प्रीतम सिंह ने गाँव नारायणगढ़, तह. नरवाना, जिला जीन्द, हरियाणा से समस्या भेजी है कि-
मेरे (प्रीतम सिंह उम्र 65वर्ष) दो पुत्र व दो पुत्री हैं जो सभी शादीशुदा हैं। मेरे पास 4 एकड़ 2 कनाल अर्थात् 34 कनाल खेत की ज़मीन और लगभग 7-8 मरले घर की ज़मीन है जो रजिस्ट्री की है। ये सब मुझे मेरे पिता से प्राप्त हुई थी। जो मेरे पिता ने 55-60 साल पहले खुद ही खरीदी थी। मेरे पिता का देहांत जुलाई 2002 में हो गया था। एक कनाल मेरी पंजाब में है जो मैंने 22 साल पहले खुद खरीदी थी। अक्टूबर 2005 में परिवार व् गाँव के मौज्जिज व्यक्तियों ने मेरे खेत का बँटवारा तीन हिस्सों में किया था। जिसमें एक हिस्सा(11कनाल) मेरे बड़े पुत्र परमजीत को और एक हिस्सा(11कनाल) मेरे छोटे पुत्र राजबीर को और शेष बचा एक हिस्सा (12कनाल) मुझे दी गई थी। घर दोनों पुत्रों को आधा-आधा दिया गया और ये कहा गया कि आगे से जो भी साझा खर्च आएगा वो सबको बराबर देना होगा। मुझे छोटे पुत्र के पास रहने को कहा गया। जो मुझे कर्ज (2 लाख 25 हजार रूपये की देनदारी) थी वो भी तीन हिस्सों में बराबर बाँट दी गई थी। बड़े पुत्र के हिस्से में 75000 रूपये की देनदारी (कर्ज) आया। उस के पास उस समय 75000 रुपये देने के लिए नहीँ थे तो उसको मौजिज व्यक्तियों ने कहा कि कर्ज के बदले तुम खेत की ज़मीन को मई 2011 तक 6 साल के लिए अपने पिता के पास छोड़ दो। वह इसके लिए मान गया और यह फैसला लिखा भी गया जो आज भी मेरे पास है। इसमें मेरी दोनों पुत्रियों को कुछ भी नहीं दिया गया। परन्तु परमजीत ने मुझसे जबरदस्ती ज़मीन मई 2009 में वापिस ले ली। उसने न ही मुझे रूपये दिए। वह मुझे तीसरे हिस्से का साझा खर्च भी नहीं देता। इसके बावजूद भी वह मेरे साथ झगड़ता रहता था। फिर मई 2012 में भी उसने मेरे साथ झगड़ा किया और मेरे व मेरे छोटे पुत्र राजबीर पर परमजीत ने मारपीट व उसकी पत्नी ने छेड़ छाड़ का झूठा केस कर दिया। फिर परिवार, रिश्तेदारों व गाँव के मौज्जिज व्यक्तियों ने हमारा समझौता करा दिया और लिख भी दिया जो कि इस प्रकार था:- खेत तो पहले की तरह तीन हिस्सों में ही रहेगा। घर सारा छोटे् पुत्र राजबीर के पास रहेगा। पंजाब वाली 1 कनाल में बड़े पुत्र परमजीत को जितनी घर के हिस्से में आती थी वो देकर शेष दोनों पुत्रों को आधी आधी दी गई। और बड़े पुत्र परमजीत का जो घर वाली ज़मीन में जो कमरा था उसकी क़ीमत 30000 रूपये लगाई गई और छोटे पुत्र राजबीर ने ये 30000 रूपये बड़े पुत्र परमजीत को दे दिए। लेकिन परमजीत ने वो कमरा अब तक भी खाली नहीं किया। अगर मैं या मेरा छोटा पुत्र उसे खाली करने के लिये कहते तो वह सुसाइड करने की धमकी दे देता है। छोटे पुत्र ने घर में जो बड़े पुत्र वाला हिस्सा आया था उसने खाली पड़ी जगह की मरम्मत कर ली और उस में मिटटी डलवा ली। जिसमे