप सब भाई बहन बालिग हैं और कानून के अनुसार बालिग बच्चों के प्रति पिता का कोई दायित्व नहीं होता। पिता की कमाई हुई संपत्ति पर भी उस की बालिग संतानों का कोई हक नहीं होता। इस तरह आप यदि पिता जी से लड़ेंगे तो पिताजी की जिस चल अचल संपत्ति का आप अभी उपयोग कर रहे हैं या कर सकते हैं उस से वंचित किए जा सकते हैं। माँ तो अब नहीं रहीं उन के साथ न्याय हो या अन्याय इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हमारी न्याय व्यवस्था की यह हालत है कि जो उस में न्याय के लिए जाता है खुद ही उलझा पड़ा रहता है। वस्तुतः हमारी न्याय व्यवस्था न्याय प्राप्त करने वालों के साथ बहुत बुरी तरह पेश आती है। यह बात आप कुछ दिन पुलिस की नौकरी कर लेंगे तो बखूबी समझ लेंगे। कम से कम मौजूदा न्याय प्रणाली तो आप को या आप की माता जी को कभी न्याय नहीं दिला सकेगी।
हमारे विचार में आप अपने पिता को अपने हाल पर छोड़ दें उन के कर्मों का फल प्रकृति अपने आप उन्हें देगी, आप को कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। आप इस धारणा को छोड़ कर अपने जीवन को सुधारने, अपनी माली हालत को ठीक करने के काम में अपना समय लगाएँ।
पिता का अपनी संतान से मिलने का अधिकार
समस्या-
अनुराग साहु ने कोरबा, छत्तीसगढ़ से पूछा है-
मै और मेरी पत्नी पिछले 2 वर्षो से अलग रह रहे हैं। पत्नी ने मेरे व मेरे परिवार वालों के उपर 498 क आईपीसी, भरण पोषण के लिए 125 दं.प्र.सं. एवं घरेलू हिंसा अधिनियम के मुकदमे लगा रखे हैं जो न्यायालय में विचाराधीन हैं। भरण पोषण धारा 125 दं.प्र.सं. के तहत अंतरिम राशि 4000+1000 रूपये पत्नी एवं पुत्र के लिए न्यायालय द्वारा निर्धारित किया गया है। मैं उक्त राशि दे रहा हूँ। मेरा पुत्र 4 वर्ष 6 माह का हो गया है। मेरी पत्नी जब से मायके गयी है तब से मेरे पुत्र से मुझे मिलने नहीं देती है। पुत्र से मिलने उनके घर जाने पर उसके तथा उसके परिवार वालो के द्वारा मेरे उपर बहुत ज्यादा दुर्वव्यहार करती है एवं पुत्र से मिलने के लिए मना करती है। मेरे द्वारा कोर्ट में पुत्र से मिलने के लिए अर्जी दी गयी थी जिसे न्यायाधीश महोदय ने अवयस्क पुत्र से मिलने का कोई प्रावधान नहीं होने का आधार कह कर खारिज कर दिया गया। जिस के बाद मेरी पत्नी एवं उसके घर वालों का मनोबल और बढ़ गया है। मैं अपने पुत्र से मिलना चाहता हूँ पर वकीलों का कहना है कि पुत्र के सात वर्ष होने के बाद ही ऐसा हो सकता है। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ? क्या वास्तव में मै अपने पुत्र से कानूनन नहीं मिल सकता हूँ या कोई उपाय है जिस से मैं कानूनन उससे मिल सकूँ। कृपया मुझे मार्ग दर्शन देंवे।
समाधान-
आप ने यह नहीं बताया कि आप ने केवल अपने पुत्र से मिलने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था अथवा उस की कस्टडी प्राप्त करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया था। आप ने यह भी नहीं बताया कि आप ने यह आवेदन किस न्यायालय में लगाया था और स्वतंत्र रूप से लगाया था या फिर आपके द्वारा बताई गई कार्यवाहियों में किसी में लगाया गया था? इस तरह आप ने अपने मामले की पूरी जानाकारी नहीं दी है जिस के कारण कोई स्पष्ट राय देना संभव नहीं