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विक्रय निरस्त करने, विभाजन और पृथक हिस्से के कब्जे का वाद
समस्या-
कल्पना ने फरीदाबाद, हरयाणा से समस्या भेजी है कि-
मेरे पिताजी ने अपनी पैतृक जमींन अपनी पुत्र वधू के नाम 6 वर्ष पूर्व बेच दी। पिताजी को किसी प्रकार की आर्थिक आवश्यकता नहीं थी तथा पुत्र वधू किसी प्रकार की आय नहीं करती थी। अब मेरे पिताजी और मेरा बड़ा भाई मुझे, मेरे बच्चों व मेरे पति का मान सम्मान नहीं करते व हमें गाली-गालोंज भी करते है। .क्या अब मैं अपना हक/ ज़मीन वापस ले सकती हूँ? समाज में बेटी के मान-सम्मान का भी प्रश्न है। कृपया राह सुझाएँ।
समाधान-
आप पहले जाँच लें कि जमीन पैतृक ही है। कौन सी जमीन पैतृक है जिस में संतानों का जन्म से अधिकार होता है इस पर तीसरा खंबा पर पहले पोस्टें लिखी जा चुकी हैं, उन्हें सर्च कर के पढ़ लें। लड़कियों को 2005 से पैतृक संपत्ति में अधिकार मिला है। आप की जमीन की बिक्री बाद में हुई है। इस तरह आप जमीन के विक्रय को चुनौती दे सकती हैं। इस मामले में लिमिटेशन की बाधा भी नहीं आएगी। यदि पिता किसी संतान का का हक किसी और को दे देता है तो वाद 12 वर्ष तक की अवधि में किया जा सकता है। आप को चाहिए कि आप विक्रय पत्र निरस्त करवाने तथा संपत्ति का बँटवारा कर आप का हिस्सा अलग करते हुए उस का पृथक कब्जा आप को देने का वाद दीवानी न्यायालय में संस्थित करें।
पुश्तैनी संपत्ति जिस में संतानों का हक है, पिता द्वारा विक्रय किया जाना वैध नहीं है।
समस्या-
भोजपाल ने ग्राम पोस्ट धावरभाटा, मगरलोड, छत्तीसगढ़ समस्या भेजी है कि-
मैं एक बहुत बड़ी समस्या से जूझ रहा हूँ। मेरे पिता के नाम की खेती की जमीन जो पैतृक थी उसे कुछ लोगों के द्वारा मेरे पिता की मानसिक स्थिति का फायदा उठकार बंधक की बात कहकर मेरे तथा परिवार के सदस्यों की बिना जानकारी व सहमति के रजिस्ट्री पत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए गए हैं। जिसकी जानकारी मुझे पंचायत के द्वारा प्रमाणीकरण सूचना पत्र प्रदान करने पर हुयी। उक्त रजिस्ट्री पत्र में 1.16 हेक्टेयर का प्रतिफल राशि को चेक के माध्यम से 1387000 रूपये देना दर्शाया गया है जो पूर्णतः कूटरचित व फर्जी है किसी प्रकार का चेक नहीं दिया गया है, न ही उनके खाते में पैसा डाला गया है। इसकी जानकारी होने पर मैंने पुलिस अधीक्षक कार्यालय में लिखित शिकायत की थी जिस पर प्रशासन ने चेक संबंधी कोई जाँच नहीं की और रजिस्ट्री पत्र को वैधानिक बताकर न्यायालय जाने हेतु पुलिस हस्तक्षेप अयोग्य पत्र दे दी। इस संदर्भ में मैंने पुलिस को वैधानिक बताये जाने का आधार व चेक संबंधी जानकारी आरटीआई के माध्यम से मांगा लेकिन मुझे कोई संतोसप्रद जानकारी नहीं मिली। मैंने कलेक्टर महोदय को पुनः जाँच के लिए शिकायत आवेदन किया। पुनः जाँच में अनावेदक क्रेता ने यह ब्यान दिया कि उसने 6 लाख रूपये में ये जमीन खरीदी है तथा पैसा नगद देना बताया। चेक के माध्यम से नहीं। जबकि रजिस्ट्री पत्र में प्रतिफल राशि चेक के माध्यम से 1387000 रूपये मिलना दर्शया है जो कि कूटरचित है। लेकिन पुलिस विभाग द्वारा इस तरीके से धोखाधड़ी करने वालों पर अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गयी। सर मैं बहुत परेशान हूँ। मेरे पिता के नाम की सभी जमीन को धोखे से रजिस्ट्री करा लिए हैं क्योकि मैं, मेरा भाई और बहन बाहर पढाई करते थे इसलिए इसकी जानकारी हमें नहीं हुई। यदि जमीन उनके नाम हो गयी तो हम लोग रस्ते पर आ जायेंगे, मैं पूरी तरह से मानसिक रूप से परेशान हूँ और आर्थिक रूप से कमजोर भी। प्लीज सर मुझे सुझाव दे की मैं क्या करूँ?