उसके लगभग 50000 रूपये लग गए। मेरा बड़ा पुत्र ये फैसला होने के बाद भी मेरे साथ मारपीट व झगड़ा करता रहता था। मेरा बड़ा पुत्र परमजीत मेरे कहने सुनने से बाहर था। वह मेरे और मेरे परिवार के साथ बार बार झगड़ा करता रहता था। जिससे तंग आकर मैंने बड़े पुत्र परमंजीत और उसकी पत्नी को अपनी चल अचल सम्पति से बेदखल कर दिया और इसकी सार्वजनिकता मैं ने 28-10-2014 के अख़बार में करवा दी थी। वह मुझे व् मेरे छोटे पुत्र को मार् डालने की भी धमकी देता है और खुद भी हमारा नाम लिख कर सुसाइड करने की धमकी देता है। उस की इन दोनों बातों के खिलाफ मैने थाना में भी 30-10-2014 को दरख्वास्त दी थी। लेकिन थाना वालों ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। मैं अब उसे कुछ भी नहीं देना चाहता। बड़े पुत्र ने जिस को खेत की जमीन चकोते पर दे रखी थी मैं ने उसको खेत की ज़मीन छोड़ने को कहा तो उस ने कहा कि वह अप्रैल 2015 में खाली कर देगा। लेकिन अब मेंरे बड़े पुत्र ने मेरे ऊपर मुकदमा कर दिया। जिसके समन मुझे आज मिले हैँ। समन क़े अनुसार उसने कहा है कि मेरे हिस्से की 11 कनाल जो मुझे दी गई थी उस पर मेरे पिता कब्जा करना चाहता है यह मुझ पर ही रहनी चाहिए और घर व पंजाब वाली 1 कनाल में से मुझे आधी आधी मिलनी चाहिये। मैं अपने बडे पुत्र से बहुत तंग हूँ। आप मुझे कोई ऐसा तरीका बताइये जिस से बड़े पुत्र को मेरी सम्पति में से कुछ भी न मिले या फिर कम से कम मिले। मेरे परिवार में मैं खुद, (पत्नी नहीं है) दो पुत्र दो पुत्री चारों बच्चे शादीशुदा हैं। कृपया समस्या को गम्भीरता से लेते हुए समाधान जल्दी से जल्दी बतायें क्योंकि समन में सुनवाई की तारीख 24-12-2014 की है। मैंने अपना वकील भी करना है।
समाधान-
हमें खेद है कि हम आप की समस्या का समाधान आप के समय के अनुसार नहीं कर सके। हम अभी तक प्रतिदिन एक समस्या का समाधान ही यहाँ प्रस्तुत कर पाते है। इस से अधिक चैरिटी संभव नहीं है। क्योंकि तीसरा खंबा दो व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रयास का परिणाम है और उन दोनों की अपनी अपनी निजी जिम्मेदारियाँ और व्यस्तताएँ हैं। हम त्वरित सशुल्क सेवाओँ पर विचार कर रहे हैं, लेकिन अभी वह कम से कम दो माह संभव नहीं है।
आप को मेल से बता दिया गया था कि या तो आप वकील कर लें, अन्यथा केवल पेशी ले लें जिस से आप को समय मिल जाएगा। तब तक हम आप की समस्या का समाधान भी कर सकेंगे।
आप के पास जो संपत्ति है वह आप के पिता द्वारा तथा आप के द्वारा अर्जित है। आप पर हिन्दू विधि प्रभावी होती है। आप के पिता के जीवनकाल में उन के द्वारा जो भी संपत्ति अर्जित की गई उस पर उन का खुद का स्वामित्व था तथा वे अपने जीवन काल में इसे किसी को भी विक्रय, दान या अन्य प्रकार से हस्तान्तरण कर सकते थे। उन का देहान्त दिनांक जुलाई 2002 में हुआ और उन की संपत्ति आप को उत्तराधिकार में प्राप्त हो गई।