है। आपने यह भी नहीं बताया कि उस ने तो इतने मुकदमे किए हुए हैं आप ने उस पर क्या मुकदमा किया हुआ है? इतना विवाद होने पर आप को कम से कम हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा -13 के अन्तर्गत विवाह विच्छेद का मुकदमा करना चाहिए था। यदि आप के पास विवाह विच्छेद के लिए कोई आधार नहीं था तो आप को दाम्पत्य अधिकारों की प्रत्यास्थापना का मुकदमा तो करना चाहिए था। खैर¡ पिता अपनी संतान का नैसर्गिक संरक्षक है और अपनी संतान से मिलने का उसे नैसर्गिक अधिकार है इस का किसी कानून में उल्लेख होना आवश्यक नहीं। इस अधिकार से उसे तभी वंचित किया जा सकता है जब कि उस का संतान से मिलना संतान की भलाई के लिए उचित न हो।
यदि आप ने उक्त दोनों में से कोई मुकदमा नहीं किया है और आप की पत्नी ने भी हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत कोई मुकदमा नहीं किया है तो आप धारा-13 या धारा-9 में आवेदन प्रस्तुत कीजिए और उस के बाद उसी न्यायालय में हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 26 में बच्चे की कस्टड़ी के लिए आवेदन प्रस्तुत कीजिए। इस आवेदन के साथ ही दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 39 के अन्तर्गत अस्थाई व्यादेश का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कीजिए कि जब तक कस्टड़ी का मामला तय नहीं हो जाता बच्चे से सप्ताह में दो बार मिलने और पूरे दिन साथ रहने की अनुमति प्रदान की जाए। आप को न्यायालय बच्चे से मिलने की अनुमति प्रदान करेगा। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 26 में कस्टड़ी के साथ ही ये सब बिन्दु तय करने का अधिकार न्यायालय को है।
यदि आप ये सब कर चुके हैं और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 26 में आप को बच्चे से मिलने की अनुमति नहीं दी गई है तो आप उस आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय के समक्ष रिविजन या रिट याचिका प्रस्तुत कर सकते हैं। उच्च न्यायालय आप को बच्चे के मिलने हेतु आदेश पारित करेगा।
पिता जो दे रहे हैं उसे ले लें, शेष के लिए प्रयत्न करना व्यर्थ है।
समस्या-
राजेश सिंह ने मुंबई से पूछा है-
मेरे पापा बिहार पुलिस में थे तब दो जगह पटना और कटिहार में ज़मीन लिए थे जो सोतेली माँ के नाम पर है। मेरी माँ नही है। मुझे दादी ने पाला है, पर सौतेली माँ के तंग करने पर मैं 16 साल पहले घर से भाग गया था। अब लौटा हूँ। मेरी शादी हो गई है, दो बच्चे हैं। हालत ठीक नहीं है। मुझे पापा के रिटायरमेंट के पैसे में भी माँ कुछ नहीं दे रही है। पापा 2012 में रिटायर हुए हैं। दो सौतेले 2 भाई इंजीनियर हैं। पापा भी कुछ नहीं बोलते, कहते हैं दादा की ज़मीन का 16 कट्टा में से 8 कट्टा ले कर चले जाओ। बच्चे को पढ़ा भी नहीं पा रहा हूँ, हालत खराब है। मुझे कुछ हुआ तो मेरे बच्चे का क्या होगा? समझ में नहीं आ रहा। मैं बीमार रहता हूँ। माँ पापा शहर में बनाए घर में रहते हैं। पापा के भाईयों में बटवारा नहीं हुआ इस लिए मैं कुछ नहीं कर पा रहा हूँ। मेरी गाँव में पहचान भी नहीं है। कुछ रास्ता बताएँ। सौतेली माँ के कारण मेरा बचपन और जवानी खत्म हो गई। बच्चों का भी लगता है जिन्दगी बरबाद हो जाएगी। मैं क्या करूँ?