समाधान-
पुलिस ने यदि जाँच करके मामले को पुलिस हस्तक्षेप योग्य नहीं माना है तो आप को चाहिए कि आप मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत करें। रजिस्ट्री की प्रमाणित प्रति प्राप्त करें तथा कलेक्टर के आदेश से जो जांच हुई है उस की तथा उस जाँच में दिए गए अनावेदक क्रेता के बयान की प्रतिलिपियाँ प्राप्त कर उन्हें भी परिवाद के साथ प्रस्तुत करें। इस के लिए आप को स्थानीय किसी वकील की सेवाएँ प्राप्त करनी होंगी।
इस के अलावा समय रहते विक्रय पत्र की रजिस्ट्री को निरस्त करने के लिए आप को दीवानी वाद प्रस्तुत करना होगा। क्यों कि कोई भी पिता पुश्तैनी / सहदायिक संपत्ति में से अपनी संतानों के भाग को विक्रय नहीं कर सकता। इस आधार पर यह रजिस्ट्री निरस्त हो जाएगी। यही आपत्ति आप उक्त भूमि के राजस्व रिकार्ड के नामान्तरण की कार्यवाही में प्रस्तुत कर सकते हैं।
सहदायिक संपत्ति की आय से निर्मित संपत्ति भी सहदायिक है।
समस्या-
राहुल ने अजमेर राजस्थान से पूछा है-
मेरे दादा जी के दो लड़के और तीन लड़कियाँ हैं। दादा जी के पास जो जमीन थी उसमें आधी पुस्तैनी थी और आधी स्वअर्जित थी।| दादा जी ने दोनों लड़को के बीच मे मार्च 1998 मे आपसी राजीनामे से जमीन का बँटवारा एक सादे कागज पर किया जिसमें दोनों लड़को का हिस्सा रखा और लड़कियों का हिस्सा नहीं रखा। और इस कागज पर मेरे दादा जी के और उनके दोनों लड़को और दो गवाहों के हस्ताक्षर हैं| और इस बटवारे के अनुसार जो दादा जी की पुस्तैनी जमीन थी वो उनके बड़े लड़के को दी और जो स्वअर्जित थी उसको छोटे लड़के को दी। और इस बटवारे के अनुसार ही दोनों भाई कब्ज़ा करके कास्त करने लग गए। फिर लगभग 3 माह बाद ही मेरे दादा जी को उनके छोटे बेटे ने बातो मे बहकाकर उस स्वअर्जित जमीन की वसीयत करा कर उसको रजिस्टर्ड करवा लिया। इस बात से उनका बड़ा लड़का (मेरे पिताजी) बिलकुल अनजान था। मेरे दादा जी का देहांत 2012 में होने के बाद इस बात का पता चला। अब मेरे दादा जी के देहांत के पश्चात मेरे पिताजी के हिस्से की जमीन में दूसरे भाई और तीनो बहनो का नाम भी लग गया है। जबकि मेरे चाचा के हिस्से में वसीयत के अनुसार केवल मेरे चाचा का नाम ही लगा है। अब मेरा चाचा मेरे पिताजी के हिस्से की जमीन में से भी बँटवारा करना चाहता है। मेरे पापा के पास केवल सबूत के रूप में वो सादा कागज ही है। अब मेरे पापा को अपना हिस्सा पाने के लिए क्या करना होगा? क्या मेरे बुआजी (पिताजी की बहने) उनका हिस्सा मेरे पापा के पक्ष में कर सकती हैं? और अगर ऐसा हो सकता हैं तो इसमें लगभग कितना खर्च आएगा | कागज के बटवारे के अनुसार मेरे पिताजी के हिस्से में लगभग 22 बीघा जमीन है। प्लीज मेरे पिताजी के साथ हो रहे इस अन्याय से बचाने का रास्ता बताइये।
समस्या-