17 जून 1956 के पूर्व तक हिन्दू विधि मं यह नियम था कि जो भी संपत्ति किसी पुरुष को अपने पुरुष पूर्वज से उत्तराधिकार में प्राप्त होती थी उस में उस के पुत्रों, पौत्रों और प्रपोत्रो का भी हिस्सा होता था। इसे पुश्तैनी अथवा सहदायिक संपत्ति कहा जाता था। लेकिन यह स्थिति उक्त तिथि से परिवर्तित हो गई। उक्त तिथि के बाद यदि कोई सपंत्ति पहले से पुश्तैनी या सहदायिक नहीं थी तो वह हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की अनुसूची के उत्तराधिकारियों को प्राप्त होने लगी। ऐसी संपत्ति जिन्हें उत्तराधिकार में प्राप्त हुई या हो रही है उस पर उत्तराधिकारियों का स्वामित्व स्थापित होने लगा और वे उसे दान, वसीयत या अन्य प्रकार से हस्तान्तरित कर सकते हैं।
इस तरह आप को जो संपत्ति पिता से प्राप्त हुई उस में आप के पुत्रों, पुत्रियों या पत्नी का कोई अधिकार नहीं है। आप को उसे विक्रय, दान, वसीयत या अन्य प्रकार से हस्तान्तरित करने का अधिकार है, ऐसा ही अधिकार आप को उस संपत्ति पर प्राप्त है जो आप ने खुद अर्जित की है। आप चाहें तो अपनी सारी संपत्ति जो आप ने पुत्रों में बाँट दी है उस के बारे में वसीयत के माध्यम से या अन्य प्रकार से हस्तान्तरित कर के व्यवस्था कर सकते हैं।
आप के बड़े पुत्र ने समझौते को नहीं माना है और वह जबरन अधिक से अधिक हथिया लेना चाहता है तथा जिम्मेदारियों को निभाना भी नहीं चाहता है। वैसी स्थिति में आप ने उसे बेदखल कर दिया है। लेकिन इस बेदखली का कोई कानूनी अर्थ नहीं है। आप के जीवनकाल के बाद यदि आप ने वसीयत नहीं की है तो वह आप की निर्वसीयती संपत्ति में से अपने हिस्से के अनुसार अर्थात एक चौथाई संपत्ति प्राप्त कर सकता है। यदि आप उसे छोड़ कर अन्य लोगों के नाम वसीयत कर देंगे तो आप की संपत्ति वसीयत के अनुसार अन्य को प्राप्त होगी। जिस के नाम वसीयत नहीं है उसे कुछ नहीं मिलेगा। इस कारण यदि आप चाहते हैं तो आप वसीयत कर के उसे पंजीकृत करवा दें। वसीयत में वंचित कर देने से ही वास्तविक बेदखली हो सकती है।
यदि आप ने जो समझौता किया था उस के अनुसार नामांतरण करवा कर अलग अलग खाते न किए गए हों तो फिलहाल जो मुकदमा आप के पुत्र ने किया है उस में उसे सफलता मिलना संभव नहीं है। बल्कि आप उस के कब्जे की जमीन को वापस प्राप्त करने के लिए जमीन पर कब्जे का दावा अपने बड़े पुत्र के विरुद्ध कर सकते हैं।
जहाँ तक आप के बड़े पुत्र द्वारा मारने या मरने की जो धमकी दी जा रही है उस का कोई महत्व नहीं है। ऐसी धमकियों से डरने का अर्थ तो यह होगा कि समाज में जिस की लाठी होगी उसी की भैंस होने लगेगी। वह ऐसा केवल खुद के लाभ के लिए करता है, आप को कड़ाई से उस का मुकाबला करना चाहिए।