तीसरा खंबा

अनुकम्पा नियुक्ति अधिकार नहीं, बल्कि अन्य को अधिकार से वंचित करना है।

Compassionate Appointmentसमस्या-

विशाल शर्मा ने सीहोर, मध्य प्रदेश से समस्या भेजी है कि-

मेरे पिता जी जिला कलेक्ट्रेट कार्यालय सीहोर(म0प्र0) में सहा ग्रेड-2 के पद पर पदस्थ थे उनकी मृत्यु 27/05/2003 को हो गई। उस समय मेरी आयु 16 वर्ष थी तब मैं ने अनुकम्पा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। मेरी आयु 18 वर्ष की न होने के कारण उस समय मेरे आवदेन पर विचार नहीं किया गया। दिसम्बर 2005 में 18 वर्ष की आयु पूर्ण करने के पश्चात मैं ने पुनः आवेदन किया तब मेरा प्रकरण यह कहके टाल दिया कि विभाग में पद खाली नहीं है। सन् 2006 में मेरी बड़ी बहन ने पारिवारिक आवश्यकताओं को देखते हुए संविदा शिक्षक की परीक्षा पास की तथा वह संविदा शिक्षक बन गई। तदुपरांत 1वर्ष पूर्ण होने के बाद मैं पुनः विभाग में गया तो उन्होने मेरे प्रकरण यह कहके बंद कर दिया की आपकी बहन नौकरी में है। इसलिए आपको पात्रता नहीं आती। उसकी 2008 में शादी हो गई, उसके बाद में फिर विभाग में गया शपथ पत्र लेकर लेकिन मेरी बात नहीं सुनी गई । तत्पश्चात मैं ने 2009 में हाईकोर्ट जबलपुर में रिट पिटिशन दायर की । मेरे अधिवक्ता द्वारा विभाग को नोटिस दिया गया लेकिन चार वर्ष पूर्ण होने के बाद भी विभाग की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। तब 05/2013 को मैं केस जीता ओर विभाग को 3 माह का समय दिया गया कि इनका निराकरण कर माननीय उच्च न्यायालय को सूचित करें। अथक प्रयासों के बाद 09/2013 को जिला कलेक्ट्रेट सीहोर मे मुझे सहा0 ग्रेड-3 के पद के लिए नियुक्ति आदेश दिया गया। मैं यह जानना चाहता हूँ की विभाग की लापरवाही के कारण मेरे परिवार को उन 8 सालों में जो आर्थिक और मानसिक हानि हुई है क्या माननीय उच्च न्यायालय द्वारा मुझे कुछ राहत मिल सकती है।

समाधान-

नुकम्पा नियुक्ति किसी व्यक्ति का कानूनी अधिकार नहीं है। यह अनुकम्पा है। पूरी तरह नियोजक की अनुकम्पा पर निर्भर है। यह नागरिकों के समानता के मूल अधिकार के विरुद्ध भी है। शासकीय सेवाओं पर देश के सभी नागरिकों का समान अधिकार है। मृतक आश्रितों को नौकरी देने का नियम उस का अपवाद है। एक मृतक आश्रित को नौकरी देना अनेक व्यक्तियों को योग्यतानुसार शासकीय नौकरी प्राप्त करने के अधिकार को वंचित करता है। मृतक आश्रितों को सरकार अन्य आर्थिक सहायता प्रदान करना उचित हो सकता है। लेकिन अनुकम्पा नियुक्ति तो सीधे सीधे समानता के अधिकार से लोगों को वंचित करती है।

स तरह यदि आप को जद्दोजहद के उपरान्त नौकरी मिल गई है तो यही पर्याप्त है। आप ने नौकरी के लिए उच्च न्यायालय में रिट याचिका की थी। आप वहाँ रिट याचिका में आनुषंगिक राहत के रूप में नौकरी के साथ क्षतिपूर्ति की राहत भी मांग सकते थे, या खुद उच्च न्यायालय नौकरी देने की राहत देने के साथ आप को क्षतिपूर्ति की राहत भी प्रदान कर सकता था। लेकिन वह राहत उस रिट याचिका में नहीं दी गई। अब आप वह राहत किसी अन्य कानूनी कार्यवाही के माध्यम से प्राप्त नहीं कर सकते।

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