हमारा उत्तराधिकार का कानून ही न्याय की अवधारणा के विपरीत है। इसी कारण अक्सर लोगों के साथ अन्याय होता है और वे न्याय प्राप्त करने के लिए सारा जीवन अदालतों के चक्कर काटते रहते हैं। जो पुश्तैनी जमीन है उस में जन्म से ही पुत्रों का अधिकार बन जाता था। जब कि पुत्रियों का भरण पोषण के अतिरिक्त कोई अधिकार नहीं होता था। फिर उस में पुत्रियों को भी उत्तराधिकार प्राप्त होने लगा। 2012 में जब आप के दादा जी का देहान्त हुआ तब पुत्रियों को भी जन्म से ही पुश्तैनी संपत्ति में वही अधिकार प्राप्त हो चुका था जो कि पुत्रों को है। इस कारण से पुश्तैनी संपत्ति में तो दोनों पुत्रों और पुत्रियों को समान अधिकार प्राप्त है। उस के सीधे सीधे पाँच हिस्से होंगे। तीन पुत्रियों के और दो पुत्रों का। 1/5 हिस्सा आप के चाचा का होगा और इतना ही आप के पिता का और आप की बुआओं के। यदि तीनों बुआएँ अपना हिस्सा आप के पिता जी को दे दें तो उन के पास पुश्तैनी जमीन का 4/5 हिस्सा हो सकता है।
सहदायिक संपत्ति की आय से निर्मित संपत्ति भी सहदायिक है। इस कारण स्वअर्जित भूमि पर यह आपत्ति उठायी जा सकती है कि आप के दादा जी के पास पुश्तैनी भूमि की आय के सिवा और कोई आय नहीं थी। स्वअर्जित भूमि उसी पुश्तैनी से हुई आय से खरीदी गयी। यदि कोई संपत्ति पुश्तैनी भूमि की आय से खरीदी जाती है तो वह भी पुश्तैनी ही होती है। इस तरह आप के दादा जी के पास कोई स्वअर्जित भूमि नहीं रह जाती है। आप के पिताजी को इसी तरह का प्रतिवाद अपने पक्ष में खड़ा करना होगा। आप के पिता जी के पास यदि पूरी भूमि का आधा हिस्सा है तो वे इस विवाद के चलते अपने कब्जे की भूमि पर काबिज रह सकते हैं। इस तरह के मुकदमे बहुत लंबे चलते हैं। लड़ने वाले थक जाते हैं और एक ही परिवार के होने के कारण किसी न किसी स्तर पर आपसी समझौता हो जाता है।
हमारी राय है कि आप इस मामले में किसी अच्छे स्थानीय वकील से राय कर के आगे बढ़ें। बहुत कुछ आप के वकील की काबिलियत और मेहनत पर ही आप की लड़ाई का परिणाम निर्भर करेगा।
पुश्तैनी संपत्ति में किसी को उस के हिस्से से बेदखल नहीं किया जा सकता।
राहुल ने संजय नगर, बरेली, उत्तर प्रदेश से पूछा है-
मेरे पिता की मृत्यु सन 2015 में हुई है और अब मेरी माँ मुझे अपनी पुश्तैनी चल-अचल सम्पत्ति से बेदखल करना चाहती है। जबकि मेरे दादा जी जिन्दा है और उन्होंने न ही कोई वसीयत बनाई है और न ही उन्होंने मेरे पिता के नाम कोई जमीन की है। मेरा मेरी मां से कोई झगड़ा नहीं है। मेरी माँ मेरी बहन के कहने पर ऐसा कर रही है हमारे परिवार में मेरी माँ, एक अविवाहित बहन, अविवाहित भाई, मैं स्वयं विवाहित हूँ। क्या मेरी माँ मुझे मेरी पुश्तैनी संपत्ति से बेदखल कर सकती है? कृपया कर मुझे समाधान अवश्य लिखे आपकी अति महान कृपा होगी।
समाधान-
बेदखल शब्द दखल से बना है। बेदखल करने का अर्थ है किसी के दखल को समाप्त करना। दखल शब्द का अर्थ संपत्ति के मामले में कब्जे से है न कि स्वामित्व से है।
पुश्तैनी या सहदायिक संपत्तियाँ बहुत कम अस्तित्व में रह गयी हैं। फिर भी जो भी पुश्तैनी और सहदायिक संपत्तियाँ हैं उन में किसी भी व्यक्ति को अधिकार कानून से मिलता है। सन्तान के जन्म लेते ही पुश्तैनी संपत्ति में उस का हिस्सा तय हो जाता है। इस हिस्से से उसे कोई भी बेदखल नहीं कर सकता है।