समाधान-
किसी का भी जीवन बनाना उस के खुद के और परिस्थितियों के हाथ होता है। इस दुनिया में सभी पैतृक संपत्ति ले कर पैदा नहीं होते। जिन्हें पैतृक संपत्ति नहीं मिलती या जिन के माँ बाप बचपन में ही विदा ले लेते हैं वे भी अपना जीवन चला रहे हैं।
रिटायरमेंट पर जो भी राशियाँ किसी व्यक्ति को मिलती हैं वह खुद उस के भविष्य के लिए होती है, न कि उस के बच्चों के भविष्य के लिए उस राशि पर उस का खुद का अधिकार होता है। यदि आप के पिता इच्छा से या माँ के दबाव के कारण उस में से आप को कुछ नहीं देना चाहते तो आप को कुछ नहीं मिलने वाला है। उस पर निगाह बिलकुल न रखें।
आप के पिता ने जो भी जमीन खरीदी है वह आप की सौतेली माँ के नाम से खरीदी है उस पर आप की सौतेली माँ का पूरा अधिकार है उस में से आप के पिता चाहते हुए भी आप को कुछ नहीं दे सकते।
आप के पिता आप को पुश्तैनी जमीन 16 कट्टा में से आठ कट्टा दे रहे हैं उसे फौरन किसी भी तरह अपने नाम कराएँ, देरी न करें। देरी करने पर वह भी इधर उधर की जा सकती है। आप को अपने पिता से इस से अधिक कुछ भी कानून के माध्यम से नहीं मिल सकता इस कारण व्यर्थ कोशिश में समय और पैसा भी खराब न करें। बाकी जो कुछ करना है वह आप को और आप के बच्चों को करना है दूसरे की आस न रखें।
व्यक्ति के जीवनकाल में उस की स्वअर्जित संपत्ति पर किसी अन्य का कोई अधिकार नहीं।
पसमस्या-
अशोक कुमार ने अलीगढ़ उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरे पिताजी सेवानिवृत्त अध्यापक हैं। वे अपना कमाया हुआ सारा धन मेरे भाई के बेटे पर खर्च कर रहे हैं। इस बात से मुझे कोई एतराज नहीं है, लेकिन मैं चाहता हूँ कि जितना पैसा उसके ऊपर खर्च हो उतना ही मुझे भी मिले। मगर पापा ने साफ मना कर दिया है। अब मुझे क्या करना चाहिए कोई कानून है जिस से मुझे मेरा हक़ मिल सके।
समाधान-
आप की तरह बहुत लोगों को यह भ्रम है कि पिता के जीते जी उन की स्वअर्जित संपत्ति पर उन का अधिकार है। वस्तुतः किसी भी व्यक्ति की संपत्ति पर उस के सिवा किसी भी अन्य व्यक्ति का कोई अधिकार नहीं है। पुत्र वयस्क होने तक, पुत्री वयस्क होने तक और उस के बाद विवाह तक पिता से भरण पोषण के अधिकारी हैं। पत्नी और निराश्रित माता पिता भी भरण पोषण के अधिकारी हैं। लेकिन इन में से किसी का भी उस व्यक्ति की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।
आप के पिता अपनी संपत्ति को किसी भी प्रकार से खर्च कर सकते हैं। यदि वे आप को नहीं देना चाहते तो आप को उन से पाने का कोई अधिकार नहीं है। फिर वे आप के भाई के बच्चे की पढ़ाई पर खर्च कर रहे हैं, वे चाहते हैं कि वह पढ़ लिख कर कुछ बन जाए। जब कि आप को ईर्ष्या हो रही है कि आप को भी उतना ही मिलना चाहिए। ईर्ष्या से कोई अधिकार सृजित नहीं होता।
आप अपने पिता से कोई धनराशि पाने के अधिकारी नहीं हैं। आप के भाई और उस के बेटे को भी ऐसा कोई अधिकार नहीं है। बस आप के पिता उन की इच्छा से यह सब कर रहे हैं, और वे कर सकते हैं।
आप के पिता के जीवनकाल के बाद यदि आप के पिता ने अपनी संपत्ति की वसीयत नहीं की हो तो आप हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उन की संपत्ति के हिस्से के अधिकारी हो सकते हैं।
क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है?
