तीसरा खंबा

आचरण नियमों में विहित जरूरी सूचना न देना दंडनीय अपचार हो सकता है …

कानूनी सलाहसमस्या-

विवेक सिंह ने दुर्ग, छत्तीसगढ़ से समस्या भेजी है कि-

मैं नौ वर्षों से छत्तीसगढ़ स्थित भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रम में अधिकारी पद पर नौकरी कर रहा हूँ, कुछ महीने पूर्व मेरे एक रिश्तेदार से विवाद होने के बाद मारपीट की घटना हुई थी। जिस के बाद धारा 323, 506 के तहत दुर्ग न्यायालय मे मामला दर्ज हुआ, राजीनामा नहीं होने के कारण कुछ हफ्ते पहले न्यायालय ने दोषसिद्ध करते हुए मुझे व मेरे रिश्तेदार दोनों को चेतावनी देकर छोड़ दिया। अब जब कि दोषसिद्ध हो चुका है तो क्या भविष्य में मेरे नियोक्ता द्वारा मेरे विरुद्ध कोई कार्यवाही की जा सकती है। क्या मुझे स्वयं यह जानकारी नियोक्ता को देनी चाहिए। भारत सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों में कार्यवाही करने के क्या नियम हैं? कृपया आगे मार्गदर्शन करें।

समाधान-

प के विरुद्ध जो मामला था वह असंज्ञेय तथा जमानतीय था। इस कारण आप के नियोक्ता को सूचना तभी मिल सकती है जब कोई शिकायत करे या आप स्वयं सूचना दें। मामला ऐसा नहीं है जिस में नियोक्ता आप के विरुद्ध कोई कार्यवाही कर सके। लेकिन यह केवल आप के संस्थान के स्थाई आदेश या जो भी नियम बने हुए हैं उन्हें देख कर ही बताया जा सकता है। यदि आप के अनुशासनिक कार्यवाही के नियमों में उक्त अपराध में दोषसिद्ध होना एक अपचार है तो आप के विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है। यदि वह अपचारों में शामिल नहीं है तो फिर आप को चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।

लेकिन आप के कंडक्ट रूल्स (आचरण नियम) में आप के विरुद्ध किसी अपराध का अभियोजन चलनेऔर आप को दोषसिद्ध किए जाने का निर्णय होने पर उस की सूचना देना जरूरी कर्तव्य हो सकता है। यदि ऐसा है और आप सूचना नहीं देते हैं तो यह कंडक्ट रूल्स का उल्लंघन होगा जो कि आम तौर पर एक अपचार होता है जिस के लिए नियोजक को अपने कर्मचारी को दंडित करने का अधिकार होता है। आप कंडक्ट रूल्स का अध्ययन करें यदि उस में इस मुकदमे और निर्णय की सूचना देना जरूरी कर्तव्य हो तो आप को अपने नियोजक को सूचित करना चाहिए।

सार्वजनिक उपक्रमों में अपने अपने स्थाई आदेश, कंडक्ट रूल्स आदि बने होते हैं जो आम तौर पर अलग अलग संस्थानों के भिन्न भिन्न होते हैं।

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