घंटे भर पहले जब मैं घर पहुँचा तो नीचे घर पर ताला था। पानी की मोटर चल रही थी। मैं समझ गया कि श्रीमती शोभा जी छत धुलाई का काम कर रही हैं। मुंशी को गाड़ी से चाबी निकाल ताला खोलने को कहा। डाक के डिब्बे में मिला एक लिफाफा “लॉ पब्लिशिंग हाउस” इलाहाबाद से आया हुआ।
तीन साल पहले तक मैं इस प्रकाशक से इंडियन फैक्टरीज एण्ड लेबर रिपोर्टस् (एफएलआऱ) खरीदता था। लेकिन 2005 के बाद से मैं ने इसे खरीदना बंद कर दिया। प्रकाशक का एक दमदार ग्राहक कम हो गया। तब से हर साल अक्टूबर में प्रकाशक मुझे ‘एफएलआऱ’ का बिल मनिआर्डर फार्म के साथ अवश्य प्रेषित कर देता है। मैं उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर देता हूँ।
आप सोच रहे होंगे कि मैं ने ‘एफएलआऱ’ मंगाना क्यों बन्द कर दिया? वजह बता ही देता हूँ। 2004 से ही कोटा के श्रम न्यायालय और औद्योगिक न्यायाधिकरण में जज नहीं थे। 2005 तक इस आशा में यह जर्नल खरीद लिया कि शीघ्र ही पदस्थापन हो जाएगा लेकिन 2005 के अंत तक कोई जज नहीं आया। मैं ने जर्नल को बंद कर दिया।
2006 के अंत में एक जज साहब पदस्थापित हुए, तब तक सबस्किप्शन का समय निकल चुका था। मैं ने सोचा कि अब जिल्द बंधी हुई ही ले लूंगा। वैसे भी मेरा प्रकाशक से यह कंट्रेक्ट था कि वह साल के अंत में जर्नल के लूज पार्टस् जो हर माह मुझे मिलते थे वापस ले कर मुझे जिल्द बंधे हुए देगा। इस से स्थानीय हल्के किस्म की बाइंडिंग से निजात मिल जाती है। वैसे भी जुजबंदी की बाइंडिंग अब कोटा में कोई नहीं करता। उधर प्रकाशक ने इस तरह की बाइंडिंग का ठेका दे रखा है। ठेकेदार अच्छी और सुंदर बाइंडिंग कर के देता है। जुजबंदी की बाइंडिंग में सभी पेज पूरे खुल जाते हैं और फोटो कॉपी कराने में आसानी रहती है।
2007 के अंत तक ‘एफएलआऱ’ बाइंड हो कर मुझे मिलती उस के पहले ही जज साहब का स्थानान्तरण हो गया और अदालत फिर खाली हो गई। अब जिस चीज को अभी काम नहीं आना उसे खरीद कर मैं क्या करता। ताजा महत्वपूर्ण फैसले वैसे भी इंटरनेट पर तुरंत पढने को मिल जाते हैं, उन्हें कापी कर के कंप्यूटर में सेव कर के रखा जा सकता है। 2008 शुरू होने के चौथे माह में एक जज साहब आए। हम ने सोचा कि इस साल सारे पुराने जर्नल जो अपने पुस्तकालय में नहीं हैं खरीद लूंगा और सबस्क्रिप्शन भी दे दूंगा। लेकिन अभी फिर से दो माह पहले जज साहब का तबादला हो गया है। अदालत खाली पड़ी है।
मैं सोच रहा हूँ कि अब किताबें ले कर पटक देने से क्या लाभ है। नए जज आ जाएं और अदालत का काम शुरू हो तो किताबें खरीदी जाएँ।