तीसरा खंबा

अपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है?

पिछले आलेख अपराधिक मानव वध कब हत्या है? में मानव वध को कब हत्या कहा जा सकता है? इसे स्पष्ट किया गया था। लेकिन इस परिभाषा के कुछ अपवाद भी हैं।

अपराधिक मानव वध कब हत्या नहीं है?
अपवाद-1 

यदि गंभीर और अचानक ऐसी उत्तेजना उत्पन्न किए जाने पर कि व्यक्ति आत्मसंयम की शक्ति खो दे और वह उत्तेजना देने वाले व्यक्ति अथवा किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु भूल या दुर्घटनावश कारित कर दे तो ऐसा मानववध हत्या नहीं कहा जाएगा। लेकिन इस अपवाद के कुछ बंधन भी हैं……

  1. कि ऐसी उत्तेजना किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करने या उसे क्षति पहुँचाने के उद्देश्य से दिखावटी या अपने बचाव की दृष्टि से स्वनिर्मित न हो। 
  2. कि ऐसी उत्तेजना किसी ऐसी बात द्वारा उत्पन्न  नहीं हो जो कि किसी लोकसेवक द्वारा लोकसेवक की शक्तियों के विधिपूर्ण  प्रयोग में की गई हो।
  3. कि ऐसी उत्तेजना ऐसी उत्तेजना किसी ऐसी बात द्वारा उत्पन्न नहीं हुआ हो जो व्यक्ति के अपने स्वरक्षा के के अधिकार के विधिपूर्ण प्रयोग में की गई हो

यहाँ यह भी स्पष्ट किया गया है कि, उत्तेजना गंभीर और अचानक थी या नहीं कि अपराध को हत्या की श्रेणी में जाने से बचा दे एक तथ्य का प्रश्न है जो परिस्थितियों और साक्ष्य के आधार पर ही सुनिश्चित किया जा सकता है।

 इस अपवाद को इन उदाहरणों से समझा जा सकता है….

  1.  संता द्वारा उत्तेजित किए जाने के कारण बंता इरादतन बंता के पुत्र का वध कर देता है। यह हत्या कही जाएगी क्यों कि बंता को संता के पुत्र ने उत्तेजित नहीं किया था और संता के पुत्र की मृत्यु उत्तेजना में दुर्घटना या गलती से नहीं हुई थी।
  2. बंता को संता ने अचानक इस तरह उत्तेजित कर दिया कि बंता ने संता पर अपनी पिस्तौल तानी और चला दी। गोली संता को नहीं लगी। लेकिन गोली नजदीक ही पंता को लग गई जो बंता को दिखाई नहीं दे रहा था। बंता को पंता को मारने का कोई इरादा नहीं था और यह संभावित भी नहीं था कि पंता उस की गोली से मर जाता। यहाँ बंता ने पंता की ‘हत्या’ नहीं की है, किन्तु ‘अपराधिक मानव वध किया है’।
  3. बंता सिपाही ने अपने मित्र संता को घर से बाहर बुलाया और अचानक उसे गिरफ्तार कर लिया।  इस से संता को  अचानक तीव्र आवेश आ गया और उस ने अचानक बंता का वध कर दिया। यह हत्या कहलाएगी। क्यों कि आवेश ऐसी बात पर आया था जो बंता ने लोकसेवक के नाते लोकसेवक का कर्तव्य करते हुए की थी। 
  4. बंता एक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित हो कर एक साक्षी के रूप में बयान करता है कि वह संता की किसी बात पर विश्वास नहीं करता। उसे संता के बयान पर कतई विश्वास नहीं है और संता ने शपथ ले कर भी अदालत के सामने झूठ बोल कर शपथ को भंग किया है। संता को अचानक बंता के इस बयान पर आवेश आ गया और उस ने बंता का वध कर दिया। यह हत्या है। 
  5. बंता यकायक संता की नाक पकड़ने का प्रयास करता है। संता उस से बचने के लिए बंता को पकड़ लेता है, जिस से बंता को आवेश आता है और वह संता का वध कर देता है। यह हत्या है क्यों कि उत्तेजना ऐसी बात से हुई है जो प्राइवेट प्रतिरक्षा में की गई थी।
  6. बंता ने संता पर आघात किया संता को इस से क्रोध आ गया। पास में ही खडे उगन्ता ने संता के गुस्से का लाभ उठाने के लिए संता को उसी समय कटार पकड़ा दी और संता ने गुस्से में बंता की हत्या कर दी। यहाँ हो सकता है कि संता अपराधिक मानव वध का
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