किसी भी कंट्रेक्ट में अनुचित प्रभाव की जाँच करते समय न्यायालय इस के तीन महत्वपूर्ण तत्वों की जाँच अवश्य करें। भारत के उच्चतम न्यायालय ने 1963 में एक मामले में निर्णय देते हुए इन की व्याख्या की…..
- किसी भी कंट्रेक्ट के पक्षकारों के बीच ऐसा संबंध होना चाहिए जिससे एक पक्षकार की स्थिति ऐसी हो कि वह दूसरों की इच्छा पर हावी हो सके;
- हावी हो सकने वाले पक्षकार ने कोई अनुचित लाभ उठाया हो,
- ऐसा अनुचित लाभ प्राप्त करने के लिए ने हावी हो सकने वाले पक्षकार ने अपनी स्थिति का उपयोग किया हो।
अब सवाल यह उठेगा कि ऐसे हावी हो सकने वाले संबंध क्या हो सकते हैं। इस प्रश्न पर न्यायालयों का कहना है कि इन संबंन्धों की संख्या को सीमित कर सकना संभव नहीं है मानवीय व्यवहार में अनेक प्रकार के संबंध हो सकते हैं। पक्षकारों के बीच संबंध का निश्चय किसी भी मामले में केवल साक्ष्य के आधार पर ही किया जा सकता है। फिर भी कुछ संबंध ऐसे हैं जिन्हें इस दायरे में लाया जा सकता है जैसे…. पति-पत्नी, मालिक-नौकर, अफसर-अधीनस्थ कर्मचारी, चाचा-भतीजा, साहूकार-कर्जदार, मकान मालिक-किराएदार, न्यायमित्र-अवयस्क, चिकित्सक-मरीज, वकील-मुवक्किल, माता पिता-बच्चे, संरक्षक-प्रतिपाल्य, मुखिया-अभिकर्ता और इसी तरह के संबंधों को हावी हो सकने वाली स्थिति के संबंधों की श्रेणी में लाया जा सकता है। पर्दे में रहने वाली महिलाओं से किसी भी व्यक्ति का कोई भी संबंध इस श्रेणी में ही आएगा।
किसी मामले में किसी अत्यन्त विपन्न व्यक्ति से किसी धनिक ने कोई संपत्ति को खरीदा हो और खरीद के लिए दी गई धनराशि बाजार दर से विचारणीय सीमा तक कम हो तो इस स्थिति में यह धारणा की जा सकती है कि यहाँ अनुचित प्रभाव का उपयोग किया गया है।
कोई महिला जो अभी अभी विधवा हुई हो, उस के अवयस्क संताने हों, उसे कोई स्वतंत्र सलाह उपलब्ध न हो, परिवार में उस के पति की मृत्यु का शोक संमाप्त भी न हुआ हो ऐसी अवस्था में यदि उस का सौतेला पुत्र जो परिवार में हावी होने की स्थिति में है एक बंटवारानामा उस से लिखवा लेता है जिस में महिला और उस की अवयस्क संतानों का कानूनी हक मारा जाता है तो ऐसे मामले में अनुचित प्रभाव के उपयोग की धारणा किया जाना उचित है।
एक मंदबुद्धि व्यक्ति से जो किसी संव्यवहार को ठीक से समझने में असमर्थ है, अथवा किसी वृद्ध अशिक्षित महिला से उस के नजदीक का कोई भी व्यक्ति उस की समूची सम्पत्ति का दानपत्र अपने नाम लिखवा लेता है तो ऐसा दान-पत्र अनुचित प्रभाव का उपयोग कर निष्पादित कराने की धारणा लिए जाने के लिए मजबूत आधार है।
इस प्रकार अनुचित प्रभाव को सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक है कि संबंध को तो प्रमाणित किया ही जाए साथ के साथ यह भी प्रमाणित किया जाए कि कोई वास्तविक अनुचित लाभ उठाया गया है। जैसे किसी भी वस्तु की कीमत का बाजार दर से अत्यन्त कम मूल्य पर खरीद और किसी ऋण के लिए अत्यन्त ऊँची ब्याज दरें, अनुचित लाभ उठाने की अवधारणा के लिए एक पर्याप्त आधार हैं।
अब एक प्रश्न और आता है कि कौन लोग अनुचित प्रभाव के आधार का उपयोग कर सकते हैं?
किसी व्यक्ति जिस पर अनुचित प्रभाव का उपयोग किया गया हो वह तो निश्चित रूप से इस आधार का उपयोग कर ही सकता है, उस की मृत्यु के उपरांत उस के उत्तराधिकारी व विधिक प्रतिनिधि भी इस आधार पर मुकदमा कर सकते हैं। किसी बोण्ड को किसी अन्य व्यक्ति को हस्तांतरित कर दिया गया हो तो जिसे हस्तांतरित कर दिया गया है वह व्यक्ति भी पूर्व बोण्डधारक पर किये गए अनुचित प्रभाव के आधार का उपयोग कर सकता है। किसी मुकदमें में अपना बचाव करने वाला व्यक्ति भी इस आधार का उपयोग कर सकता है, चाहे यह अनुचित प्रभाव किसी अन्य व्यक्ति के संबंध में ही क्यों न उपयोग में लिया गया हो।
जहाँ भी अनुचित प्रभाव का बिन्दु किसी मुकदमें में उपस्थित हो जाता है तो न्यायालय और पक्षकारों के वकीलों की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है। क्यों कि यह एक ऐसा आधार है जिस की कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं होती है और केवल परिस्थितियों के आधार पर ही इस बात का निर्णय करना होता है कि अनुचित प्रभाव का उपयोग किया गया था अथवा नहीं। ऐसी अवस्था में न्यायालय को बहुत ही सतर्क रहना होता है, वहीं इस आधार को उठाने वाले पक्षकार और उस के वकील को इसे परिस्थितियों को सिद्ध करने वाली साक्ष्य को सावधानी के साथ प्रस्तुत करना होता है तथा इस तरह के आधार के विरुद्ध बचाव पक्ष के वकील को भी पूरा ध्यान रखना होता है कि कहीं उस के सेवार्थी के विरुद्ध इस तरह का आधार सिद्ध न कर दिया जाए। (धारा-16)
अगले आलेख में हम कपट अर्थात् फ्रॉड पर बात करेंगे।