यदि कोई पुश्तैनी संपत्ति है और उस में आप के पिताजी का कोई हिस्सा था तो उस का एक हिस्सा उत्तराधिकार में आप की माँ को भी प्राप्त हुआ होगा। वे अधिक से अधिक उस मां के पास जो हिस्सा है उस में से आप के उत्तराधिकार से आप को वंचित कर सकती हैं जो उन का अधिकार है। लेकिन आप को प्राप्त हुए हिस्से से आप को आप की माँ ही नहीं कोई भी वंचित नहीं कर सकता।
पुश्तैनी संपत्ति में अधिकार से वंचित करने के विरुद्ध वाद।
समस्या-
अखिल ने रायपुर छत्तीसगढ़ से पूछा है-
कृपया हमारी शंका का समाधान करें? क्या (1) यदि संपत्ति दादाजी के पिता की संपत्ति को बेचकर खऱीदी गयी थी तब वह संपत्ति पुश्तैनी मानी जायेगी। जिस पर हम सभी भाई बहनों का बराबर-बराबर अधिकार होगा (2) यदि संपत्ति दादाजी ने अपनी कमाई से अर्जित की है तो क्या उस पर पिता का अधिकार है और वह चाहें तो उस संपत्ति को किसी को भी दे सकते हैं।
आशीष त्रिपाठी ने सिंगरौली मध्यप्रदेश से पूछा है-
क्या पिता के मृत्यु के पश्चात उस पुश्तैनी संपत्ति पर दावा किया जा सकता है जो पिता ने अन्य लोगों के नाम रजिस्ट्री कर चुका हो? यदि हाँ ! तो किस अधिनियम के तहत य
समाधान-
कोई भी संपत्ति पुश्तैनी या सहदायिक तभी मानी जाएगी जब कि वह 17 जून 1956 के पूर्व किसी पुरुष हिन्दू को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो। यदि आप के दादा जी के पिता के पास वह संपत्ति उक्त तिथि से पूर्व उत्तराधिकार में आयी थी तो पुश्तैनी थी और उसे विक्रय कर के खरीदी गयी संपत्ति भी पुश्तैनी होगी और हर संतान का जन्म से उस में अधिकार होगा।
यदि संपत्ति दादा जी ने अपनी कमाई से खरीदी है और उन का देहान्त 17 जून 1956 के पूर्व हो गया था तो आप के पिता के पास वह संपत्ति पुश्तैनी होगी और उस में आप सभी भाई बहनों का भी अधिकार होगा। आप के पिता आप को उस अधिकार से वंचित कर के संपत्ति का विक्रय नहीं कर सकते थे। इस विक्रय को विक्रय की तिथि से 12 वर्ष की अवधि (मियाद) में दीवानी वाद कर के निरस्त कराया जा सकता है। यदि विक्रय के समय आप नाबालिग थे तो आप बालिग होने की तिथि से मियाद में ऐसा दावा कर सकते हैं। यदि आप को इस विक्रय की जानकारी न थी तो आप को जानकारी प्राप्त होने से मियाद में ऐसा वाद संस्थित कर सकते हैं।
किसी भी व्यक्ति को पुश्तैनी संपत्ति में उस के अधिकार से वंचित किए जाने के वि्रुद्ध वाद संस्थित करने की मियाद 12 वर्ष है। इसे मियाद अधिनियम में मिलने वाली छूटों के आधार पर कुछ और बढ़ाया जा सकता है। इस मामले में आप को किसी स्थानीय वकील से सलाह करना चाहिए।
ससुर की संपत्ति में पुत्र वधु का कोई अधिकार नहीं।
सीमा ने छत्तीसग़ढ़ से पूछा है-
मेरे पति से मैं सात वर्ष से अलग हूँ। मेरा 14 वर्ष का पुत्र भी है। मेरा तलाक नहीं हुआ है। मेरे ससुर जी का देहान्त हो चुका है अब उन की संपत्ति का बंटवारा हो रहा है जिस में मेरे पति उन के बड़े भाई व दो बहनों को हिस्सा दिया जा रहा है। क्या इस संपत्ति में मेरा या मेरे पुत्र का भी अधिकार है?
