समस्या-
मेरी शादी 22 अप्रेल 2009 को हुई। मेरी पत्नी 20 दिन मेरे घर पर रही और जब भी मैं लेने जाता तो कहती कि तुम यहीँ पर आ जाओ। मेरे मुझ से छोटे दो भाई हैं। हम पाँच लोग हैं। मैं ने अपनी पत्नी को लाने हेतु धारा-9 हिन्दू विवाह अधिनियम आवेदन प्रस्तुत किया जिस का निर्णय एक पक्षीय मेरे पक्ष में हो गया। लेकिन पत्नी ने दीवानी प्रक्रिया संहिता के आदेश 9 नियम 13 का आवेदन प्रस्तुत कर एक पक्षीय निर्णय को निरस्त करवा दिया। पत्नी ने धारा 125 का आवेदन प्रस्तुत किया जो मेरे विरुद्ध निर्णीत हो गया। जब कि मैं अभी भी नियमित छात्र हूँ। इस आदेश के विरुद्ध मैं ने उच्च न्यायालय में रिविजन करवा दिया है। मेरी पत्नी आना नहीं चाहती है। मुझे क्या करना चाहिए?
-कमलेश, सीहोर, मध्यप्रदेश
समाधान-
आप ने बताया है कि आप पाँच लोग हैं, जिन में एक आप, दो आप के छोटे भाई हैं। शेष दो लोग और कौन हैं यह आप ने नहीं बताया है। हम अनुमान कर सकते हैं कि शेष दो आप के माता-पिता होंगे। इस तरह आप का विवाह हो जाने के बाद भी आप अपनी पत्नी को अपने परिवार का सदस्य नहीं गिन रहे हैं। आप ने यह भी बताया है कि आप अभी भी नियमित छात्र हैं, अर्थात आप की कोई आय नहीं है और आप स्वयं अपने माता-पिता पर निर्भर हैं।
जब भी कोई पुरुष विवाह करता है तो उस का यह दायित्व होता है कि वह अपनी पत्नी का भरण पोषण करे। यदि आप की पत्नी के पास ससुराल न आने के और मायके में बने रहने के उचित कारण हैं तो वह आप से अपने लिए भरण-पोषण के लिए निर्वाह भत्ते की मांग कर सकती है और न्यायालय निश्चित रूप से उस के पक्ष में ही निर्णय देगा। आप अपनी पत्नी के भरण पोषण से इन्कार नहीं कर सकते, जब तक कि वह स्वयं अपना निर्वाह स्वयं न करने लगे।
आप ने हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-9 के अंतर्गत जो आवेदन किया था और उस के अंतर्गत जो डिक्री हासिल की है वह अपास्त हुई है। अब पुनः आप के आवेदन पर उस की उपस्थिति में सुनवाई होगी। यदि न्यायालय यह समझता है कि आप की पत्नी के पास ससुराल में आ कर रहने से मना करने का कोई कारण नहीं है तो वह आवेदन फिर से आप के पक्ष में निर्णीत हो सकता है। आप को धैर्य रखना होगा। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में जब कि आप के पास अपनी आय का कोई साधन नहीं है। आप की पत्नी का इतना कहना भी संभवतः पर्याप्त होगा कि आप के पास स्वयं की कोई आय ही नहीं है जिस के कारण उस की स्थिति ससुराल में निवास योग्य नहीं है। मुझे नहीं लगता कि आप को उच्च न्यायालय से भी कोई राहत मिलेगी।
आप के पास इन तमाम परिस्थितियों में एक मात्र यही मार्ग शेष है कि आप अपनी पत्नी से ठीक से बात करें। उसे कहें कि आप शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़े होंगे, तब तक वह भरण-पोषण की मांग को त्याग दे। आप भी उसे तब तक उस के मायके में रहने दें। जब आप अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ तब तय करें कि आप की पत्नी को कहाँ रहना चाहिए।