समस्या –
हाथरस, उत्तर प्रदेश से प्रवीण पाठक ने पूछा है –
क्या शादी के बाद लड़की अपने पापा के घर रह सकती है? यदि हाँ तो किस आधार पर?
समाधान-
आप का प्रश्न बिना किसी संदर्भ के है। इस कारण इस प्रश्न के अनेक आयाम हो सकते हैं। एक संदर्भ इस का यह हो सकता है कि लड़की पिता के घर रहना चाहती है और पिता उसे अपने घर रखने से इन्कार कर रहा है। तब प्रश्न यूँ होता कि क्या एक लड़की को विवाह के उपरान्त भी अपने पिता के घर रहने का अधिकार प्राप्त है? दूसरा संदर्भ यह हो सकता है कि एक लड़की विवाह के उपरान्त भी अपने पिता के साथ रह रही है और उस के पिता के साथ रहने पर उस के पति को आपत्ति हो सकती है। तब प्रश्न यह होगा कि पत्नी क्या पति को त्याग कर पिता के घर रह सकती है? तीसरा संदर्भ यह हो सकता है कि पति और पिता दोनों को लड़की के पिता के साथ रहने पर आपत्ति नहीं है लेकिन पिता के साथ रह रहे भाइयों को आपत्ति हो सकती है। तब प्रश्न यह हो सकता है कि विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्री को अपने घर रखने का अधिकार है क्या? हम यहाँ इन तीनों ही प्रश्नों के संदर्भ में विचार करेंगे। लेकिन कुछ प्रश्न हम यहाँ और आप के विचारार्थ प्रस्तुत करना चाहते हैं।
क्या विवाह के उपरान्त भी एक लड़का अपने पिता के घर रह सकता है? क्या उसे ऐसा अधिकार है? क्या वह अपनी पत्नी को छोड़ कर पिता के घर रह सकता है? क्या विवाह के उपरान्त भी पिता को पुत्र को अपने घर रखने का अधिकार है? हमें आश्चर्य नहीं है कि इस तरह के प्रश्न लड़कों/पुरुषों के संबंध में आम तौर पर नहीं पूछे जाते। यहाँ तक कि इस तरह के प्रश्न किसी के मस्तिष्क में उत्पन्न ही नहीं होते। उस का मुख्य कारण है कि हमारा समाज ही नहीं वरन् दुनिया भर का समाज पुरुष प्रधान समाज है। इस समाज की सामान्य मान्यता है कि विवाह के उपरान्त स्त्री को उस के पति के घर जा कर रहना चाहिए। पिता के घर और संपत्ति पर विवाह के उपरान्त स्त्री का कोई अधिकार नहीं है। वर्तमान पुरुष प्रधान समाज स्त्री को मानुष ही नहीं समझता। वह समझता है कि स्त्री एक माल है। वह समझता ही नहीं है अपितु उस के लिए इस शब्द का प्रयोग भी करता है।
लेकिन समाज में उपस्थित जनतांत्रिक, समतावादी, साम्यवादी और स्त्री मुक्ति आंदोलन ने स्थिति को बदला है। इस बदलाव का परिणाम यह हुआ कि भारत के संविधान ने स्त्री और पुरुष को समान दर्जा दिया। उस के बाद कानूनों के बदलने का सिलसिला आरंभ हुआ। एक हद तक कानून बदले गए। लेकिन आज भी कानून के समक्ष स्त्री को पुरुष के समान दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है। हम आप के प्रश्न के संदर्भों में कानूनी स्थिति पर विचार करते हैं।
भारत में प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। इस कारण से प्रत्येक वयस्क स्त्री या पुरुष जहाँ चाहे वहाँ निवास कर सकती/सकता है चाहे उस का विवाह हुआ है या वह अविवाहित है। यदि कोई चाहता/चाहती है कि वह पिता के घर रहे और यदि पिता को आपत्ति नहीं है तो वह पिता के घर रह सकता/सकती है। पिता के साथ रहने में किसी तरह की कोई बाधा नहीं है। यदि पिता के साथ रहने वाले व्यक्ति का पति या पत्नी भी उस के साथ रह रहा/रही है तो कोई संकट उत्पन्न नहीं होगा। पिता के घर पुत्र का रहना तो सामान्य बात है और अक्सर ऐसे पुत्र के साथ पत्नियाँ भी बहुधा रहती ही हैं। समस्या तब उत्पन्न होती है जब एक स्त्री विवाह के उपरान्त उस के पिता के साथ रहती है। अब यदि उस का पति भी उस के साथ आ कर रहने लगे और स्त्री के पिता को कोई आपत्ति नहीं हो तो कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं होती। बस इतना मात्र होता है कि समाज यह कहता है कि वह घर जमाई बन गया है। समाज इसे निन्दा की बात समझता है। पर यह भी अक्सर होता है और सामान्य बात है।