समाधान-
आप के ससुर जी की संपत्ति का बंटवारा हो रहा है। यदि इस संपत्ति में कोई संपत्ति ऐसी हुई जो कि पुश्तैनी /सहदायिक संपत्ति है तो उस में आप के पुत्र का हिस्सा हो सकता है। ससुर की संपत्ति में केवल विधवा पुत्रवधु का अधिकार हो सकता है, आप के पति जब तक जीवित हैं आप का कोई हिस्सा नहीं हो सकता।
अपने पुत्र के अधिकार की जाँच करने के लिए आप को पहले पता लगाना होगा कि आप के पति के परिवार में कोई संपत्ति ऐसी है या नहीं जो कि पुश्तैनी हो। पुश्तैनी संपत्ति वही है जो कि 17 जून 1956 के पूर्व किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो और उस के पश्चात उत्तराधिकार में ही उस पुरुष के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हुई हो और उस के बाद उस उत्तराधिकारी के उत्तराधिकारियों को प्राप्त हुई हो।
संपत्ति में पुत्रवधु को उस का हिस्सा देना होगा।
दीपक शर्मा ने गोरखपुर उ.प्र. से पूछा है-
मेरे भाई की शादी 1996 में हुई। उनकी पत्नी 5 दिन घर में रहने के बाद अपने मैके चली गयी और जाते ही 498 ए और 125 के तहत जलाकर मारने और मेंटनेन्स के लिए दावा कर दिया। 498 ए में मेरे भाई, मेरी माँ, पत्नी, बहन, चाचा के नाम थे। 498 ए में हम 2 बार जमानत भी करवा चुके हैं, 2002 मे हम 125 मुक़दमा हार गये और 1996 से 500 रुपए प्रतिमाह खर्चा भी दे रहे हैं। तब से केस चल रहा है। जनवरी 2016 में सुलह की बात के तहत मेरे भाई की वाइफ को 1,50,000 रुपए भी दिया गया कि अब हमसे तुमसे कोई मतलब नहीं. और उसने 4 केस में सें दो में सरेणडर भी कर दिया। अभी कागज बन ही रहे थे कि तभी मेरे भाई की मृत्यु हो गयी। अब वो हमसे ज़मीन के लिए लड़ रही है तथा वो इस को लेकर बेचकर पैसा बनाना चाहती है। इस 20 साल में वो अपने मैके में रह रही थी मुक़दमे के अलावा हमसे कोई मतलब नहीं था। उसका यहाँ का कोई आईडी नहीं है। क्या वो पैतृक संपत्ति को पाने तथा सेल करने की अधिकारी है? यह संपत्ति मेरे और मेरे भाई की दिन रात काम करके हम ने हमारी माँ के नाम से खरीदा था। माँ भी नहीं है। प्लीज़ आप मुझे सही रास्ता बताएँ की हम इस संपत्ति को ग़लत हाथ में जाने से बचा लें।
समाधान-
आप ने जिस संपत्ति के बारे में चिन्ता व्यक्त की है उसे आप दोनों भाइयों ने दिन रात काम कर के खरीदा और माँ के नाम से। इस तरह यह संपत्ति पैतृक नहीं थी। इसे कभी भी पैतृक नहीं कहा जा सकता। यह माँ के नाम थी इस कारण उन की संपत्ति थी। उन के देहान्त के बाद हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उन के उत्तराधिकारियों की है।
आप की माँ के जितनी भी संतानें हैं (जिस में आप की बहनें भी सम्मिलित हैं) और यदि पिता जीवित हैं तो उन्हें मिला कर जितने उत्तराधिकारी हैं वे सब बराबर के अधिकारी हैं। जब आप की माताजी जीवित थीं और आप के भाई का पत्नी से विवाद चल रहा था। तभी संपत्ति में यह संकट उत्पन्न हो चुका था। आप की माताजी चाहती तो अपने जीवन काल में ही अपनी संपत्ति की वसीयत कर सकती थीं। उन की संपत्ति निर्वसीयती रह जाने से उस का विभाजन होगा जिस में एक हिस्सा आप के मृतक भाई का भी है। भाई की पत्नी चाहे दो दिन ही आप के परिवार में रही हो और उस के बाद केवल लड़ाई के सिवा कुछ भी न किया हो पर पति के जीवित रहते तलाक न होने से उत्तराधिकार के कानून के अनुसार वह एक हिस्सेदार है और उत्तराधिकार के कानून के अनुसार वह एक एक हिस्सेदार है और अपने पति का हिस्सा प्राप्त करने की अधिकारिणी है। आप न देंगे तो लड़ कर लेगी। इस से बेहतर है कि आपसी सहमति से उसे उस के हिस्से के रूप में कुछ दे दिया जाए और उस विभाजन का दस्तावेज तैयार कर लिया जाए। यदि अदालत में मुकदमा चल रहा हो तो आपसी रजामंदी से विभाजन का आवेदन दे कर विभाजन की डिक्री प्राप्त कर ली जाए।
पहले पता करें कि क्या कोई संपत्ति पैतृक है?
