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बालक और उस की संपत्ति का संरक्षक नियुक्त करने हेतु जिला कलेक्टर का आवेदन।
सुरेन्द्र कुमार ने चिड़ावा, राजस्थान समस्या भेजी है कि-
गार्जियन्स एण्ड वार्ड एक्ट 1890 की धारा 8 बी के अन्तर्गत अवयस्क बच्चे के लिए जिसे गोद लेने वाले माँ और बाप दोनों की मृत्यु हो गई है उस की संपत्ति का कस्टोडियन और सरंक्षक तथा अवयस्क स्वयं का संरक्षक नियुक्त करने का प्रार्थना पत्र जिला कलेक्टर संबंधित जिले जहाँ उसकी संपत्ति है उसके जिला एवं सत्र न्यायाधीश को किन परिस्थितियो में भिजवा सकता है? ऐसा करने के लिए नाबालिग को स्वयम् कलेक्टर को आवेदन करना होगा या अन्य व्यक्ति द्वारा कलेक्टर को उस की सूचना देने पर सूचना के आधार पर भी कलेक्टर एक व्यक्ति को कस्टोडियन एवं संरक्षक नियुक्त करने का पत्र धारा 10(2) के तहत भिजवा देना चाहिए?
समाधान-
संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम की धारा-8 व 10 में जो प्रावधान दिए गए हैं उन में एक जिला कलेक्टर को यह सुविधा दी गयी है कि किसी बालक और उस की संपत्ति का संरक्षक नियुक्त करने हेतु वह आवेदन कर सकता है। पूरा कानून इस मामले में मौन है कि वह ऐसा कब कर सकता है? वैसी स्थिति में यह कलेक्टर की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह स्वतः ऐसा कर सकता है या किसी भी व्यक्ति अथवा स्वयं बालक के आवेदन पर ऐसा कर सकता है। लेकिन कलेक्टर को ऐसा आवेदन जिला न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करने को बाध्य नहीं किया जा सकता।
इस तरह के मामलों में कलेक्टर के कर्तव्यो को निर्धारित करने वाला कोई निर्णय किसी न्यायालय का उपलब्ध नहीं है। किन्तु इस कानून से यह स्पष्ट है कि जब भी कलेक्टर को यह जानकारी हो कि उस के जिले में कोई बालक और उस की संपत्ति का कोई वैध संरक्षक नहीं है तो उस की जिम्मेदारी है कि ऐसा प्रार्थना पत्र वह जिला न्यायाधीश को प्रस्तुत करे।
इस तरह के मामलों में बेहतर है कि जो व्यक्ति स्वयं स्वेच्छा से संरक्षक बनना चाहता है वह स्वयं ही ऐसा आवेदन प्रस्तुत करे। राजस्थान में अब ऐसा आवेदन जिला न्यायालय के स्थान पर परिवार न्यायालय को प्रस्तुत किया जानि चाहिए।
मकान आप के स्वामित्व का है, आप पिता को उसे खुर्द बुर्द करने से रोक सकते हैं।
भवेत् ने महोबा, उत्तर प्रदेश से समस्या भेजी है कि-
हमारा जो नया मकान है वो मेरे और मेरे छोटे भाई के नाम है लेकिन उस में पिता जी का नाम संरक्षक के तौर पर डाला हुआ है। ये मकान उन्हीं के पैसों से बनाया हुआ है। मेरी शादी हो चुकी है मेरी शादी डरा के पैसों की धौंस दिखा के और इमोशनल ब्लैकमेल करके हुई है लेकिन मैं अभी भी बेरोजगार हूँ। जब मकान कि रजिस्ट्री हुई थी तब छोटा भाई क़ानूनी तौर पे नाबालिग था लेकिन अब बालिग़ है मेरी समस्या ये है कि पिता जी अपनी गलत आदतों की वजह से नए मकान की लोन लेते जा रहे हैं और कहीं वो पैसा लुटाते जा रहे हैं। इस के पहले जो दूसरा मकान था वो मकान संयुक्त तौर पर था उसमें दो परिवार रहते थे उस मकान में बीच में कोई दीवार नहीं थी वो तो उन्होंने अपनी गलत आदतों की वजह से उन्हीं को दे ही दिया है। अब उस पर हमारा अधिकार नहीं है। अब मेरी समस्या ये है कि क्या पिता जी इस मकान को भी इसी तरह किसी को दे देंगे और मैं मेरी वाइफ, मेरा छोटा भाई इसी तरह देखते रह जायेंगे और बाद में दर दर भीख मांगेगे या कोई एक्शन भी ले पाएंगे।
समाधान-
आप की समस्या आप का चुप रहना, कोई कार्यवाही नहीं करना है। आप ने खुद कहा है कि नया मकान आप के व आप के भाई के नाम है, केवल संरक्षक के स्थान पर आप के पिताजी का नाम अंकित है। आप दोनो बालिग हो चुके हैं, वैसी स्थिति में संरक्षक का कोई अर्थ नहीं रह जाता है। उक्त मकान आप दोनों की संयुक्त संपत्ति है तथा आप के पिता जी को उक्त मकान को रहन रख कर या उस की सीक्योरिटी देते हुए कर्ज लेने का कोई अधिकार नहीं है। यदि उन्होंने ऐसा किया भी है तो वह अनधिकृत है। इस से कर्ज लेने वाले को परेशानी हो सकती है, आप को नहीं।
