मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम-1939 को अधिनियमित करने के दो कारण बताए गए थे। पहला तो यह कि विभिन्न परिस्थितियों में परेशान हो रही महिलाओं को अपने पति से तलाक लेने का जो अधिकार मुस्लिम कानून में उपलब्ध थे और जिन में विवाद था उन्हें इस कानून द्वारा स्पष्ट किया जाए। दूसरा यह कि एक विवाहित मुस्लिम महिला के इस्लाम धर्म का त्याग कर देने पर उस के विवाह की स्थिति के कानून को स्पष्ट कर दिया जाए। यही दो प्रावधान इस कानून में रखे गए हैं। इस कानून की धारा-2 में वे आधार निर्धारित कर दिए गए हैं जिन पर एक मुस्लिम महिला न्यायालय में वाद प्रस्तुत कर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती है।
ो, अर्थात पति-पत्नी के बीच यौन संबंध स्थापित न हुआ हो।
- आदतन पत्नी पर प्रहार करता हो या व्यवहार की क्रूरता के कारण पत्नी के जीवन को दुःखी कर दिया हो चाहे ऐसी क्रूरता शारीरिक दुर्व्यवहार की श्रेणी में न आती हो।
- पति किसी बुरे चरित्र की स्त्री के साथ संबद्ध हो गया हो या बदनामी का जीवन व्यतीत कर रहा हो।
- पति पत्नी को अनैतिक जीवन अपनाने के लिए बाध्य करने का प्रयत्न करता हो।
- पति पत्नी की संपत्ति को बेच दे या पत्नी को उस की संपत्ति पर उस के अधिकारों का उपयोग करने से रोकता हो।
- पति पत्नी को उस के धार्मिक रीतियों या रिवाजों को करने में बाधा डालता हो।
- यदि पति के एक से अधिक पत्नियाँ हों और वह सब के साथ क़ुरान की आज्ञाओं के अनुसार समान रूप से व्यवहार न करता हो।
- और कोई भी अन्य आधार जो मुस्लिम कानून के अंतर्गत विवाह विच्छेद के लिए मान्यता प्राप्त हो।
पत्नी द्वारा इस्लाम के त्याग अथवा किसी अन्य धर्म की विश्वासी हो जाने का प्रभाव
यदि कोई विवाहित महिला इस्लाम का त्याग कर दे या किसी अन्य धर्म को अपना लेगी तो ऐसा करने से उस का विवाह स्वतः ही समाप्त नहीं समझा जाएगा।
लेकिन, ऐसे इस्लाम त्याग अथवा धर्म परिवर्तन के उपरांत ऐसी महिला इस कानून की धारा-2 में वर्णित आधारों पर तलाक लेने की अधिकारी होगी।
लेकिन, इस धारा के प्रावधान उस महिला पर लागू न होंगे जिस ने किसी अन्य धर्म से परिवर्तित हो कर इस्लाम में विश्वास किया हो और इस्लाम त्याग कर पुनः अपना पूर्व धर्म अपना लिया हो।
इस कानून में यह भी प्रावधान किया गया है कि इस कानून के द्वारा मुस्लिम महिला को मुस्लिम कानून के अंतर्गत प्राप्त स्त्री-धन या उस के किसी भाग पर उस का अधिकार प्रभावित नहीं होगा।