अजय पाण्डे ने सीहोर मध्यप्रदेश से पूछा है-
क्या पिता अपने पुत्र को दादा की (अविभाजित) पैतृक संपत्ति के अधिकार से वंचित कर सकता है? दादा जी ने इसे स्वयं अर्जित किया था। दादा जी का देहान्त सन् 2001 में हुआ है। पिता ने दादा की (अविभाजित) पैतृक संपत्ति बेच कर कंपनी से तीन नौकरी ली है। हम 3 भाई और 1 बहन हैं, बड़ा भाई विवाहित है, पिता ने 1 नौकरी बड़े भाई और 1 नौकरी भाभी को दे दी, 1 नौकरी मुझसे छोटे भाई को दे दी। मुझे और सबसे छोटे भाई और एक बहन को नौकरी से वंचित कर दिया है। क्या नौकरी में मेरा, छोटे भाई और बहन का कोई हक नही बनता है?
समाधान-
पैतृक संपत्ति क्या है, इसे समझने में अक्सर गलती की जाती है। पैतृक संपत्ति का वजूद केवल हिन्दू परंपरागत विधि में है। 17 जून 1956 से हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम प्रभावी होने के उपरान्त से नयी पैतृक संपत्ति अस्तित्व में आना असंभव हो चुका है। इस कारण जो भी संपत्ति इस तिथि के पूर्व किसी पुरुष को अपने पिता, दादा या परदादा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई हो वही पैतृक संपत्ति है। इसलिए आप पहले जाँच लें कि आप जिस संपत्ति की बात कर रहे हैं वह पैतृक संपत्ति है कि नहीं है। यदि यह पैतृक संपत्ति है तो कोई भी किसी को भी पैतृक संपत्ति से वंचित नहीं कर सकता। यदि संपत्ति दादा या परदादा द्वारा स्वअर्जित थी और दादा या परदादा का देहान्त 17 जून 1956 के बाद हुआ है तो यह संपत्ति पैतृक नहीं हो सकती। वैसी स्थिति में आप के पिता ने जो भी अपने विवेक के अनुसार वह कानून के हिसाब से सही है।
आप के बार बार यह प्रश्न तीसरा खंबा को भेजने से कुछ नहीं होगा। इस के लिए किसी अच्छे स्थानीय वकील से सलाह लें और यदि संपत्ति पैतृक है तो उचित कानूनी कार्यवाही करें। कार्यवाही करने से हल निकलेगा केवल प्रश्न पूछते रहने से नहीं। पैतृक संपत्ति क्या है इस का उत्तर तीसरा खंबा में अनेक बार दिया जा चुका है कृपया तीसरा खंबा की पुरानी पोस्टें पढ़ें।
मुस्लिम विधि में कोई पैतृक या सहदायिक संपत्ति नहीं।
आर एस ध्रुव ने धमतरी, छत्तीसगढ़ से समस्या भेजी है कि-
क्या एक मुस्लिम अपने जीवनकाल में अपनी सारी संपत्ति का बँटवारा कर सकता है? उसे संपत्ति अपने पिता से वसीयत में मिली है।
समाधान–
मुस्लिम विधि में कोई भी संपत्ति पैतृक या सहदायिक नहीं होती। केवल संयुक्त संपत्ति हो सकती है। लेकिन उस संयुक्त संपत्ति में किसी भी व्यक्ति का हिस्से पर उस का संपूर्ण अधिकार होता है न की उस में किसी अन्य का कोई अधिकार। इस तरह किसी भी मुस्लिम की संपत्ति उस की निजि संपत्ति होती है। इसी तरह किसी भी व्यक्ति को वसीयत में मिली संपत्ति उस की निजि संपत्ति होती है।