वास्तव में आप को सन्देह इस कारण है कि वह मकान पिताजी का बनाया हुआ है। लेकिन इस से कोई फर्क नहीं पड़ता। बेनामी ट्रांजेक्शन्स प्रोहिबिशन्स एक्ट 1988 के अनुसार जो संपत्ति जिस के नाम खऱीदी गई है वह उसी की मानी जाएगी। उक्त मकान आप व आप के भाई का है इस कारण वह आप का ही माना जाएगा न कि आप के पिताजी का। आप के पिताजी किसी भी कानूनी कार्यवाही में उक्त मकान को अपना नहीं बता सकते। यदि बताते हैं तो भी उन का यह कथन नहीं माना जाएगा।
सब से पहले तो आप यह कर सकते हैं कि किसी स्थानीय वकील की मदद से स्थानीय समाचार पत्र में एक नोटिस प्रकाशित करवा दें कि उक्त मकान आप दोनों भाइयों की संपत्ति है तथा आप दोनों के अतिरिक्त किसी को भी उक्त मकान को विक्रय करने, बंधक करने या उस की सीक्योरिटी देने का अधिकार नहीं है। यदि किसी अन्य ने उक्त मकान के संबंध में किसी तरह का कोई विलेख निष्पादित किया हो तो उस का विधि के समक्ष कोई मूल्य नहीं है। इस से आप के पिताजी भी सावधान हो जाएंगे और उक्त मकान को इधर उधर करने का प्रयत्न नहीं करेंगे।
यदि आप के पिता किसी तरह से उक्त मकान को खुर्द बुर्द करने के प्रायस में हों तो आप दीवानी न्यायालय में उन के विरुद्ध स्थाई निषेधाज्ञा का वाद प्रस्तुत कर अस्थाई निषेधाज्ञा का आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं और उस मकान को खुर्द बुर्द करने पर रोक लगवा सकते हैं। यदि आप चाहते हैं कि आप का व आप के भाई का हिस्सा उक्त मकान में चिन्हित हो जाए या उस का बँटवारा हो जाए तो आप उक्त मकान के बँटवारे का वाद भी दीवानी न्यायालय में प्रस्तुत कर सकते हैं तथा उक्त मकान के हस्तान्तरण पर रोक लगाने के लिए अस्थाई निषेधाज्ञा का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकते हैं।
बालक की अभिरक्षा के निर्णय में उस का हित सर्वोपरि
न्यायालयों के समक्ष अनेक बार माता, पिता और संरक्षक के बीच यह प्रश्न उठ खड़ा होता है कि बालक किस की अभिरक्षा में रहे? ऐसे प्रश्नों पर निर्णय देने में सर्वोपरि तथ्य यह है कि बालक का हित किस के संरक्षण में रहने पर साध्य होगा। सर्वेोच्च न्यायालय ने श्यामराव मारोती कोरवाटे बनाम दीपक किसनराव टेकम के मुकदमे में यही व्यवस्था प्रदान की है।
उक्त प्रकरण में दीपक किसनराव का विवाह कावेरी के साथ 2002 में सम्पन्न हुआ था। 2003 में उस ने एक बालक विश्वजीत को जन्म दिया। लेकिन बालक के जन्म के उपरान्त अत्यधिक रक्तस्राव के कारण कावेरी का देहान्त हो गया। माता के देहान्त के उपरान्त बालक उस की नाना श्यामराव मारोती के संरक्षण में पलता रहा। दीपक किसनराव ने दूसरा विवाह कर लिया जिस से उसे एक और पुत्र का जन्म हुआ। इस बीच अगस्त 2003 में बालक के नाना ने बालक का संरक्षक नियुक्त करने के लिए जिला न्यायालय को आवेदन किया जब कि पिता ने बालक की अभिरक्षा प्राप्त करने के लिए। जिला जज ने दोनों प्रार्थना पत्रों पर एक ही निर्णय देते हुए बालक के 12 वर्ष का होने तक की अवधि के लिए नाना को उस का संरक्षक नियुक्त किया। न्यायालय ने यह भी निर्णय दिया कि तब तक पिता को बालक से मिलने की स्वतंत्रता होगी। जिला न्यायाधीश ने पिता के आवेदन को निरस्त करते हुए आदेश दिया कि वह बालक के 12 वर्ष का होने के पश्चात बालक की अभिरक्षा के लिए पुनः आवेदन कर सकता है।