लेकिन यदि कोई स्त्री अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता के साथ रहती है तो कानूनी समस्या उत्पन्न होती है। प्रत्येक विवाहित स्त्री व पुरुष का यह दायित्व है कि वह अपने जीवनसाथी के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करे। लेकिन इस से उस निर्वहन में बाधा उत्पन्न होती है। पति यह कह सकता है कि पत्नी सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह नहीं कर रही है। वह कानून के समक्ष पत्नी से सामान्य दाम्पत्य जीवन का निर्वाह करने की डिक्री प्राप्त करने का आवेदन प्रस्तुत कर सकता है। न्यायालय इस आवेदन को स्वीकार कर पत्नी को पति के साथ सामान्य दाम्पत्य जीवन निर्वाह करने का आदेश डिक्री के माध्यम से दे सकता है। लेकिन न्यायालय ऐसा तभी कर सकता है जब कि पत्नी के पास अपने पति से अलग निवास करने का उचित कारण उपलब्ध न हो। पत्नी को ऐसा आदेश दे दिए जाने पर भी यदि पत्नी पति के साथ निवास नहीं करना चाहती है तो ऐसे आदेश की जबरन पालना नहीं कराई जा सकती है। ऐसे आदेश का प्रभाव मात्र इतना होता है कि पति को पत्नी से विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने का आधार प्राप्त हो जाता है।
एक और परिस्थिति यह हो सकती है कि पिता विवाहित पुत्री को अपने साथ रखना चाहता है लेकिन पिता के पुत्र आपत्ति करते हैं। इस से कोई कानूनी समस्या उत्पन्न नहीं होती। क्यों कि भाइयों को ऐसी आपत्ति करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।
एक अन्य स्थिति यह हो सकती है कि विवाहित पुत्री पिता के घर रहना चाहती है लेकिन पिता इस के लिए तैयार नहीं है। वैसी स्थिति में पुत्री को यह अधिकार नहीं कि वह पिता के घर निवास कर सके। यदि विवाहित पुत्री असहाय है और उस का पति भी उस का भरण पोषण करने व आश्रय देने में सक्षम नहीं है तो वह पिता से भरण पोषण व आश्रय की मांग कर सकती है और इस के लिए न्यायालय में आवेदन प्रस्तुत कर सकती है। न्यायालय पिता की क्षमता को देख कर उचित आदेश प्रदान कर सकता है।
सब से विकट स्थिति तो तब उत्पन्न होती है जब किसी स्त्री को अपने पति का आश्रय भी नहीं मिलता और पिता भी आश्रय देने को तैयार नहीं होता। वैसी स्थिति में यदि स्त्री स्वयं अपना भरण पोषण करने में समर्थ न हो तो उसे दर दर की ठोकरें खाने को विवश होना पड़ता है। इस कारण यह जरूरी है कि प्रत्येक स्त्री अपने पैरों पर खड़ी हो और अपना भरण पोषण करने में सक्षम बने। स्त्री मुक्ति का एक मात्र उपाय यही है कि स्त्रियाँ अपने पैरों पर खड़ी हों।
पिताजी भाइयों को संपत्ति दे कर मुझे घर से बेदखल कर रहे हैं …
समस्या-
तिलौतू (सासाराम) बिहार से श्याम कुमार पूछते हैं-
हम तीन भाई हैं। दो छोटे भाई केन्द्रीय सरकार की नौकरी में है और मैं मजदूरी करता हूँ। दोनों भाई पिताजी से सारी संपत्ति अपने और अपनी पत्नियों के नाम लिखा चुके हैं और मुझे घर से बेघर कर रहे हैं। मैं क्या कर सकता हूँ?
