तीसरा खंबा

अविभाजित संयुक्त परिवार की संपत्ति में अपना हिस्सा प्राप्त करने के लिए विभाजन का वाद करें …

Joint propertyसमस्या-

मुम्बई, महाराष्ट्र से संजय परब ने पूछा है –

मेरे दादाजी का देहांत 1981 में हुआ। उनके बाद उनकी पत्नी (लक्ष्मी) और उनके (सूर्यकांत, चंद्रकांत, श्याम) 3 बेटे और 1 बेटी वारिस है।  उन में से (चंद्रकांत-1985) (सूर्यकांत-2003 और उनकी पत्नी शकुंतला-1985) और (लक्ष्मी-2004) का देहांत हो गया। दादाजी के देहांत के बाद भी 1990 तक उन के नाम पर उनका घर था। लेकिन ग्रमपंचायत के रिकार्ड में 1991 में यह घर बिना कोई वारिस दाखिला देख के और बिना वारिसों की सम्मति के चंद्रकांत की पत्नी (संगीता) के नाम पर चढ़ा दिया गया। आज ग्राम पंचायत के पास कोई सम्मति पत्र या मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं है। यह घर (श्रीमती संगीता) के नाम पर होने के कारण मुझे (सूर्यकांत के पुत्र-संजय) को दादी के देहांत के बाद (2004) से बहुत तकलीफ़ सहनी पड़ रही है। मुझे घर में एक कमरा तक देने से इन्कार कर रहे हैं। घर पर जाने पर मुझ से झगड़ा करते हैं। आज यह नामे ग़लत तरीके से चढ़ने के कारण ग्राम पंचायत फिरसे दादाजी के नाम पर कर रही है। लेकिन आज 2004 से जो तकलीफ़ हुई है और उसकी वजह से मैं मानसिक रूप से पीड़ित हो गया हूँ। आज मेरी चाची (संगीता) की वजह से मैं अपने घर से बेघर हूँ, मुझे और मेरे परिवार को 2004 से घर के बाहर (होटेल) में रहना पड़ रहा है। आज मैं ग्रमपंचायत और श्रीमती संगीता से किस प्रकार की क्नूनी करवाई (199,198,202,420) कर कर नुकसान भरपाई और ग़लत कम करने वालों को क़ानूनी तरीके से सज़ा दिला सकता हूँ?

समाधान-

म अनेक बार तीसरा खंबा पर बता चुके हैं कि ग्राम पंचायत, नगरपालिका या नगर निगम द्वारा किसी स्थाई संपत्ति के संबंध में रेकार्ड में परिवर्तन नामान्तरण होता है लेकिन उस सम्पत्ति के स्वामित्व का प्रमाण नहीं होता है। आम तौर पर वारिसों का यह कर्तव्य होता है कि वे खुद ग्राम पंचायत को आवेदन व प्रमाण प्रस्तुत कर के कानून के अनुसार नामान्तरण करवा लें। लेकिन जब सारे लोग सोए रहते हैं तो उन में से कोई एक गलत तथ्य प्रस्तुत कर के तथा किसी तरह ग्रामपंचायत को अपने पक्ष में निर्णय करने के लिए प्रेरित कर के इस तरह का गलत नामान्तरण करवा लेता है। तब उस गलत नामान्तरण के विरुद्ध यही उपाय है कि उसे सही करवा लिया जाए या फिर अपील कर के सही करवा लिया जाए।

प के दादा जी के देहान्त के उपरान्त ही उक्त संपत्ति अविभाजित संयुक्त हिन्दू परिवार की संपत्ति हो गया था। जब तक उस का विभाजन हो कर सब को अपने अपने हिस्से पर कब्जा नहीं मिल जाता है तब तक वह संयुक्त परिवार की ही संपत्ति रहेगा। यदि ग्राम पंचायत ने कोई गलत नामान्तरण कर दिया है और वह उसे सही भी कर देता है तो भी संपत्ति के स्वामित्व की जो संयुक्त स्थिति है वह परिवर्तित नहीं होती है।

ब भी इस का एक ही उपाय है कि आप दीवानी न्यायालय में दादा जी की संपत्ति के विभाजन के लिए वाद प्रस्तुत करें और विभाजन के उपरान्त अलग अलग कब्जे के लिए प्रार्थना करें। दीवानी न्यायालय उक्त संपत्ति को वारिसों के भाग के अनुसार विभाजित कर के सब को अपने अपने हिस्से पर कब्जा दिलवा देगा।

हाँ तक अब तक आप को हुए कष्ट के लिए आप जिस किसी को सजा दिलाना चाहते हैं या मुआवजा प्राप्त करना चाहते हैं, वह संभव नहीं है। क्यों कि यह सब चीजें आप के खुद की निष्क्रीयता के कारण भी हुई है। यदि दादा जी की मृत्यु के उपरान्त आप के पिता संपत्ति का विभाजन करवा लेते तो यह स्थिति नहीं बनती। इस मामले में आप यदि आप किसी दंडात्मक कार्यवाही के लिए अथवा मुआवजे के लिए कोई कानूनी कार्यवाही करेंगे भी तो भी आप को उस में सफलता नहीं मिलेगी।

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