तीसरा खंबा

अपराधियों को दंडित कराने के लिए प्रमाण कहाँ प्रस्तुत किए जाएँ?

कल सुमित राय की एक जिज्ञासा का उत्तर दिया गया था उन की  अगली जिज्ञासा  है – – – 
त्रकार कहाँ प्रमाण प्रस्तुत करे, जिससे दोषियों को दण्डित कराया जा सके ? और ….
उत्तर – – – 
सुमित जी,
त्रकार भी एक साधारण नागरिक ही है। उसे संविधान या अन्य किसी विधि से कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हुए हैं। इस तरह उस के दायित्व और अधिकार भी वही हैं जो कि अन्य नागरिकों के हैं। हम पिछले आलेख में बता चुके हैं कि संज्ञेय अपराध की प्रथम सूचना रिपोर्ट कोई भी व्यक्ति दर्ज करवा सकता है।
जैसे ही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होती है वैसे ही पुलिस थाने का भार साधक अधिकारी स्वयं या अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी को उस मामले को अन्वेषण हेतु सौंप देता है। यदि आप के पास प्रमाण हैं तो आप अन्वेषण अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। यदि 24 घंटों में अन्वेषण पूरा हो जाता है तो उस की रिपोर्ट अन्वेषण अधिकारी संबंधित न्यायालय को प्रस्तुत करता है अन्यथा प्रथम सूचना रिपोर्ट की मूल प्रति 24 घंटों के भीतर न्यायालय को प्रस्तुत करता है।
न्वेषण पूरा होने पर उस की अंतिम रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत की जाती है। यदि अपराध साबित पाया जाता है तो यह रिपोर्ट अपराधी के विरुद्ध आरोप पत्र के रूप में होती है। यदि पुलिस आरोप पत्र प्रस्तुत न करे और अंतिम रिपोर्ट में यह कथन करे कि आरोप साबित नहीं पाया गया तो न्यायालय प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाने वाले व्यक्ति को इस की सूचना देती है और वह व्यक्ति न्यायालय के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है, वहाँ सबूतों और साक्षियों को प्रस्तुत कर सकता है, जिन पर विचार कर के न्यायालय अभियुक्तों के विरुद्ध प्रसंज्ञान ले कर अभियोजन चला सकता है। इस तरह यह स्पष्ट है कि कोई भी व्यक्ति जिन में पत्रकार भी सम्मिलित हैं अपराध के सबूत किस तरह पुलिस के अन्वेषण अधिकारी और न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं।  
दि पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न करे तो कोई भी व्यक्ति न्यायालय के समक्ष अपना परिवाद प्रस्तुत कर सकता है जिसे न्यायालय पुलिस थाने को मामला दर्ज करने के लिए भेज सकता है और पुलिस उस में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कर आगे कार्यवाही कर सकती है। न्यायालय यह भी कर सकता है कि परिवाद प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति का बयान ले और अन्य सबूत व गवाह प्रस्तुत करने के लिए कहे। इस तरह के बयान दर्ज हो जाने के उपरांत न्यायालय उसी समय प्रसंज्ञान ले कर मुकदमा दर्ज कर सकता है और अभियुक्तों के विरुद्ध समन या जमानती या गैर जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है। यह भी हो सकता है कि मुकदमा दर्ज न कर के न्यायालय आगे और अन्वेषण के लिए मामले को पुलिस को प्र