समाधान-
यदि आप के पिताजी की संपत्ति उन की स्वयं की आय से अर्जित की हुई है तो उस पर आप के पिताजी का पूरा अधिकार है। उस संपत्ति को वे स्वयं बेच सकते हैं, किसी को भी दान कर सकते हैं या किसी के नाम हस्तांतरित कर सकते हैं। वे उस संपत्ति को वसीयत भी कर सकते हैं। उन की स्वयं द्वारा अर्जित संपत्ति किसे प्राप्त होगी यह आप के पिताजी की इच्छा पर निर्भर करता है। यदि आप अपने पिताजी से संपत्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो उन्हें प्रसन्न कर के उन की इच्छा से ही प्राप्त कर सकते हैं।
लेकिन यदि संपत्ति आप के पिता को उन के पिता, दादा या परदादा से प्राप्त हुई है तो वह पुश्तैनी संपत्ति है। उस में आप का जन्म से हिस्सा है आप भी उस में एक भागीदार हैं। वैसी स्थिति में आप अपने पिता से कह सकते हैं कि इस पुश्तैनी संपत्ति में मेरा भी हिस्सा है मुझे दिया जाए। यदि वे देने को तैयार नहीं हैं तो आप विभाजन की मांग कर सकते हैं विभाजन के लिए भी तैयार न होने पर आप विभाजन के लिए न्यायालय में दीवानी वाद प्रस्तुत कर सकते हैं। लेकिन वाद प्रस्तुत करने के पहले आप को किसी स्थानीय दीवानी वकील से सलाह कर के उस के माध्यम से ही अपना वाद न्यायालय में दाखिल करना चाहिए।
पिता संपत्ति के विक्रय पर क्या कोई पुत्र आपत्ति कर सकता है?
समस्या-
मैं ने जिस व्यक्ति से खेत खरीदा है उस का पुत्र कह रहा है कि सौदा निरस्त करो नहीं तो वह अदालत में मुकदमा कर देगा। लेन-देने हो चुका है और विक्रय पत्र का पंजीयन भी हो चुका है। क्या मेरा कोई नुकसान हो सकता है?
-मनीष गिरी, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश
समाधान-
जिस व्यक्ति के नाम वह जमीन है जिसे आप ने खरीदा है तो दूसरा कोई भी व्यक्ति चाहे वह विक्रेता का पुत्र हो या अन्य कोई निकट संबंधी उसे विक्रय पर आपत्ति उठाने का कोई अधिकार नहीं है। पहले यह आपत्ति उठायी जाती थी कि जमीन पुश्तैनी है और उस में पुत्रों का भी अधिकार/हिस्सा है। लेकिन पुश्तैनी संपत्ति में केवल उन्हीं पुत्रों को हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है जिन का जन्म 17 जून, 1956 के पूर्व हुआ है।
दिनांक 17.06.1956 को हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी हो गया था। इस अधिनियम को प्राचीन प्रचलित हिन्दू विधि पर अधिप्रभावी घोषित किया गया है। इस अधिनियम की धारा-8 के अनुसार उत्तराधिकार केवल पुत्र को ही प्राप्त होता है न कि पुत्र के पुत्र को। इस तरह किसी भी पुत्र को पुश्तैनी संपत्ति में उस के पिता के जीवित रहते कोई अधिकार या हिस्सा प्राप्त नहीं होता।
विक्रेता का पुत्र आप को मात्र धमकी दे रहा है। आप उस की परवाह नहीं करें। यदि वह कोई कानूनी कार्यवाही भी करेगा तो वह चलने लायक नहीं होगी। ऐसी कार्यवाही में आप को प्रतिवाद तो करना होगा, किन्तु आप को कोई हानि नहीं होगी।