पिता ने जिला न्यायाधीश के निर्णय को मुम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर बैंच के समक्ष नअपील प्रस्तुत कर चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने पिता की अपील को स्वीकार करते हुए बालक की अभिरक्षा पिता को देने का निर्णय प्रदान किया। नाना ने उच्च न्यायालय के इस निर्णय को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील प्रस्तुत की। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि पिता के प्राकृतिक संरक्षक होते हुए भी बालक के हितों को देखते हुए न्यायालय किसी अन्य व्यक्ति को संरक्षक नियुक्त कर सकता है। इस मामले में जन्म से ही बालक नाना के साथ निवास कर रहा है और उस का लालन-पालन सही हो रहा है उस की शिक्षा भी उचित रीति से हो रही है ऐसी अवस्था में जिला जज द्वारा नाना को 12 वर्ष की आयु तक के लिए बालक का संरक्षक नियुक्त किया जाना विधिपूर्ण था।
सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि बालक 12 वर्ष की आयु तक नाना के संरक्षण में ही रहेगा। इस अवधि में पिता बालक के विद्यालय का दो सप्ताह से अधिक का अवकाश होने पर सात दिनों तक के लिए पिता बालक को अपने पास रख सकेगा। जिस के दिनों की पूर्व सूचना पिता बालक के नाना को देगा। इस के अतिरिक्त माह में दो बार अवकाश के दिन शनिवार रविवार को या किसी अन्य त्योहारी अवकाश के दिन नाना बालक को सुबह से शाम तक उस के पिता के पास रहने देगा। इस बीच पिता चाहे तो बालक के स्कूल की फीस, ड्रेस, पुस्तकें व भोजन आदि का खर्च उठा सकता है। बालक 12 वर्ष की आयु का होने के उपरान्त पिता उस की अभिरक्षा प्राप्त करने के लिए जिला न्यायाधीश के समक्ष फिर से आवेदन कर सकेगा।
यदि पिता के संरक्षण में पुत्र का वर्तमान और भविष्य सुरक्षित हो तो उसे पुत्र की अभिरक्षा (Custody) प्राप्त करने का पूरा अधिकार है
अज्ञात माता-पिता की संतान को गोद देने की प्रक्रिया
सभी पाठकों को पता होगा कि कुछ दिन पहले लवली कुमारी ने एक बालक का उल्लेख किया था जिसे कोई मजबूर महिला अस्पताल में छोड़ कर चली गई थी। उन्हों ने इस बालक को गोद लेने के लिए आग्रह किया था, और फिर सूचना दी थी कि उसे गोद लेने वाले माता-पिता मिल गए हैं।
आज उन्हों ने पूछा …
दिनेश जी, मुझे पूछना था कि बच्चे को गोद देने के लिए ..किन किन दस्तावेजों की आवश्यकता पड़ेगी और ..कौन गोद दे सकता है? ..प्रसंग तो आपको पता है ही..
यदि गोद दिए जाने वाला बालक हिन्दू है तो उस पर हिन्दू दत्तक एवं भरण-पोषण अधिनियम (दी हिन्दू एडॉप्शन्स एणड मेंटीनेंस एक्ट, 1956) की धारा 9 (4) प्रभावी होगी। इस धारा के अनुसार जब किसी बालक के माता पिता दोनों की मृत्यु हो गई हो, या उन्होंने अंतिम रूप से संन्यास ले लिया हो, या बालक को त्याग दिया हो, या उन्हें किसी न्यायालय से विकृत चित्त घोषित कर दिया गया हो, या जहाँ बालक के माता-पिता की जानकारी न हो, वहाँ न्यायालय की अनुमति से उस बालक का संरक्षक उसे गोद दे सकता है। गोद लेने वाले माता-पिता दोनों की सहमति होना आवश्यक है।
अब यहाँ यह प्रश्न नया आ गया है कि ऐसे बालक का जिस के माता-पिता अज्ञात हों उस का संरक्षक कौन होगा?
संरक्षक एवं प्रतिपाल्य अधिनियम के अंतर्गत संरक्षक की परिभाषा अत्यंत व्यापक है। उस में कहा गया है कि जो व्यक्ति बालक की सुरक्षा कर रहा है वह भी संरक्षक है। लेकिन जहाँ गोद देने का मामला हो वहाँ कानूनी रूप से जिला न्यायाधीश या परिवार न्यायालय का न्यायाधीश द्वारा नियुक्त करा लेना उचित है। इस के लिए वह व्यक्ति जो स्वयं को उस बालक का संरक्षक होने का दावा करता है वह आवेदन कर सकता है अथवा जिले का कलेक्टर आवेदन कर सकता है।
यह प्रक्रिया जटिल लग सकती है पर बालक के भविष्य के लिए उस का कानूनी संरक्षक नियुक्त करा लेना आवश्यक है। लवली जी इस मामले में स्थानीय मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट जो बालक न्यायालय का पीठासीन अधिकारी और बालकों के मामलों में निर्णय लेने का अधिकारी है से स्वयं व्यक्तिगत रूप से मिल कर सलाह ले लें। उन से या उन के कार्यालय से पूरी जानकारी और मदद मिल जाएगी। इस के लिए लवली जी स्थानीय बार ऐसोसिएशन (अधिवक्ता संघ) के अध्यक्ष या सचिव से मिल कर उन की मदद भी ले सकती है वे अवश्य ही उन की मदद करेंगे।