तीसरा खंबा

अवैध कालोनी को शासकीय और राजनैतिक निर्णय से ही नियमित किया जा सकता है।

Slum_in_Mumbaiसमस्या-

दीपक कुमार ने नमनाकला खटिकपारा अबिंकापुर, छत्तीसगढ़ से छत्तीसगढ़ राज्य की समस्या भेजी है कि-

टिकपारा बस्ती सरकारी भूमि पर बसा है और इस बस्ती मे मे 75% लोगो को राजीव गाधी का पट्टा दिया गया है और हमेशा कलेक्ट्रेट आफिस से इस बस्ती के भूमि का नाप जोख कराया जाता है और उनके कर्मियों द्वारा हमेशा घरो को तोड़ने की बातें कही जाती है जिससे हमेशा बस्ती वाले अपने घरो के छिन जाने का भय रहता है इस मामले मे कलेक्टर भी कोई बात नही सुनती ऐसी स्थिती मे हम बस्ती वाले क्या करे जवाब दे

समाधान-

प की समस्या कानूनी नहीं है और न ही इस का कोई हल कानून और अदालतों के पास है। आप खुद कह रहे हैं कि खटिकपारा सरकारी भूमि पर बसा है और 75 प्रतिशत लोगों को पट्टे दिए जा चुके हैं। जिन्हें पट्टे दे दिए गए हैं वे तो कानूनी रूप से उस भूमि पर कब्जे में हैं और वे उस भूमि के पट्टेदार हो चुके हैं। उन्हें तो उस भूमि से हटाया नहीं जा सकता है।

शेष भूमि पर जिन लोगों ने मकान आदि बना रखे हैं वे वस्तुतः अतिक्रमी हैं। उन्हें जिला प्रशासन कभी भी हटा सकता है। उन्हें वहाँ से हटाए जाने के संबंध में किसी न्यायालय से किसी प्रकार का कोई स्थगन प्राप्त नहीं हो सकता है। अधिक से अधिक न्यायालय यह कह सकता है कि जिन लोगों का कब्जा है उन्हें बिना विधिक प्रक्रिया के न हटाया जाए। इस की कोशिश की जा सकती है। इस बारे में सिविल न्यायालय के समक्ष स्थाई निषेधाज्ञा का दीवानी वाद प्रस्तुत किया जा सकता है और उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका भी।

स तरह के मसले केवल राजनैतिक रूप से निर्णय ले कर ही हल किए जा सकते हैं। अवैध कालोनियों को केवल शासकीय राजनैतिक निर्णय से ही नियमित किया जा सकता है। जब तक नगर निगम या विकास न्यास इस भूमि पर शेष कब्जेदारों को पट्टे नहीं दे देता है उन के सर पर अतिक्रमण हटाए जाने की तलवार लटकती ही रहेगी। इस कारण बस्ती के निवासियों को सामुहिक रूप से सरकार को निर्णय लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए। उस के लिए आंदोलन किया जा सकता है। इस संबंध में अभी दिल्ली सरकार द्वारा झुग्गी झोपड़ियों को न हटाने का जो निर्णय लिया गया है उसे उदाहरण बना कर आंदोलन खड़ा किया जा सकता है।

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