पिता से किसी मुस्लिम को वसीयत में प्राप्त संपत्ति उस की व्यक्तिगत संपत्ति है न कि संयुक्त या पैतृक या सहदायिक संपत्ति। इस कारण उस का बँटवारा किया जाना संभव नहीं है। हाँ एक मुस्लिम अपनी संपत्ति को दान कर सकता है, या विक्रय कर सकता है। यदि किसी मुस्लिम को अपनी संपत्ति का बँटवारा कुछ लोगों में करना है तो वह ऐसा केवल संपत्ति हस्तान्तरण की किसी विधि द्वारा कर सकता है। जब कि वह केवल अपने अंतिम संस्कार के खर्च और कर्जों को चुकाने के बाद बची हुई संपत्ति का एक तिहाई ही उन लोगों को वसीयत कर सकता है जो उस के उत्तराधिकारी नहीं हों। यदि किसी उत्तराधिकारी को वसीयत करना हो तो उस के शेष सभी उत्तराधिकारियों की सहमति आवश्यक होगी। इस तरह एक मुस्लिम द्वारा अपनी संपत्ति का बँटवारा किया जाना संभव नहीं है।
पुश्तैनी संपत्ति में अपने हिस्से के बंटवारे का दीवानी वाद संस्थित किया जा सकता है।
दक्षिता पालीवाल ने वल्लभनगर जिला उदयपुर, राजस्थान से राजस्थान राज्य की समस्या भेजी है कि-
मेरे दादा जी के 3 पुत्रियाँ (शादी शुदा) 2 पुत्र थे। मैं 11 साल की थी तब 2008 में मेरे पिता (40) की अचानक बीमार होने से मृत्यु हो गई उस समय मेरे परिवार में दादा जी (80) हमारे साथ रहते थे, तथा बड़े पिता जी शहर में रहते थे अपने परिवार के साथ। हमारे बड़े पिता जी का व्यवहार हमारे साथ बिल्कुल अच्छा नहीं था। मम्मी ने जून 2010 में तंग आकर दूसरी शादी कर ली (2 साल बाद)। मुझे मेरे नाना जी ने बड़ा किया, दादा जी को बड़े पापा ने शहर में अपने पास रखा। उनकी मृत्यु 21/02/15 को हो गई। बड़े पापा ने अपनी चालाकी से दादा जी से 09/2010 में रजिस्टर्ड वसीयत लिखवा ली जिसमें पैतृक 50 बीघा कृषि भूमि, गाँव का घर, शहर का घर, प्लाट सब अपने नाम करवा लिया। मेरे नाम सिर्फ 5 बीघा जमीन कर दी। मैं अपना हक लेने के लिए क्या कर सकती हूँ? बड़े पापा की पहचान बड़े-बड़े लोगों तक हैं पैसा है रुतबा है। कृपया उपाय बताये।
समाधान–
उक्त संपत्ति में जो भी संपत्ति स्वयं दादाजी द्वारा स्वअर्जित है उसे वे वसीयत कर सकते थे। इस कारण स्वअर्जित संपत्ति के मामले में तो वसीयत ही मानी जाएगी। किन्तु जो संपत्ति आप के दादाजी के पास पुश्तैनी थी तथा उस पुश्तैनी संपत्ति की आय से कोई संपत्ति बनाई गयी थी तो वह भी पुश्तैनी मानी जाएगी। इस पुश्तैनी संपत्ति में आप का भी अधिकार है।
आप के दादा जी उस पुश्तैनी संपत्ति में से केवल उन का जो हिस्सा था उसे वसीयत कर सकते थे। लेकिन अन्य लोगों के हिस्सों को वसीयत नहीं कर सकते थे। इस तरह उक्त संपत्ति जो हिस्सा आप के पिता का और आप का था उस पर आप का अधिकार है। आप अपने हिस्से की संपत्ति के बंटवारे का वाद कर सकती हैं। इस दीवानी वाद में दादा जी के सभी उत्तराधिकारियों को पक्षकार बनाना होगा। इस वाद में यदि आप के बड़े पापा वसीयत का हवाला देते हैं तो उन्हें वह वसीयत साबित करनी होगी और आप को उस वसीयत को फर्जी या गैर कानूनी साबित करना होगा। आप स्थानीय वकील से राय कर के कार्यवाही करें।